स्वर दो माने जाते हैं। 1- चंद्र स्वर और 2- सूर्य स्वर
चंद्र स्वर बायी नासिका में और सूर्य स्वर दायीं नासिका में रहता है। यदि बायीं नासिका में स्वर चलता है तो वह चंद्र स्वर यानी इड़ा नाड़ी से सम्बन्धित स्वर कहलाता है लेकिन दायीं नासिका का स्वर चलने पर उसे सूर्य स्वर या पिंगला नाड़ी से सम्बन्धित स्वर कहा जाता है।
भगवान शंकर ने भगवती शिवा के प्रश्नों के उत्तर में एक समय में कहा था-
स्वरज्ञानात्परं गुर्ह्म सवरज्ञानात्परं धनम्।
स्वरज्ञानात्परं ज्ञानां न वा दृष्टं न व श्रुतम्।।
अर्थ- स्वर ज्ञान से बढ़कर कोई गुप्त विद्या, स्वर ज्ञान से ही अधिक धन आदि, स्वर ज्ञान से भी बढ़कर कोई ज्ञान न सुना, न देखा गया है।
चंद्र स्वर में ये करें तो होगा शुभकारी
अगर किसी दूर देश में युद्ध चल रहा हो तो उसमें जाते समय चलने वाला चंद्र स्वर शुभकर माना जाता है। मान्यता है कि सूर्य स्वर में शुरू किया गया कोई भी कार्य विफल हो जाये तो वह चंद्र में करने से आवश्य ही सफल होना माना जाता है। किसी यात्रा के शुरू में चंद्र स्वर हमेशा ही शुभ माना जाता है। किसी नगर प्रवेश, गृह प्रवेश या विवाह यात्रा आदि में चंद्र स्वर हमेशा शुभ माना जाता है। किसी देश की यात्रा करनी हो तो उसे चंद्र स्वर में शुरू करना चाहिए। चंद्र स्वर में यात्रा आरम्भ करने से इष्ट, वस्तु, धातु या उद्देश्य में सफलता प्राप्त होने का योग बनता है।
चंद्र स्वर में विष को भी ऋण कर लेता है, इसलिए किसी दूसरे का खाद्यान्त तभी ग्रहण करें, जब चंद्र स्वर चल रहा हो। देव प्रतिमा की प्रतिष्ठा व अन्य शुभ कर्म चंद्र स्वर में ही करना श्रेयस्कर माना जाता है। धन सम्पत्ति का संग्रह और धन-धान्य का संग्रह प्रभृति कार्य भी चंद्र स्वर में ही शुभकारी होता है। विद्याध्ययन की शुरुआत चंद्र स्वर के चलने में ही करना श्रेयस्कर माना जाता है।
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किसी भी मंगल कार्य के करने में चंद्र स्वर का चलना शुभकारी होता है। देव-पूजन, जप-तप, यज्ञ, अनुष्ठान में चंद्र स्वर का विशेष महत्व स्वीकार किया गया है। यज्ञोपवीत धारण व कठिन रोगों की चिकित्सा में चंद्र स्वर का उपयोग किया जाना उत्तम माना जाता है। घर में हाथी, घोड़े बांधने का काम चंद्र स्वर में ही करना श्रेयस्कर होता है। दुख:, शोक, ज्वर व संकट के समय चंद्र स्वर चलने लगे तो शुभ होता है।
अगर वर्षा का आगमन चंद्र स्वर के चलने में हो तो अत्यन्त शुभ माना जाता है। धन-धान्य की वृद्धि कराने का सूचक है। गुरु का पूजन चंद्र स्वर में ही आरम्भ करना चाहिए। खेत खरीदना व अन्न संग्रह भी चंद्र स्वर में शुभकारी होता है। योगाभ्यास, ध्यान व तिलक धारण आदि भी चंद्र स्वर चलने में शुरू करना शुभकारी होता है।
सूर्य स्वर में ये करें तो होगा शुभकारी
शत्रुओं से लोहा लेने के लिए सूर्य स्वर उत्तम फलदायी होता है। सूर्य स्वर में किसी से झगड़ा करने से सफलता प्राप्त होती है। युद्ध में भी लाभ प्राप्त होता है। हाथ में शस्त्र ग्रहण करने व उच्चाटन कर्म करना या कोई वस्तु खरीदना या बेचना सूर्य स्वर में शुभकारी होता है। सफलता प्रदान करने वाला होता है। अस्त्र शस्त्र की मंत्र सिद्धि करने में पिंगला नाड़ी का चलना ही अधिक लाभकारी माना जाता है। पशु विक्रय में भी सूर्य स्वर शुभ होता है। शास्त्राध्ययन, ईट, घोड़ा व पत्थर आदि के कार्यों में सूर्य स्वर का विशेष महत्व माना जाता है। दुर्गों व पर्वतों पर चढ़ना, हाथी, घोड़ा, रथ आदि पर सवार होना व शस्त्राभ्यास आरम्भ करने में भी पिंगला यानी सूर्य स्वर शुभ माना जाता है। इन कार्यों का आरम्भ भी सूर्य स्वर में करना चाहिए।
षट्कर्मों की साधनाएं, भूत-प्रेत, बेताल आदि सके कर्म, यक्ष-यक्षिणी सिद्ध आदि कार्र्यों का आरम्भ करना भी सूर्य स्वर के चलने के दौरान हितकारी होता है। दान देना, प्रेतों को वश में करना आदि कार्यों का आरम्भ भी पिंगला के स्वर में ही करना चाहिए। किसी वस्तु का उपयोग, भोजन, पान, स्नान आदि कार्य में भी पिंगला या सूर्य स्वर महत्वपूर्ण है। व्यापार कार्य, स्त्रीगमन, शयन, राजा या राजपुरुष के दर्शन में भी सूर्य स्वर उपयोगी रहता है। अगर कोई नदी पार करनी है तो जब सूर्य चल रहा हो, तभी करें। दान देने का कर्म भी सूर्य स्वर में शुरू करना श्रेयस्कर होता है। अगर भैंस-भैंसें, ऊंट आदि कोई भी पशु रखना हो तो उसे सूर्य स्वर के चलते ही घर पर लाएं। कुत्ता पालन में भी इसका ध्यान रखना चाहिए।
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