मानव की चिंताओं का हरण करने वाली है चिंतपूर्णी देवी, दुखो का नाश करने वाली, सभी सुख वैभव, धन संपत्ति प्राप्त कराने वाली माता चिंतपूर्णी देवी का स्थान हिमाचल प्रदेश के उना जिले के तहत भरवाई नामक स्थान पर ऊंची पहाड़ी पर है। जिनकी कृपा से संकट दूर होते है।भगवती चिंतपूर्णी के दर्शनों सेप्राणी चिंता मुक्त होकर प्रसन्नता पूर्वक जीवन व्यतीत करता है। मां चिंतपूर्णी देवी अपनी कृपा से, अपनी कृपा रूपी प्रसाद से भक्तों रूपी पत्रों की झोलियां सदैव भर्ती चली आ रही हैं, जो भी भक्त माता के दरबार में अपना शीश झुकाकर लौटा है। उसकी मनोकामना को मैया ने पूर्ण किया है इसीलिए चिंतपूर्णी कही जाती हैं अर्थात चिंताओं का हरण कर सुख वैभव से संपन्न करने वाली देवी।
देवी चिन्तापूर्णी की गाथा
पहले के समय में माईदास नामक भक्त थे। उसका ज्यादातर समय पूजा पाठ और देवी अर्चना में व्यतीत होता था। यही कारण था कि वे अपने भाइयों के साथ व्यापार व अन्य कामों में सहयोग नहीं दे पाते थे। अतः उनके भाई उनसे नाराज होकर अलग कर दिया ,लेकिन पहले की भांति देवी भगवती की पूजा करते रहें। एक बार वह अपने ससुराल जा रहे थे। मार्ग में चलते-चलते हुए थक गए थे। तो एक बट वृक्ष बरगद के नीचे विश्राम करने हेतु लेट गए। तत्काल ही उनकी आंख लग गई। थोड़ी देर पश्चात स्वप्न में उन्होंने देखा कि दिव्यतेज से युक्त एक कन्या उपस्थित हुई। उस कन्या के मुख्य मंडल पर विराजमान ज्योति से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे भगवान सूर्य देव अपने सभी कलाओं सहित उदित हुए हो। उसके बाद वह कन्या बोली है- भक्त माई दास तुम इसी स्थान पर रहकर मेरी सेवा करो तुम्हारा कल्याण होगा। जब उनकी निद्रा भंग हुई तो स्वप्न के विषय में विचार करते हुए उठकर ससुराल की ओर चल दिए। ससुराल से वापस लौटते समय उनके पांव स्वतः ही उस वट वृक्ष के नीचे आकर रुक गए। उनके हृदय में देवी के प्रति पूर्ण आस्था थी। जिस कारण उनका मन वहां से जाने को नहीं हुआ। अतः वट वृक्ष की छाया तले बैठकर भगवती की स्तुति करते हुए कहने लगे- हे देवी मैंने सदैव आपकी पूजा सच्चे मन से की है। हे सर्वशक्तिमान देवी प्रत्यक्ष में मुझे दर्शन देकर आदेश दें जिससे मेरे मन का संशय दूर हो।
भक्त माई दास की विनती शंकर देवी सिंह वाहिनी दुर्गा चतुर्भुजी रूप में प्रकट होकर दर्शन दी और बोली- हे भक्त इस वट वृक्ष के नीचे मैं चिरकाल से पिंडी रूप में स्थित हूं और छिन्नमस्तिका के नाम से पुकारी जाती हूं। मेरे दर्शनों से तुम्हारी सभी कामनाएं पूर्ण हुई और चिंताओं के भंवर जाल से तुम्हें मुक्ति मिली ऐसा जानो। तुम्हारे चिंताओं को दूर करने के कारण आज की तिथि से मैं चिंतपूर्णी के नाम से विख्यात होउंगी। तब माई दास ने कहा- हे देवी मैं अज्ञानी मूर्ख सांसारिक प्राणी हूं। जब तक पूजा-पाठ का मुझे ज्ञान नहीं है। मैं किस प्रकार तुम्हारी आराधना करूंगा फिर ना तो यह जल है ना रोटी है। उस समय देवी ने स्वयं अपने श्री मुख से कहा- तुम मेरे मूल मन्त्र