भगवान श्री विष्णु का नृसिंह अवतरण अति उग्र था। उनका अवतरण भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए हुआ था। भक्त प्रहलाद दावनराज हिरण्यकशिपु के पुत्र थ्ो। यह असुरराज भूमंडल पर धर्म का नाश कर रहा था। धर्म का पालन करने वालों को सताता था और स्वयं को ईश्वर बताकर स्वयं भू ईश्वर घोषित कर जन-जन से स्वयं का पूजन करवाता था। यहां तक की उसके प्रहलाद ने भी उसे ईश्वर मानने से इंकार किया तो उसने उसे भी मारने के तमाम कुचक्र रचे थ्ो, तब भगवान नृसिंह का अवतरण हुआ था। वे खम्बा फाड़कर अवतरित हुए थ्ो।
उनका मुख सिंह का है और देह मनुष्य की। दुष्ट जनों के लिए नृसिंह भगवान का रूप अति भयंकर है अर्थात वे दुष्ट जनों के संहारक हैं, लेकिन भक्तों और संत प्रकृति के जीवों पर वे सदा ही कृपा करने वाले हैं। भक्तों पर अपनी कृपा व करुणा बरसाने वाले हैं। श्री हरि का यह अवतरण संतों की रक्षा करने वाला है। उनकी प्रसन्नता का मंत्र हम आपको बताते हैं।
मंत्र है-
ऊॅँ उग्रवीरं महाविष्णुं
ज्वलन्तं सर्वतोमुखं।
नृसिंह भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्।
भगवान नृसिंह को प्रसन्न करने के लिए उपरोक्त वर्णित मंत्र की कम से कम 11 माला मंत्र प्रतिदिन जप करें। रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप सर्वोत्तम माना जाता है। धन प्राप्ति की अभिलाषा हो तो विल्ब पत्रों से एक माला हवन करें। दुर्वा दलों अर्थात दूब से हवन करने से आरोग्यता प्राप्त होती है। भगवान नृसिंह का अवतरण ही उग्र रूप में हुआ था, इसलिए वे दुष्ट दलन पर प्रलन्कारी बनकर टूटकर संतों की रक्षा करते हैं।