पावन सप्त सरिता में नर्मदा: सर्वत्र पुण्यमयी नदी

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paavan sapt sarita mein sarasvatee mein narmada: sarvatr punyamayee nadee

paavan sapt sarita main narmada: sarvatr punyamayee nadeeनर्मदा का उद्गम विंध्याचल की मैकाल पर्वत श्रृंखला में अमरकंटक नामक स्थान पर है। मैकाल से निकलने के कारण नर्मदा को मैकाल – कन्या भी कहते हैं। स्कंदपुराण ‘ में इस नदी का वर्णन रेवाखंड के अंतर्गत किया गया है। भारत के मध्यभाग में पूरब से पश्चिम की ओर बहने वाली नर्मदा गंगा के समान पूजनीय है। नर्मदा सर्वत्र पुण्यमयी नदी बताई गई है तथा इसके उद्भव से लेकर संगम तक दस करोड़ तीर्थ हैं।

कालिदास के ‘ मेघदूतम् ‘ में नर्मदा को रेवा का संबोधन मिला है, जिसका अर्थ है – पहाड़ी चट्टानों से कूदने वाली। वास्तव में नर्मदा की तेजधारा पहाड़ी चट्टानों पर और भेड़ाघाट में संगमरमर की चट्टानों के ऊपर से उछलती हुई बहती है। अमरकंटक में सुंदर सरोवर में स्थित शिवलिंग से निकलने वाली इस पावनधारा को रुद्रकन्या भी कहते हैं, जो आगे चलकर नर्मदा नदी का विशाल रूप धारण कर लेती है। पवित्र नदी नर्मदा के तट पर अनेक तीर्थ हैं, जहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। इनमें कपिलधारा, शुक्लतीर्थ, मांधाता, भेड़ाघाट, शूलपाणि, भड़ौच उल्लेखनीय हैं। अमरकंटक की पहाड़ियों से निकल कर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से होकर नर्मदा करीब 1057 किलोमीटर का प्रवाह पथ तय कर भड़ौच के आगे खंभात की खाड़ी में विलीन हो जाती है। परंपरा के अनुसार नर्मदा की परिक्रमा का भी प्रावधान है, जिससे श्रद्धालुओं को पुण्य की प्राप्ति होती है। पुराणों में बताया गया है कि नर्मदा नदी के दर्शनमात्र से समस्त पापों का नाश होता है।

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पुण्या कनखले गंगा कुरुक्षेत्रे सरस्वती।

ग्रामे वा यदि वारण्ये पुण्या सर्वत्र नर्मदा॥

( पद्मपुराण , आदिखंड 13-6-7 )

नर्मदा संगम यावद् यावच्चामरकण्टकम्।

तत्रान्तरे महाराज तीर्थकोट्यो दश स्थिताः।

( पद्मपुराण , आदिखंड 21/42 )

माता नर्मदा की कथा

एक बार भगवान शिव तपस्या में लीन थे, तब उनके पसीने से नर्मदा का जन्म हुआ। उस समय भगवान शिव मैखल पर्वत पर थे। उन्होंने उस कन्या का नाम नर्मदा रखा। जिसका अर्थ होता है सुख प्रदान करने वाली। भगवान शिव ने उस कन्या को आशीष दिया कि जो कोई तुम्हारा दर्शन करेगा, उसका कल्याण होगा। वह मैखल पर्वत पर उत्पन्न हुई थीं, इसलिए वह मैखल राज की पुत्री भी कहलाती हैं।
अन्य कथा के अनुसार, मैखल पर्वत पर भगवान शिव से दिव्य कन्या नर्मदा प्रकट हुई थीं। देवताओं ने उनका नाम नर्मदा रखा। उन्होंने हजारों वर्ष तक भगवान शिव की तपस्या की, जिससे भोलेनाथ प्रसन्न हुए। फिर उन्होंने नर्मदा को पापनाशिनी का आशीष दिया। साथ ही उनको यह भी वरदान ​मिला कि उनके तट पर सभी देवी देवताओं का वास होगा और नदी के सभी पत्थर शिवलिंग स्वरूप में पूजे जाएंगे।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, जब नर्मदा जी बड़ी हुईं तो उनके पिता मैखलराज ने उनका विवाह राजकुमार सोनभद्र से तय कर दिया। एक बाद उनको राजकुमार से मिलने की इच्छा हुई तो उन्होंने एक दासी को उनसे मिलने के लिए भेजा। वह दासी राजसी आभूषणों से अलंकृत थी, जिसे राजकुमार सोनभद्र नर्मदा समझ लिए। दोनों का विवाह हो गया। काफी समय बीतने के बाद भी दासी के वापस न लौटने पर नर्मदा जी स्वयं राजकुमार सोनभद्र से मिलने पहुंचीं। उन्होंने राजकुमार सोनभद्र को दासी के साथ पाया। तब वे काफी दुखी हुईं और कभी विवाह न करने का निर्णय लिया। कहा जाता है कि उसके बाद से ही मां नर्मदा पश्चिम की ओर चल दीं। उसके बाद से वे कभी वापस नहीं लौटीं, इसलिए मां नर्मदा आज भी पश्चिम दिशा में बहती हैं।

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