saanchee ke bauddh stoop va mandirसांची के निकट का हवाई अड्डा भोपाल है, जहां से दिल्ली, मुंबई, ग्वालियर, इंदौर आदि से सीधी सेवाएं हैं। यहां से सांची 78 किलोमीटर दूर है। रेल मार्ग में झांसी – इटारसी के मध्य विदिशा स्टेशन है, जहां से इसकी दूरी 10 किलोमीटर है। : यहाँ बुद्ध से संबंधित अनेक स्मारकों, स्तूपों, स्तंभों, चैत्यों और पवित्र पाठ्य स्थलों से परिपूर्ण है। यह मध्य प्रदेश में विदिशा नगर के पास पहाड़ी स्थल पर बना हुआ है। इन पहाड़ी श्रृंखलाओं को विदिशागिरी, चैत्यागिरी या काकन्या पर्वत कहा जाता है। ये पहाड़ी 90 मीटर ऊंची है और दूर से एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत करती है। इन स्तूपों के निर्माण में सम्राट अशोक का विशेष योगदान है। ये सभी स्मारक और अन्य स्थल अति प्राचीन हैं, जो अपनी पुरातन सभ्यता को प्रदर्शित करते हैं। इनका निर्माण तीसरी शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी के मध्य माना गया है।
सांची के महत्वपूर्ण स्थल
- बौद्ध मंदिर : लंका की एक बुद्ध संस्था ने इसका निर्माण सन् 1953 में कराया था। इसमें बुद्ध की एक सुंदर प्रतिमा स्थापित है। यहां पर बुद्ध के परम शिष्य सारीपुत्रा व महामोदाग्यालयाना के अस्थि अवशेष सुरक्षित रखे हैं, जो प्रत्येक वर्ष में केवल एक दिवस नवंबर माह के अंतिम रविवार को ही दर्शन हेतु रखे जाते हैं। मंदिर प्रात : 8 से 12.00 बजे तक व सायं 1.00 से 5.00 बजे खुला रहता है।
- स्तूप : पूरी पहाड़ी पर अनेक छोटे व बड़े स्तूप दृष्टिगोचर होते हैं, जिसमें कुछ ही दर्शनीय हैं। सबसे बड़ा स्तूप सम्राट अशोक द्वारा निर्मित है। इसके बाद इसका पुनर्निर्माण पत्थरों द्वारा संघ काल में किया गया, जिसमें इसमें सीढ़ियां बनाई गईं। तीसरे विस्तार में इसके चारों ओर चार द्वार या तोरण निर्मित किए गए। स्तूप के शिखर पर एक रेलिंग युक्त स्थान भी बनाया गया। इस प्रकार ये स्तूप अति सुंदर स्मारक रूप में सांची में स्थित हैं। अन्य स्तूप न ही सुंदर हैं और न ही दर्शनीय हैं, पर ऐतिहासिक महत्त्व के हैं।
- स्तंभ : सबसे बड़े स्तूप या महास्तूप के निकट अशोक स्तंभ हैं, जो टूटा हुआ है। इसका ऊपरी शेरों वाला भाग म्यूजियम में सुरक्षित रखा है। ये स्तंभ बुद्ध सभ्यता के प्रतीक माने जाते हैं।
- मंदिर : ये मंदिर केवल एक चौकोर स्थान के रूप में होते हैं जिन पर चार स्तंभों से घिरी एक सपाट छत होती है। यहां ऐसे अनेक स्थल हैं, पर केवल एक ही पूर्ण है। शेष में केवल स्तंभ हैं, छत नहीं है। ज्यादातर जीर्ण अवस्था में हैं।
- चैत्या : यह एक प्रकार का पठन – पाठन स्थल होता है, जिसमें एक चबूतरे पर सपाट छत होती है। एक इस प्रकार का स्थल महास्तूप के समक्ष है, जिसमें केवल स्तंभ ही हैं। इन स्थानों पर बुद्ध के शिष्यों को ज्ञान दिया जाता था।
- विहार : ये बौद्ध भिक्षुओं के रहने के स्थान होते थे, जो जीर्ण अवस्था में हैं। इनका निर्माण भी सम्राट अशोक ने करवाया था।
- म्यूजियम : सांची के पर्वत स्थल के नीचे एक सुंदर म्यूजियम है, जिसमें सांची स्तूप, स्तंभ व चैत्य आदि से संबंधित सभी वस्तुएं रक्षित करके प्रदर्शित की गई हैं। इसमें सभी सामग्री चार गैलरियों में प्रदर्शित की गई हैं।