पूजा के नियम बताने से पूर्व हम आपको एक छोटी सी सच्ची कहानी सुनाना चाहते हैं, जो कि आपको पूजा व उनके नियमों की सार्थकता से अवगत कराएगी। विशेष तौर समय की निश्चितता के महत्व को समझाने में सहायक होगी। एक हमारे पूज्य गुरुदेव हैं। उन्होंने अपनी अल्पायु का प्रसंग हमें सुनाया और समय के महत्व से अवगत कराया। उनके समझाने के तरीके से हमें समझ भी आया और उसकी प्रासंगिकता भी जानी।
करीब सत्तर वर्ष पुरानी घटना है, जिसे हम आपको बताने जा रहे हैं। वह हमारे गुरु जी ने जैसे-तैसे इंटरमीडियट की परीक्षा काफी कम अंकों में उत्तीर्ण की। परीक्षा तो उत्तीर्ण कर ली, लेकिन इस बीच एक ऐसी घटना हो गई, जिसकी वजह से उन्हें विद्यालय से निकाल दिया गया। टीसी मिलने का सवाल ही नहीं रहा। ऐसी स्थिति में आगे किसी डिग्री कोर्स में प्रवेश उनके लिए मुमकिन न रहा। चूंकि वे सम्पन्न परिवार से थे, लिहाजा परिवार वालों ने भी ज्यादा कुछ नहीं कहा, लेकिन उन्हें आगे पढ़ने की ललक थी। समस्या यह थी कि वह प्रवेश कहां और कैसे लें। इन सब परेशानियों से जूझते हुए उन्होंने निर्णय लिया है कि वह लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रवेश लेंगे। इस संकल्प को लेकर उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में आना-जाना शुरू किया। वह शाम को निश्चित समय पर लखनऊ विश्वविद्यालय पहुंचते और वहां के रजिस्ट्रार के कमरे में पहुंच जाते। वहां लगी कुर्सी में चुपके से बैठ जाते। पहले दिन वह जब रजिस्ट्रार के कमरें में पहुंचे तो रजिस्ट्रार ने पूछा, कैसे आना हुआ है? उन्होंने शालीनता से कहा कि गरुजी सिर्फ आपसे आर्शीवाद लेने आया हूं। रजिस्ट्रार महोदय भी कुछ नहीं बोले, सिर्फ उनके आगमन पर मौन सहमति दे दी। फिर क्या था?, मेरे गुरुवर ने रोज विश्वविद्यालय में निश्चित समय पर आना- जाना शुरू कर दिया। वहां जाते और उनके कक्ष में लगी कुर्सी में चुपचाप बैठ जाते और आते-जाते समय नमस्कार करते। यह क्रम लम्बे समय तक चलता रहा। इस बीच में उनकी रजिस्ट्रार महोदय से थोड़ी-बहुत बातचीत भी होनी शुरु हो गई। चूंकि गुरुवर कम उम्र के थे, इसलिए रजिस्ट्रार जब कभी चाय-नाश्ता मंगाते तो उन्हें भी पीने के लिए देने लगे। धीरे- धीरे लम्बा समय बीत गया। एक दिन रजिस्ट्रार महोदय ने पूछा कि तुम रोज आते हो, कोई काम हो तो बताओ, लेकिन गुरुवर ने कहा कि नहीं, कोई काम नहीं है, बस आर्शीवाद लेने आया हूं। इस पर रजिस्ट्रार महोदय ने कहा कि नहीं तुम कोई काम मेरे को बताओं, मैं तुम्हारा कोई काम करना चाहता हूं। इस पर वे घर गए और अपने जानने-पहचाने वालों से विश्वविद्यालय से सम्बन्धित काम पूछा, पर कोई काम नहीं मिला तो अगले दिन उन्होंने रजिस्ट्रार महोदय को बता दिया, कि कोई काम नहीं मिला है। इस तरह कुछ समय और बीत गया, लेकिन मेरे गुरुवर के आने-जाने का क्रम जारी रहा। रजिस्ट्रार महोदय के सेवानिवृत्त होने का समय आया तो उन्होंने मेरे गुरुवर से कहा कि अब तो मैं सेवानिवृत्त हो रहा हूं, कोई काम बताओं। इस पर मेरे गुरुवर ने शालीनता से कहा कि आप मेरा काम कर तो पाएंगे नहीं, क्या बताऊं? इस पर रजिस्ट्रार महोदय ने कहा कि नहीं, तुम बताओ तो। इस पर उन्होंने विश्वविद्यालय में प्रवेश की बात कहीं और साथ ही यह भी बताया कि वह स्कूल से निकाल दिए गए है। टीसी नहीं दे पाएंगे। रजिस्ट्रार महोदय ने गुरुवर की पूरी बात सुनी और उन्हें विश्वविद्यालय में प्रवेश दिला दिया। इस प्रसंग को सुनाने के बाद मेरे गुरुवर ने बताया कि नियमित रूप और निश्चित समय पर कर्म किए जाने पर जब इंसान आपकों देने को लालायित हो जाता है तो वह तो ईश्वर है। उससे यदि आप निश्चित समय और नियमित रूप से मिलोंगे यानी पूजा करोंगे तो वह भी आपकी सुनेगा। बस आवश्यकता है। आप संयमित रहें। आचार-विचार शुद्ध रखें और उसकी प्रार्थना कर उससे मांगे। मेरे गुरुवर ने पूरी प्रक्रिया में आचरण में अनुशासन की मर्यादा का विशेष ख्याल रखा था, जिसका फल उन्हें विश्वविद्यालय में प्रवेश के रूप में मिला। इस कहानी में मैंने आवश्यकतानुसार थोड़ा-बहुत परिवर्तन किया है, लेकिन प्रसंग के मूल सार को जीवन्त रखने का प्रयास किया है। बहरहाल अब अब समय का महत्व जान गए होंगे। अब आते हैं, मूल विषय पर- पूजा के कुछ नियम हैं, जिनके बारे में अधिकांश लोग नहीं जानते हैं, लेकिन वह आपके लिए जानने अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि इन नियमों को न जानने से आपको पूजा का फल नहीं प्राप्त होता है। शंख का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव के पूजन में शंख का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। भगवान शिव की पूजा में शंख का प्रयोग निषेध किया गया है। मान्यता के अनुसार, शिव पूजन में शंख का प्रयोग नहीं किया जाता है। इन्हें न शंख से जल अर्पित किया जाता है, न ही पूजा में बजाया ही जाता है। इसे लेकर शिव पुराण में पौराणिक कथा भी है, दंभ के पुत्र शंखचूर का उल्लेख है। वह अपने बल के मद में तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा था और वह धर्म पर चलने वालों को सताने लगा था। इससे नाराज होकर भगवान शिव ने शंखचूर का वध कर दिया था । शंखचूर विष्णु और देवी लक्ष्मी का भक्त था। भगवान विष्णु ने इसकी हड्डियों से शंख का निर्माण किया, इसलिए विष्णु व अन्य देवी देवताओं को शंख से जल अर्पित किया जाता है, लेकिन शिव जी ने शंखचूर का वध किया था, इसलिए शंख भगवान शिव की पूजा में वर्जित माना गया। हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार, हम दैनिक पूजा तो करते हैं, लेकिन समय का ध्यान नहीं रखते हैं, जबकि हमें दैनिक पूजा में समय का ध्यान जरूर रखना चाहिए। हमारी पूजा का एक निश्चित समय होना चाहिए। घर में पूजा घर बनाए तो इस बात का ध्यान रखें कि ईशान कोण में मंदिर सर्वश्रेष्ठ होता है। कम से कम देवी-देवता पूजा स्थान में स्थापित करें। एकल रूप में स्थापित करें। पूजन के कार्य के लिए- ब्रह्म मुहूर्त सुबह 3 बजे से दोपहर 12 बजे तक के पूर्व का समय निश्चित करें। मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्ति के सामने कभी भी पीठ दिखाकर नहीं बैठना चाहिए। कभी भी दीपक से दीपक नहीं जलाएं। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति दीपक से दीपक जलते हैं, वे रोगग्रस्त होते हैं।
पूजा के समय हमारा मुंह ईशान, पूर्व या उत्तर में होना चाहिए, जिससे हमें सूर्य की ऊर्जा एवं चुंबकीय ऊर्जा मिल सके। इससे हमारा दिनभर शुभ रहे। साधक को चाहिए वह अपने मन को सदैव ही पवित्र रखें, विचारों में मलीनता नहीं आने दे। दूसरों के प्रति सद्भावना रखें, तभी आपकी पूजा सात्विक होगी।
रविवार, एकादशी, द्बादशी, संक्राति और सूर्यास्त के बाद तुलसी पत्ती नहीं तोड़नी चाहिए। तुलसी की पत्ती अनावश्यक रूप में तोड़ना भी गलत होता है। पूजा व आरती करने के बाद तीन परिक्रमा लगानी चाहिए। बुधवार व रविवार को पीपल के वृक्ष में जल अर्पित नहीं करना चाहिए। दीपक से दीपक जलाना भी वर्जित है।
सूर्यदेव को शंख के जल से अर्ध्य अर्पित होता है लाभकारी
गरुड़ पुराण के ब्राह्म पर्व में सूर्य पूजा से जुड़ी खास बातें बताई गई हैं। यहां जानिए खासतौर पर किन लोगों को सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए और इस उपाय से कौन-कौन से लाभ मिलते हैं। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य कमजोर हो। जिनमें आत्म-विश्वास की कमी हो, जो भीड़ में घबराते हों। जो निराशावादी हों, जिन पर नकारात्मकता हावी रहती हो। जिन्हें हमेशा कोई अज्ञात भय सताता रहता है। जिन लोगों को घर-परिवार और समाज में मान-सम्मान चाहिए। इन सभी लोगों को प्रतिदिन सुबह जल्दी उठकर सूर्य को जल जढ़ाना चाहिए। महाभारत ग्रंथ के अनुसार कर्ण रोज सुबह सूर्य पूजा करते थे। सूर्य को अर्घ्य देते थे। कई कथाओं में बताया गया है कि भगवान श्रीराम भी रोज सूर्य को जल चढ़ाकर पूजा करते थे।
ये हैं सूर्य को जल चढ़ाने का सरल तरीका
– सूर्यदेव को जल चढ़ाने के लिए रोज सुबह जल्दी बिस्तर छोड़ देना चाहिए।
– स्नान के बाद तांबे के लोटे से सूर्य को अर्घ्य अर्पित करें।
– जल चढ़ाते समय दोनों हाथों से लोटे को पकड़कर रखना चाहिए।
– लोटे में जल के साथ ही लाल फूल, कुमकुम और चावल भी जरूर डालना चाहिए।
– सूर्य को अर्घ्य देते समय जल की गिरती धार से सूर्य की किरणों को जरूर देखना चाहिए।
– पूर्व दिशा की ओर ही मुख करके ही सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए।
– ध्यान रखें जल चढ़ाते समय जमीन पर गिरा हुआ आपके पैरों तक नहीं पहुंचना चाहिए। किसी ऐसी जगह से सूर्य को जल चढ़ाएं, जहां से सूर्य को अर्पित किया गया किसी के पैरों में न आए।
– जल चढ़ाते समय सूर्य मंत्र ऊँ सूर्याय नम: का जप करते रहना चाहिए।
देव परिक्रमा और दिव्य प्रभा
धर्म शास्त्रों के अनुसार, जिस स्थान या मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई हो, उस स्थान के मध्य बिदु से प्रतिमा के कुछ मीटर की दूरी तक लेकर कुछ दूरी तक उस शक्ति की दिव्य प्रभा रहती है, जो प्रतिमा के निकट में अधिक गहरी और बढ़ती दूरी के हिसाब से कम होती चली जाती है। ऐसे में प्रतिमा के निकट से परिक्रमा करने से दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मंडल से निकलने वाले तेज की हमें सहज ही प्राप्ति हो जाती है।
जानिए, परिक्रमा का नियम
दैवीय शक्ति के आभामंडल की गति दक्षिणवर्ती होती है, अत: उनकी दिव्य प्रभा सदैव ही दक्षिण की ओर गतिमान होती है। यही कारण है कि दाएं हाथ की ओर से परिक्रमा किया जाना श्रेष्ठ माना गया है।
परंपरा के अनुसार पूजा-पाठ, अभिषेक या दर्शन के उपरांत परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए। परिक्रमा शुरु करने के पश्चात बीच में रुकना नहीं चाहिए, साथ ही परिक्रमा वहीं खत्म करें जहां से शुरु की गई थी। ध्यान रखें कि परिक्रमा बीच में रोकने से वह पूर्ण नहीं मानी जाती। परिक्रमा के दौरान मन में निदा, बुराई, दुर्भावना, क्रोध, तनाव आदि विकार न आने दें। जूते-चप्पल निकाल कर नंगे पैर ही परिक्रमा करें।
किस देव की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए
माना जाता है कि प्रतिमा की जितनी अधिक परिक्रमा की जाए, उतना ही अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होती है। परंतु शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं के लिए परिक्रमा की अलग संख्या निर्धारित की गई है।
1. सूर्य मंदिर की सात परिक्रमा करने से मन पवित्र और आनंद से भर उठता है तथा बुरे और कड़वे विचारों का विनाश होकर श्रेष्ठ विचार पोषित होते हैं। सूर्य को अर्घ्य देकर ओम भास्कराय नम: का जाप कई रोगों का नाशक है।
2. दुर्गा मां की एक परिक्रमा कर नवार्ण मंत्र का ध्यान जरूरी है, इससे सँजोए गए संकल्प और लक्ष्य सकारात्मक रूप लेते हैं।
3. शिवजी की आधी परिक्रमा की जाती है। शिव जी की परिक्रमा करने से नकारात्मक विचार और बुरे स्वप्नों का नाश होता है। ध्यान रहे भगवान शिव की परिक्रमा करते समय जलहरी की धार को न लांघे।
4. भगवान विष्णुजी एवं उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए। विष्णु जी की परिक्रमा करने से हृदय परिपुष्ट और संकल्प ऊर्ज़ावान बनकर सकारात्मक सोच की वृद्धि करते हैं।
5. गणेशजी और हनुमानजी की तीन परिक्रमा करने का विधान है। गणेश जी की परिक्रमा करने से सोचे हुए कार्य निर्विघ्न पूर्ण होते है और गणेशजी के स्वरूप व मंत्र का विधिवत ध्यान करने पर कार्य सिद्ध होने लगते हैं।
6. महिलाओं द्बारा वटवृक्ष, पीपल एवं तुलसी की एक या अधिक परिक्रमा करना सौभाग्य प्रदान करता है।