भरत मिलाप में निकले अश्रु से मोम बन गईं शिलाएं, आस्था का केंद्र

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चित्रकूट। विश्व की आध्यात्मिक राजधानी के नाम से विख्यात धर्म नगरी चित्रकूट स्थित कामदगिरि परिक्रमा मार्ग में एक ऐसा स्थान भी है,जहाँ बनवास काल के दौरान प्रभु श्रीराम को मनाने अयोध्या के राजकुमार भरत आये थे। जिस स्थान पर दोनों भाइयों का मिलाप हुआ था, वह स्थान भरत मिलाप मंदिर के नाम से जाना जाता है।
दोनों भाईयों के मिलन से निकले आंसुओं की धारा से नीचे की शिलाएं पिघल कर मोम बन गई थी। जिसमें आज भी भरत और राम के चरण चिन्ह बने हुए हैं। इन चरण चिन्हों के दर्शन और पूजन के लिए देश भर से प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु आते है।

धर्म नगरी के प्रमुख संत मदन गोपाल दास महाराज बताते हैं कि जिस स्थान को भरत मिलाप मंदिर के नाम से जाना जाता है,उस पवित्र स्थल पर आज भी दोनों भाइयो के मिलन से निकले प्रेम के आंसुओं से पिघले पत्थरों पर भगवान राम और भरत के चरण चिन्ह उभरे हुए है। जिसके दर्शन और पूजन लिए देश भर से श्रद्धालु आते हैं।

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भरत मिलाप मंदिर के महंत राममनोहर दास बताते है कि साढ़े तीन सौ करोड़ वर्ष पुराना पृथ्वी का इतिहास है। वही 84 कोस के परिक्षेत्र में फैले धर्म नगरी चित्रकूट का भी करोड़ों वर्ष पुराना इतिहास है। सभी पुराने वेद और पुराणों में धर्म नगरी चित्रकूट का उल्लेख मिलता है।
उन्होंने ने बताया कि चित्रकूट में मिल चुके जीवाश्म की स्वीडन के वैज्ञानिकों द्वारा 160 करोड़ वर्ष पुराना होने की पुष्टि कर चित्रकूट की भूमि के ऐतिहासिक होने के सबूत दिए है। उन्होंने बताया कि पुराणो में उल्लेख है कि धर्म नगरी के 84 कोसीय परिक्षेत्र में स्थित कालिंजर पर्वत में ही भगवान ब्रम्हा ने यज्ञ कर सृष्टि का सृजन किया था।
उन्होंने बताया कि इसीलिए ऋषि मुनियों के सुझाव पर बनवास काल के दौरान भगवान श्री राम ने सर्वाधिक समय साढ़े 11 वर्ष चित्रकूट में व्यतीय किया था। इसी पवित्र भूमि पर कामदगिरि परिक्रमा मार्ग में स्थित भरत मिलाप मंदिर है। कहा जाता है कि यहीं भरत जी भगवान श्री राम से मिलने आए थे। भरत जी के लाख मनाने के बाद भी प्रभु श्रीराम ने ‘‘रघुकुल रीति सदा चल आई प्राण जाए पर वचन न जाए‘‘ का पालन करते हुए पिता के वचन का पालन करने को अयोध्या के राज को ठुकरा दिया था।
इस मंदिर में आज भी पत्थरों पर भरत- राम मिलाप के दर्शन किए जा सकते हैं। इसी पावन भूमि पर जटिल शिलाओं ने भी दोनोें भाईयों के अटूट प्रेम को देखकर अपनी जड़ता छोड़ दी थी। जिससे दोनों भाई के पदचिन्ह बन गए थे जिनके दर्शन आज भी किए जाते हैं। वहीं भरत मंदिर के महंत दिव्य जीवन दास महाराज का कहना है कि चित्रकूट विश्व की सबसे पुनीत भूमि है। कामदगिरि परिक्रमा मार्ग पर स्थित इसी प्राचीन स्थल पर भगवान राम और भरत का मिलन हुआ था।
जिसके सबूत आज भी पत्थरों पर उभरे चरण चिन्हों को देखकर लगाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि इन शिलाओं पर उभरे भगवान श्री राम और भरत के चरण चिन्हो के दर्शन और पूजन के लिए देशभर से श्रद्धालुओं का वर्ष भर लगा रहता है।उन्होने केंद्र और प्रदेश की भाजपा सरकार से धर्म नगरी में स्थित धार्मिक और पौराणिक महत्व के स्थलों का समुचित पर्यटन विकास कराये जाने की मांग की है।
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