भगवान् के स्वरूप पिता – माता , ब्राह्मण , सन्त , गुरुदेव , तुलसी , पीपल , मन्दिर तथा सब देवोंको प्रणाम करना चाहिये । शरीरसे साष्टांग अथवा वाणी से प्रणाम हम यह भी सम्भव न हो तो मन – ही – मन से नमस्कार कर लेना चाहिये । इस प्रकार भक्ति से युक्त जिसका जीवन है , वह मुक्तिदाता श्रीकृष्णके चरणों को , प्रेमको पाने का अधिकारी है। उसे भक्ति अवश्य प्राप्त होती है । राजा बलि ने अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया , अन्त में भगवान ने और देवताओं ऋषियोंने बड़ाई की।— एक संत की वाणी
https://www.sanatanjan.com/%e0%a4%ad%e0%a4%97%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%b7%e0%a5%8d%e0%a4%a3%e0%a5%81-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af-%e0%a4%a4%e0%a5%81%e0%a4%b2/
वैज्ञानिक दृष्टि से भी है पीपल का बहुत महत्व, पीपल के निकट यह बिल्कुल न करें