प्राचीन तीर्थ भरुच ( भरौंच ): गुजरात प्रदेश में भराँच अथवा भरुच का पुराना नाम भृगुक्षेत्र है। महर्षि भृगु का यहां आश्रम था। यह पवित्र तीर्थस्थल नर्मदा नदी के तट पर बसा है। यहां से थोड़ी ही दूर पर नर्मदा नदी का संगम अरब सागर से होता है। अत्यंत प्राचीनकाल से ही भरुच एक प्रमुख तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध रहा है। महाभारतकाल में उल्लेख मिलता है कि बलशाली भीम का पुत्र घटोत्कच भी यहां रहा था। पुराणों में ऐसी कथा आती है कि राजा बलि ने यहां पर दस अश्वमेध यज्ञ पूर्ण किए थे। यहां नर्मदा तट पर दशाश्वमेध घाट है, जहां श्राद्धकर्म किया जाता है। भृगु क्षेत्र में 55 तीर्थ हैं। पुरुषोत्तम मास में पंचतीर्थ यात्रा होती है।
शास्त्रों में नर्मदा परिक्रमा का महत्व बतलाया गया है, जिसका आरंभ भरुच के पास नर्मदा के सागर संगम से होता है। यात्रीगण पैदल अमरकंटक तक जाते हैं और नर्मदा के उदगम स्थान पर पूजाकर पुन : यहां वापस लौटते हैं। यहां बौद्धधर्म के मंदिर और स्तूप हैं, जो सम्राट अशोक के द्वारा निर्मित किए गए थे। सागर में मिलने के पहले नर्मदा नदी की चौड़ाई काफी अधिक ( 4 से 5 किलोमीटर ) हो गई है तथा इसके तट पर अनेक पुराने और नए घाटों पर पूजास्थल विद्यमान हैं। भरुच में अनेक प्राचीन स्थान हैं। महारुद्र, शंखोद्धार, गौतमेश्वर, दशाश्वमेध, सौभाग्य सुंदरी धूतपाप, एरंडी तीर्थ, शालग्रामतीर्थ, चंद्रप्रभास, कपिलेश्वर, हंसतीर्थ, दारु के श्वर, क्षेत्रपालतीर्थ, बालखिल्येश्वर सहित और भी दर्शनीय तीर्थ हैं।
यात्रा मार्ग
भरौंच एक मुख्य रेलवे स्टेशन है तथा यह मुंबई – अहमदाबाद मुख्य रेलमार्ग पर है, जहां राजकोट, मुंबई तथा नई दिल्ली से पहुंचा जा सकता है।