वेद स्वाध्याय: सामवेद मंत्र 980 में आनन्दरस के प्रवाह की आकांक्षा की गई है। मंत्र निम्न है।
सो अर्षेन्द्राय पीतये तिरो वाराण्यव्यया।
सीदन्नृतस्य योनिमा।।
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मंत्र का पदार्थ सामवेद भाष्यकार वेदमूर्ति आचार्य (डॉ०) रामनाथ वेदालंकार जी रचित:- हे पवमान सोम अर्थात् प्रवाहशील ब्रह्मानन्दरस! सत्य के आश्रय परमात्मा के पास स्थित हुआ वह प्रशंसनीय तू कठिनाई से अतिक्रमण किए जाने योग्य तथा योगमार्ग से रोकने वाले व्याधि, स्त्यान, संशय, प्रमाद, आलस्य आदि विघ्नों को तिरस्कृत करके जीवात्मा के पान के लिए प्रवाहित हो।
भावार्थ:- परमात्मा के पास से बहा हुआ परमानन्द का प्रवाह स्तोता की आत्मभूमि को सींचता हुआ उसे सद्गुणरूप सस्यों से श्यामल कर देता है।
-प्रस्तुतकर्ता मनमोहन आर्य
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