जितेंद्रिय, साधनपरायण और श्रद्धावान मनुष्य ज्ञान को प्राप्त होता है और ज्ञान को प्राप्त होकर वह बिना विलम्ब के तत्काल ही भगवत्प्राप्ति रूप परम शांति को प्राप्त हो जाता है।
जो मनुष्य ध्यान योग, ज्ञान योग और कर्म योग आदि के बारे कुछ नहीं जानता है, ऐसे अविवेकी मनुष्य का भी सत्पुरुषों का संग करके उनके आज्ञानुसार साधन करने पर उद्धार हो सकता है, परन्तु इनसे दूसरे अर्थात जो मंदबुद्धि वाले पुरुष हैं, वे ही इस प्रकार न जानते हुए दूसरों से अर्थात तत्व के जानने वाले पुरुषों से सुनकर ही तदनुसार उपासना करते हैं और वे श्रवण परायण पुरुष भी मृत्युरूप संसार सागर से नि:संदेह तर जाते हैं। अतएव परमात्मा की प्राप्ति न होने में श्रद्धा और आदरपूर्वक तत्परता के साथ साधन न करना ही मुख्य कारण है, इसलिए हमे श्रद्धा और आदरपूर्वक तत्परता के साथ साधन करना चाहिए।
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