कुश नान कंडक्टर होता है, इसलिए पूजा पाठ, जप, होम आदि धार्मिक अनुष्ठानों में कुश का आसन बिछाने का विधान है। पवित्री स्वरूप हाथ की उंगली में धारण करते हैं। सावधानी यह बरती जाती है कि हाथ बार-बार इधर-उधर करने से हाथ का स्पर्श धरती से ना हो, अन्यथा संचित शक्ति अर्थ होकर पृथ्वी में चली जाएगी। अगर भूलवश हाथ पृथ्वी पर पड़ जाए तो भूमि से कुश का ही स्पर्श होगा।
कुश की पवित्री धारण करने का मुख्य कारण आयु वृद्धि और दूषित वातावरण को विनिष्ट करना बतलाया गया है।
इस के स्पर्श से जल एवं अन्य पदार्थ पवित्र हो जाते हैं, ऐसी सनातन मान्यता है।
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