समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है सकट चौथ व्रत-पूजन से

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भगवान गणेश का पूजन सकठ चौथ पर किया जाता है। इस व्रत-पूजन का विशेष महत्व माना जाता है। प्रथम पूज्य गणेश जी के पूजन से मनुष्य के समस्त संताप समाप्त हो जाते है। इस दिन संकट हरण प्रथम पूज्य गणपति भगवान गणेश का पूजन होता है।

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यह व्रत समस्त कष्टों को दूर करने वाला है। इससे समस्त इच्छाओं व कामनाओं की पूर्ति होती है। इस दिन स्त्रियां दिन भर निर्जल व्रत रख कर शाम को फलाहार ग्रहण करती हैं। दूसरे दिन सुबह सकठ माता पर चढ़ाए गए पूरी – पकवानों को प्रसाद रूप में ग्रहण करती हैं। तिल को भून कर गुड़ के साथ कूट लिया जाता है। तिलकुट का पहाड़ बनाया जाता है। कहीं – कहीं तिलकुट का बकरा भी बनाया जाता है। उसकी पूजा करके घर का कोई बच्चा तिलकुट के बकरे की गर्दन काट देता है । सबको इसका प्रसाद दिया जाता है। पूजा के बाद सब कथा सुनते हैं। सकठ चौथ ( माघ कृष्ण चतुर्थी ) माघ कृष्ण चतुर्थी को सकठ का पर्व मनाया जाता है।

सकट चौथ की पावन कथा

एक समय की बात है कि किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बना कर आँवा लगाया तो आँवा पका ही नहीं। थक हार कर वह राजा के पास जा कर प्रार्थना करने लगा। राजा ने राजपंडित को बुला कर कारण पूछा तो राज – पंडित ने कहा कि हर बार आँवा लगाते समय बच्चे की बलि देने से आँवा पक जाएगा। राजा का आदेश हो गया। बलि आरम्भ हुई। जिस परिवार की बारी होती वह परिवार अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता। इसी तरह कुछ दिनों बाद सकठ के दिन एक बुढ़िया के लड़के की बारी आई। बुढ़िया के लिए वही जीवन का सहारा था। पर राजाज्ञा कुछ नहीं देखती। दु:खी बुढ़िया सोच रही थी कि मेरा यही तो एक बेटा है , वह भी सकठ के दिन मुझ से जुदा हो जाएगा। बुढ़िया ने लड़के को सकठ की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा , ’’ अब भगवान का नाम लेकर आँवा में बैठ जाना। सकठ माता रक्षा करेंगी ।’’ बालक आँवा में बिठा दिया गया और बुढ़िया सकठ माता के सामने बैठ कर पूजा , प्रार्थना करने लगी। पहले तो आँवा पकने में कई दिन लग जाते थे पर इस बार सकठ माता की कृपा से एक ही रात में आँवा पक गया। सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया। आँवा पक गया था। बुढ़िया का बेटा तथा अन्य बालक भी जीवित व सुरक्षित थे। नगर निवासियों ने सकठ की महिमा स्वीकार की और लड़के को भी धन्य माना। सकठ की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे और मंगल ही मंगल हुआ।

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