panch sarovar mein pushkar sarovar(gayatree devee shaktipeeth): saavitree mandir bhi ,dev darshanaon ka bhee poorn phalपुष्कर सरोवर पौराणिक काल का है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान निकले कलश से तीन पुष्प जमीन पर गिरे थे। इन पुष्पों के नाम पर बूढ़ा पुष्कर, मध्य और कनिष्ठ पुष्कर सरोवर बने। प्रजापिता ब्रह्मा ने कार्तिक मास में सृष्टि की रचना पुष्करराज में की थी। उन्होंने यज्ञ का आयोजन भी किया था। इसमें देवलोक के सभी देवी-देवताओं ने आहूतियां दीं थीं। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक एकादशी से पूर्णिमा तक सभी देवी-देवताओं का तीर्थराज पुष्कर में निवास रहता है। इस लिहाज से पवित्र सरोवर में डुबकी लगाने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
पुष्कर और अजमेर के बीच में नागपर्वत है। यहां पहाड़ी चट्टानों की संकीर्ण घाटी में भारत की यह झील अवस्थित है, जहां अनंतकाल से प्रतिवर्ष लाखों हिंदू यात्रा के लिए आते हैं। इस स्थान का नाम पुष्करराज है, जिसका अर्थ यह हुआ कि यह तीर्थ समस्त तीर्थों का राजा है – यथा सुराणां सर्वेषामादिस्तु पुरुषोत्तमः। पुष्कर को तीर्थों का गुरु होने से पुष्करराज कहा गया है । ( तथैव पुष्करं राजंस्तीर्थानामादिरुच्यते । ) पुष्कर पंचतीर्थ तथा पंचसरोवर दोनों में परिगणित है। ऐसी मान्यता है कि भारत के अन्य महान् तीर्थ – जैसे बदरीनाथ, जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम् और द्वारका के दर्शनों का फल तब तक अपूर्ण रहता है, जब तक कि पुष्कर में स्नान न कर लिया जाए, क्योंकि सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी यहां सदा निवास करते हैं। प्राचीनकाल में माना जाता था कि यहां पहुंचना, पूजा करना अति कठिन था, पर वर्तमान में सभी कुछ सरलता से संभव है।
तीर्थ का महत्त्व
कार्तिक महीने में यहां बड़ा भारी मेला लगता है, तब वहां बड़ी संख्या में यात्रीगण कार्तिक – वास करते हैं, जिससे उन्हें अक्षयपुण्य प्राप्त होता है। मनुष्य के जीवन में जो भी पाप होते हैं यहां एक बार स्नान करने से धुल जाते हैं। पद्मपुराण ‘ तो यहां तक कहता है कि कई सौ वर्षों तक अग्निहोत्र, निरंतर उपासना और कार्तिक पूर्णिमा में एक रात पुष्कर में वास, दोनों का फल समान है – कार्तिकी वा वसेदेकां पुष्करे सममेव तत् ( आदिखंड 11 महातीर्थ . 82 )
तीर्थ की धार्मिक कथा
‘ पद्मपुराण ‘ में पुष्करतीर्थ का वर्णन विस्तार से किया गया है। ऐसा उल्लेख है कि परम पिता ब्रह्माजी भूमंडल की यात्रा के दौरान यहां पधारे और पुष्कर के निकट सुंदर वनों को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। वनदेवी ने वृक्षों पर खिले पुष्पों की वर्षा करके ब्रह्माजी का स्वागत किया। खुश होकर पितामह ब्रह्मा ने पुष्कर को सदा पवित्र रहने की मान्यता दी तथा पूजा – पाठ और स्नान करने वालों को अपना कृपापात्र होने का वचन दिया। ‘ पद्मपुराण ‘ में कथा है – यहां वज्रनाभ नाम का राक्षस रहता था। वह बच्चों को मार डालता था। उस समय यज्ञ के इच्छुक ब्रह्मा वहा आए। उन्होंने अपने हाथ के कमल को फेंककर इस राक्षस को मार दिया। वह कमल जहां गिरा, वहां सरोवर बन गया। वही सरोवर पुष्कर कहलाता है।
पुष्कर के तीर्थ स्थल
- ब्रह्मा मंदिर : पुष्कर में प्रधान देवता ब्रह्माजी हैं। पुष्कर – सरोवर से थोड़ी दूरी पर एक पहाड़ी के ऊपर ब्रह्माजी का प्राचीन मंदिर स्थित है। मंदिर के आंगन में क्रमश : दाईं तथा बाईं ओर संगमरमर के दो हाथियों पर इंद्र और कुबेर की मूर्तियां हैं। मुख्य मंदिर के गर्भगृह में मूल्यवान आभूषणों से सजी ब्रह्माजी की चतुर्मुखी प्रतिमा है। उनके साथ ही उनकी दूसरी अर्धागिनी गायत्री की सुंदर प्रतिमा प्रतिष्ठित है।
- सावित्री मंदिर: मुख्य मंदिर के पीछे दूसरी ओर एक पहाड़ी पर ब्रह्माजी की पहली पत्नी सावित्री का मंदिर है। ऐसी कथा है कि यज्ञमंडप से रूठकर सावित्री देवी अलग हो गईं और कुपित होकर शाप दिया कि पुष्कर के अलावा ब्रह्माजी की पूजा – अर्चना भूमंडल पर और कहीं नहीं होगी। फलस्वरूप अब तक परमपिता ब्रह्माजी की पूजा केवल इसी स्थान पर अर्थात् पुष्कर में ही होती है।
- गायत्री मंदिर : ब्रह्माजी के मंदिर के सामने पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है, जो गायत्री शक्तिपीठ है और यहां सती की कलाइयां गिरी थीं।
- रामबैकुंठ मंदिर : रामबैकुंठ मंदिर विशालकाय तथा वैभवपूर्ण पूजास्थल है। वैष्णव संप्रदाय के भक्तों का यह प्रमुख मंदिर है। इसका निर्माण दक्षिण से लाए गए कारीगरों के द्वारा हुआ है।
- वल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक : पुष्कर की परिक्रमा में सरोवर के दूसरे किनारे पर अवस्थित है।
- शुद्धवापी गयाकुंड : यहां पितरों का श्राद्ध व तर्पण किया जाता है।
- यज्ञपर्वत : पुष्कर के पास ही है। यहां स्थित अगत्स्य – आश्रम और अगत्स्यकुंड में स्नान से ही पुष्कर की यात्रा पूर्ण मानी जाती है। इसके अतिरिक्त नागकुंड, चक्रकुंड, सूर्यकुंड, पद्मकुंड, गंगाकुंड आदि भी पुष्कर के बहुत प्रसिद्ध कुंड हैं।
- श्रीरंगजी का मंदिर : यह मंदिर दक्षिण शैली के स्थापत्यकला का नमूना है। यहां वैष्णव संप्रदाय के द्रविड़ पुजारी ही पूजा – अर्चना की व्यवस्था करते हैं। इस मंदिर में श्रीकृष्ण के जीवन की अनेक मनोरम घटनाओं के आकर्षक चित्र हैं। मंदिर के चारों ओर तथा गोपुरम पर अनेक कलात्मक मूर्तियां हैं।
- परिक्रमा: पुष्कर की चार परिक्रमा है, जो क्रमश : 8, 12, 26, 30 मील की है।
- गायत्री मंदिर : ब्रह्माजी के मंदिर के सामने पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है, जो गायत्री शक्तिपीठ है और यहां सती की कलाइयां गिरी थीं।
- आत्मेश्वर महादेव : सरोवर के पास बाजार में दो तल नीचे एक सुंदर शिवलिंग है, जो प्राचीन है।
- संगम : पुष्कर से 14 किलोमीटर दूर प्राचीन सरस्वती और नंदा नदियों का संगम है।
- गुफा: पुष्कर के पास नाग पर्वत पर बहुत – सी गुफाएं हैं। भर्तृहरि की गुफा इन गुफाओं में बहुत प्रसिद्ध है। पुष्कर नगरी में अनेक छोटे – बड़े मंदिर हैं, जैसे- राममंदिर, वराह मंदिर, बद्रीनारायण मंदिर व लक्ष्मी मंदिर आदि।
यात्रा मार्ग और 52 घाट
वायु मार्ग में जयपुर एअरपोर्ट से अजमेर 138 किलोमीटर की दूरी पर है। तीर्थराज पुष्कर पहुंचने के लिए पहले अजमेर पहुंचना होता है। सड़क मार्ग से जाने पर अजमेर के बाहर – बाहर से ही पुष्कर पहुंचा जा सकता है, लेकिन बसें तथा टैक्सियां पुष्कर सरोवर से पहले ही कुछ ऊंचाई पर रोक दी जाती हैं। पुष्कर सरोवर काफी दूर तक, करीब 5 वर्ग किलोमीटर तक फैला है, जिसमें अनेक सीढ़ियां और 52 घाट हैं। इनमें ब्रह्मघाट, यज्ञ घाट, बदरी घाट, कोटितीर्थ घाट, महादेव घाट, विश्राम घाट, छत्री घाट, राम घाट, गऊ घाट, करणी घाट, जोधपुर घाट, किशनगढ़ घाट, कोटा घाट, बूंदी घाट, भरतपुर घाट प्रसिद्ध हैं।
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