भगवान सूर्य का व्रत- पूजन सांसारिक कष्टों से मुक्ति दिलाता है, रविवार का व्रत कुष्ठ रोगों से मुक्ति के लिए किया जाता है। व्रत में नमक व तेल युक्त भोजन नहीं करना चाहिए। व्रती को फलाहार आदि सूर्य के अस्त होने से पूर्व ही लेना चाहिए, यदि निराहार ही सूर्यास्त हो जाए तो सूर्योदय तक व्रत ही रखना चाहिए। इन दिन में पूजा करके कथा सुनी जाती है।
पावन कथा-
एक सास- बहू थी, सास का पुत्र सूर्य के अवतार थे। थोड़े ही समय के लिए घर आते थे। फिर अंतर्धान हो जाते थे, जब कभी आते तो एक हीरा अपनी मां और पत्नी को दे जाते थे। इसी से वे जीवन-यापन कर रही थी। एक दिन मां बेटे से बोली- जितना तुम हमें खर्च करने के लिए दे जाते हो, उससे हमारा गुजारा नहीं होता है तो पुत्र क्रोधित होकर कहने लगा- अपने भरण पोषण के सिवाय आप कुछ और नहीं करतीं और आपकों अपने कर्तव्यों का ध्यान नहीं। इस कारण आपकों अभाव सताता है। अब दोनों सास-बहू नियम से काॢतक स्नान करने के लिए जाने लगीं। 12 वर्ष बाद पत्नी ने सूर्य बलि से कहा- अब काॢतक स्नान का उद्यापन करा दो।
सूर्य बली के सामने अपनी इच्छा प्रकट करते ही घर में कंचन बरसने लगा। घर धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया तो बहू ने काॢतक का पूजन कर सूर्य का भी पूजन किया तो सूर्य देव ने दर्शन देकर वर मांगने के लिए कहा, इस पर बहू कहने लगी- मेरा पति मुझसे दूर रहता है, मैं उसके सहयोग का वरदान चाहती हूं, रात को सूर्य बली ने आकर मां से कहा कि आज मैं घर पर ही सोऊंगा। इस पर सास-बहु की प्रसन्नता का कोई ठिकाना ना रहा, रात्रि में सूर्य देव आकर यहां लेट गए तो संसार संसार में अंधकार छा गया।
सब देवता भागे-भागे बुढिया के पास आए और कहने लगे कि अपने पुत्र को जगाओ, बुढिय़ा ने पुत्र को जगाया तो सूर्य ने बाहर आकर देवताओं से कहा कि जब तक संसार में सास- बहू काॢतक स्नान करती हैं तब तक गंगा उनके घर के पास से बहे, रिद्धि सिद्धि यहां वास करें, देवता भी सूर्य की बात मान गए तभी से स्त्री समाज में काॢतक स्नान का विशेष महत्व है और इससे सारे पापों का नाश होता है। अंत में मनुष्य स्वर्ग को प्राप्त करता है
-सनातनजन डेस्क