पावन सप्त सरिता में कावेरी: जन्मों के पाप छूट जाते हैं

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paavan sapt sarita mein kaaveree: janmon ke paap chhoot jaate hain

paavan sapt sarita mein kaaveree: janmon ke paap chhoot jaate hainकावेरी नदी को दक्षिण की गंगा और बूढ़ी गंगा कहा जाता है। दक्षिण की गंगा कहलाने वाली कावेरी का वर्णन कई पुराणों में बार – बार आया है। इसे बहुत पवित्र नदी माना गया है। कवि त्यागराज ने इसका वर्णन अपनी कविताओं में कई जगह किया है। भक्तगण इसे अपनी मां के समान मानते हैं। इसके उद्गमस्थल कावेरी कुंड में हर साल देवी कावेरी का जन्मोत्सव मनाया जाता है।

विस्तृत विवरण ‘ विष्णुपुराण ‘ में

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दक्षिण की प्रमुख नदी कावेरी का विस्तृत विवरण ‘ विष्णुपुराण ‘ में दिया गया है। यह सह्याद्रि पर्वत के दक्षिणी छोर से निकल कर दक्षिण – पूर्व की दिशा में कर्नाटक तथा तमिलनाडु से बहती हुई करीब 800 किलोमीटर मार्ग तय कर कावेरीपट्टनम के पास बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। कावेरी में मिलने वाली मुख्य सरिताओं में हरंगी, हेमवती, नोयिल, अमरावती, सिमसा, लक्ष्मणतीर्थ, भवानी, काबिनी उल्लेखनीय हैं।

कावेरी तट पर अनेक प्राचीन तीर्थ तथा ऐतिहासिक नगर बसे हैं। यह नदी तीन स्थानों पर दो शाखाओं में बंटकर फिर एक हो जाती है। इससे तीन द्वीप बन गए हैं, जिन पर क्रमश : आदिरंगम्, शिवसमुद्रम् तथा श्रीरंगम् नाम से श्रीविष्णु भगवान के भव्य मंदिर हैं। महान् शैवतीर्थ चिदंबरम् तथा जंबुकेश्वरम् भी श्रीरंगम् के पास स्थित हैं। इनके अलावा प्राचीन तथा गौरवमय तीर्थ नगर तंजौर, कुंभकोणम् तथा तिरुचिरापल्ली इसी पवित्र नदी के निकट स्थित हैं, जिनसे कावेरी की महत्ता बढ़ गई है। मैसूर के पास कृष्णराजसागर पर दर्शनीय ‘ वृंदावन गार्डन ‘ इसी नदी के किनारे पर है।

मां कावेरी की कथा

मां कावेरी भारत में बहने वाली प्रमुख नदियों में से एक है। कावेरी परमपिता ब्रह्मा की पुत्री है और इसे देवी गंगा की तरह ही पूजनीय माना गया है।

पावन सप्त सरिता में कावेरी: जन्मों के पाप छूट जाते हैं

पुराणों के अनुसार जब महर्षि अगस्त्य उत्तर भारत से दक्षिण की ओर आ गए, तो उन्हें वहां पड़ने वाले सूखे ने चिंतित कर दिया। इसी के निराकरण के लिए वे ब्रह्मलोक पहुंचे और परमपिता ब्रह्मा को नमन करते हुए कहा, हे ब्रह्मदेव! आप तो जानते ही हैं कि भगवान शिव की आज्ञा अनुसार अब मैं दक्षिण में निवास करता हूं। महादेव ने मुझसे कहा था कि दक्षिण हर प्रकार से उत्तर के प्रदेश से पिछड़ा हुआ है और उन्होंने मुझे आज्ञा दी कि मैं अपने ज्ञान से दक्षिण को समृद्ध बनाऊं। उनकी आज्ञा अनुसार मैंने अपने ज्ञान का वहां प्रसार किया किंतु भौगोलिक दृष्टि से भी दक्षिण में जीवन बहुत कठिन है। पूरे प्रदेश में सूखा पड़ा है और जल का कोई साधन नहीं है। इसीलिए हे परमपिता कृपा कर दक्षिण को अपने वरदान से परिपूर्ण करें। महर्षि अगस्त्य की ऐसी याचना सुनकर ब्रह्मदेव बोले वत्स! प्राणिमात्र के लिए तुम्हारे हृदय में जो करुणा है, उससे मैं बहुत प्रसन्न हूं। मैं तुम्हें अपनी पुत्री कावेरी प्रदान करता हूं, जो गंगा के सामान ही पवित्र और कल्याणकारी है। इसके दृष्टिमात्र से पूरा दक्षिण प्रदेश हरा-भरा हो जाएगा। ऐसा कह कर ब्रह्मदेव ने कावेरी का आह्वान किया, जिस कारण कावेरी तुरंत उनके समक्ष उपस्थित हुई। ब्रह्मदेव ने कहा, हे पुत्री! तुम इतने दिन मेरे साथ रही और तुम्हारे सान्निध्य से मुझे भी बड़ा संतोष मिला किंतु इस समय पृथ्वी को तुम्हारी आवश्यकता है। इसी कारण मैं तुम्हे महर्षि अगस्त्य को प्रदान करता हूं। तुम इनके साथ जाओ और जिस प्रकार गंगा ने पृथ्वी का कल्याण किया है, उसी प्रकार तुम भी पृथ्वी का कल्याण करो। मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि तुम भी गंगा की भांति सदैव पूजी जाओगी और दक्षिण के लोग तुम्हे गंगा का ही प्रतिरूप मानेंगे। फिर कावेरी ने पूछा हे परमपिता! आपका कथन सर्वथा उचित है, किंतु मैं पृथ्वी पर किस प्रकार अवतरित होऊंगी। गंगा को तो स्वयं महादेव की जटाओं में जाने का सौभाग्य मिला था, किंतु मेरा किस प्रकार पृथ्वी पर अवतरित होगा। तब ब्रह्मदेव ने अपना कमंडल अगस्त्य को देते हुए कावेरी को कहा, हे पुत्री! तुम मेरे इस कमंडल में समा जाओ और फिर अगस्त्य तुम्हे भगीरथ की ही भांति पृथ्वी पर लेकर जाएंगे। तब ब्रह्मदेव का आशीर्वाद प्राप्त कर कावेरी उस कमंडल में समा गई और महर्षि अगस्त्य उन्हें लेकर पृथ्वी पर आए।

एक और कथा

एक और कथा के अनुसार जब दक्षिण की भूमि ताप से दग्ध हो गई, तो महर्षि अगस्त्य ने महादेव की बड़ी घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने कहा कि दक्षिण में कोई जल स्रोत नहीं है इसीलिए तुम कैलाश आओ, मैं तुम्हे अखंड जल स्रोत प्रदान करूंगा। जब महर्षि अगस्त्य कैलाश पहुंचे, तो भगवान शंकर ने एक मुट्ठी बर्फ उनके कमंडल में डाली और कहा कि जहां भी तुम्हे जल की आवश्यकता पड़े, इसे प्रवाहित कर देना। ये कावेरी नदी गंगा की ही भांति दक्षिण का पोषण करेगी। महर्षि कावेरी को लेकर दक्षिण की ओर चल पड़े। मार्ग में कई बार उन्हें प्यास लगी किंतु उन्होंने कावेरी को मुक्त नहीं किया। एक उजाड़ क्षेत्र में पहुंचने पर महर्षि अगस्त्य विश्राम के लिए रुके। उनके पीछे-पीछे कैलाश से श्री गणेश भी चले आ रहे थे। उन्होंने देखा कि ये स्थान कावेरी के उद्गम के लिए सर्वश्रेष्ठ था इसी कारण उन्होंने एक कौवे का रूप धरा और महर्षि अगस्त्य के कमंडल को उल्टा दिया, जिससे कावेरी नदी मुक्त हो गई और पूरा प्रदेश जल से परिपूर्ण हो गया। कावेरी को इस प्रकार मुक्त होते देख महर्षि अगस्त्य उस कौवे पर अत्यंत क्रोधित हो गए। वह उसे श्राप देना ही चाहते थे कि श्री गणेश उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें बताया कि कावेरी के उद्गम का यह स्थान सर्वश्रेष्ठ था इसी कारण उन्होंने ही कौवे का रूप धर कर कावेरी को मुक्त कर दिया। इससे महर्षि अगस्त्य बड़े प्रसन्न हुए और अपने कार्य को पूर्ण समझा। दक्षिण के ग्रंथों के अनुसार कावेरी ऋषि कावेरा की पुत्री थी जिनका विवाह अगस्त्य ऋषि से हुआ था। इन कई कथाओं से हमें जानने को मिलता है कि कावेरी की महत्ता कितनी अधिक है। वर्तमान में यह नदी तमिलनाडु और कर्नाटक में बहती है और इसका उद्गम ब्रह्मगिरी से बताया गया है। इसके किनारे हिंदुओं के कई धार्मिक स्थल हैं, जिसमे से तिरुचिरापल्ली प्रमुख है।

स्नान करने से कई जन्मों के पाप छूट जाते हैं

कावेरी को दक्षिण भारत की जीवन रेखा भी कहा गया है। कदाचित यही कारण है कि उसे दक्षिण की गंगा के नाम से भी जाना जाता है और मान्यता है कि इसमें स्नान करने से कई जन्मों के पाप छूट जाते हैं।

कावेरी की सहायक नदियां 

कावेरी नदी के बाएँ तरफ से बहने वाली नदियां की लिस्ट जैसे- हेमवती, यागच्ची, हेरंगी, शिमसा, अरकावाती, छोवराई, तुरुन्निमुत्तल, कोल्लीदम।

दाहिने तरफ से- लक्ष्मणतीर्था, भवानी, स्वर्णवती, अमरावती, नोय्यल, काबिनी, नंगन्ति ये रही दाहिने तरफ से निकालने वाली नदियों।

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