पूर्व जन्म में दिए वचन को निभाकर कान्हा ने किया यशोदा और नंद बाबा को आनंदित

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कृष्ण बचपन से ही नटखट थे। बाल्यकाल में वह प्रतिदिन लीलाएं कर सबको मोहित करते थे। श्री कृष्ण ने बाल्यकाल में ही असुर सम्राज्य को चुनौती दे दी थी। उन्होंने दर्जनों असुरों का बाल्यकाल में ही लीला करते हुए उनका संहार किया था। भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण ने न सिर्फ बाल्यकाल में असुरों का संहार किया, बल्कि विविध लीलाओं के माध्यम से माता यशोदा और पिता नंदबाबा का मन भी मोहा।

दरअसल पूर्व जन्म में नंद बाबा और यशोदा मैया ने भगवान की उपासना करके भगवान से पुत्र के रूप में वात्सल्य सुख को प्राप्त करने की कामना की थी। भगवान भला उनकी उस इच्छा को अधूरी कैसे रहने देते? इसलिए एक दिन श्री कृष्ण को नयी लीला करने की सूझी और माता को आनंद विभोर कर दिया। वैसे तो वे नित्य नयी-नयी लीलाओं से मां को रिझाने का प्रयास करते रहते थे। उस दिन कन्हैया नंद के आंगन में घुटनो के बल खेल रहे थे। अचानक उनकी दृष्टि अपनी परछाई पर पड़ी, जो उन्हीं का अनुसरण कर रही थी। जब वे हंसते थे तो परछाई भी हंसती थी, जब वे चलते तो वह भी चलती थी। कन्हैया बहुत खुश हुए और सोचा कि चलो एक नया साथी मिल गया। घर में अकेले खेलते-खेलते मेरा मन ऊब गया था। अब यह रोज मेरा मन बहलाया करेगा।

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कान्हा ने अपनी परछाई से कहा कि भैया, तुम कहां रहते हो? चलो हम दोनों मित्र बन जाएं। जब मैं माखन खाऊंगा तो तुम्हें भी खिलाऊंगा, जब दूध पीऊंगा तो तुम्हें भी पिलाऊंगा। दाऊ भैया तो मुझसे बड़े है, इसलिए मुझसे लड़ जाते है। तुम मुझसे लड़ना नहीं। हम लोग खूब प्रेम से रहेंगे। वैसे भी यहां पर किसी चीज की कमी नहीं है। तुम्हें जितना भी माखन मिश्री चाहिए होगा, वह मैं तुम्हें मैया से कहकर दिला दूंगा।

इस तरह करते हुए कन्हैया अपनी छाया को पकड़ने का प्रयास करने लगे। बार-बार आगे पीछे जाते, इधर घूमते-उधर घूमते लेकिन परछाई किसी के पकड़ में आई है, जो कन्हैया के पकड़ में आती। जब कन्हैया थककर हार गए और परछाई नहीं पकड़ पाए तो रोने लगे। उन्हे रोता देख यशोदा मां ने पूछा कि कान्हां, तुम्हें क्या हुआ?, इस तरह क्यों रो रहे हो?

तब कान्हा ने माता को अपना प्रतिबिब दिखाकर बात बदल दी। श्री कृष्ण बोले कि मां यह कौन है? यह हमारे घर में माखन के लोभ में घुस आया है। मै क्रोध करता हूं तो यह भी क्रोध करता है। मैया आओ ना, हम दोनों मिलकर इसे बाहर कर दे। मैया कन्हैया के भोलेपन पर मुग्ध हो गयीं और कन्हैया के आंसू पोछकर उन्हें गोद में ले लिया। कान्हा ने नित्य की तरह इस लीला को करके यशोदा को पूर्व जन्म दिए वचन को निभाया।

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