वेद विचार
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अन्य किसी से अप्रेरित अर्थात् स्वभाव से निकले हुए, शब्दकारी दिव्य संदेश सुनाने वाले, पापहारी ब्रह्म के आनंद रस हमारे राष्ट्र के विद्वानों में बहुत अधिक भलीभांति प्राप्त हों। केवल भोग की इच्छा करने वाले अदानशील हमारे आत्मिक और बाह्य शत्रु हमसे दूर हो जाएं और सद्विचार हमें प्राप्त हों।
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हम मनुष्यों को चाहिए कि दुर्विचार रूप, काम-क्रोध आदि रूप और चोर-ठग आदि रूप शत्रुओं को दूर करें, सद्विचारों को पल्लवित करें और ब्रह्म के आनंद-रसों को अपने आत्मा में प्रवाहित करें। इसके लिए हमें ईश्वर विषयक वेदादि सद्ग्रंथों का स्वाध्याय, ईश्वर का ध्यान व उसकी उपासना करनी चाहिए।
-प्रस्तुतकर्ता मनमोहन आर्य
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