नवरात्रि में सिद्धि: धन धान्य, शत्रु निवारण व शनिदोष निवारण साधना

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राचर जगत का संचालन जिनकी इच्छा मात्र से हो रहा हो, ऐसी भगवती दुर्गा के पूजन व स्तुति में ही मानव मात्र का कल्याण निहित है। वह जगत जननी हैं, भक्तों का कल्याण करने वाली हैं। जिन भगवती अम्बिका देवी ने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जगत को व्याप्त किया हुआ हैं, सभी देवता और महर्षि उनका पूजन कर स्वयं को धन्य करते हों। सबकी पूजनीय उन भगवती के पूजन-अर्चन में जीव मात्र का कल्याण है। उन भगवती की शक्ति अनंत है, वह अजन्मा होते हुए भी प्रकट होकर सृष्टि का कल्याण करती है। ममतामयी माता जगत जननी जगदम्बा की जो भी जीव श्रद्धा भाव से पूजा करते हैं, उन्हें उत्तम गति प्राप्त होती है। जगत जननी का पूजन-अर्चन यदि नवरात्रि में किया जाए तो जीव को परम पुण्य की प्राप्ति होती है, उसकी समस्त इच्छाएं पूर्ण होती है।

पूजन में बरते ये सावधानियां

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1. एक व्यक्ति कई प्रयोग कर सकता है, लेकिन एक प्रयोग करने के बाद दूसरा प्रयोग करने से पूर्व हाथ मंंह पैर आदि को धोना आवश्यक है, यदि संभव हो तो स्नान करें।
2. साधना प्रयोग करने से पूर्व प्रत्येक बार (एक साधना प्रयोग पूरा करने के बाद जब दूसरा प्रयोग आरम्भ करें) हाथ मे जल लेकर अपना नाम, पिता का नाम, गोत्र, शहर, देश का नाम आदि उच्चारण करें। तत्पश्चात जल अपने ऊपर छिड़कें।
3. प्रयोग करने से पूर्व आवश्यक सामग्री एकत्रित कर लें।
4. साधना प्रयोग के लिए कंबल अथवा कुशासन का उपयोग करें।
5. साधना काल में पवित्रता एवम ब्रह्मïचर्य का पालन करें।
6. नवरात्रि काल में बाल न कटवायें।

उक्त सावधानियों का पालन करते हुए साधना करने से सभी भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। कार्य सिद्घि के लिए नवरात्रि में किये जाने वाले ये सिद्घ प्रयोग जो प्राणियों की अभिलाषा पूर्ण कर परम सुख प्रदान करते है।

1. धन धान्य हेतु अन्न पुर्णा प्रयोग-धन धान्य से परिपूर्णता प्रदान करने वाली अन्नपूर्णा देवी की साधना इस प्रकार करें-

कुशासन पर उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। बाजोट (तख्त) पर धनदायंत्र स्थापित करके पूर्व वर्णित विधि से पूजन करें तत्पश्चात दीपक

प्रज्वलित करे इस मंत्र का पाठ करें।
ऊँ ह्रीं नमो भगवती अन्नपूर्णे स्वाहा।

2. शत्रु निवारण साधना-शत्रुओं का संहार करने वाली श्री माता कलिका देवी मंत्र का पाठ करें-

ऊँ ऐं ह्रीं शत्रुनाशाय ह्रीं ऐं ऊँ फट्ट।।

पूजन के लिए आवश्यक सामग्री एक हत्था जोड़ी एक मोती शंख, सात गोमती चक्र, ग्यारह रक्त बूंजा का बीज पूजन से पूर्व एकत्रित कर लें।

3. शनिदोष निवारण प्रयोग

भला शनि के प्रकोप से कौन बच सका है। देवता, दानव, मानव शनि की टेढ़ी दृष्टिï से मुसीबतों के जाल से घिर जाते हैं। शनि की कुदृष्टिï से पांडव वनवासी हुए। पुरुषोत्तम राम को नववास जाना हुआ। यदि शनि ग्रह की अशुभ दशा से आप प्रभावितहैं तो नवरात्र स्थापना दिवस से नवमी तक नीचे लिखे मंत्र का पाठ करें-

ऊँ प्रां प्रीं प्रौं शं शनये नम:।

मंत्र पाठ करेन से पहले पूजन करें। पूजन करने के लिए एक लकड़ी की चौकी पर उड़द का ढेर रखें और चुटकी भर सिंदूर छिड़के और शनियंत्र स्थापित करके सरसों के तेल का दीप प्रज्जवलित करें तत्पश्चात कंबल का आसन लगाकर शनिमाला से मंत्र का जाप करें। पाठपूर्ण कर दशमी के दिन समस्त सामग्री काले कपड़े में लपेटकर तीन रास्ते पर रख आयें।

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