रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की महिमा अनंत है, इसका वर्णन कर पाना संभव नहीं है। यहां पर दर्शन पूजन से भगवान भोलेनाथ के साथ ही श्री नारायण की भी असीम कृपा भक्त को प्राप्त होती है। भूतभावन के इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना जगत के पालनहार भगवान विष्णु के अवतार मर्यादापुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र ने की थी। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का बखान स्कन्दपुराण में विस्तार से किया गया है।
धर्म शास्त्रों के अनुसार जब माता सीता का अपहरण राक्षसराज रावण ने कर लिया था, तब भगवान श्री रामचंद्र लंका चढ़ाई के लिए जा रहे थ्ो, उस समय भगवान श्री राम ने समूद्रतट पर बालु का शिवलिंग बनाकर उनका पूजन किया था। मान्यता यह भी है कि इस स्थान पर रुक पर भगवान श्री राम जल पी रहे थ्ो, तभी आकाशवाणी हुई कि मेरी पूजा किए बिना जल पी रहे हो? यह सुनते ही भगवान श्री राम ने बालु का शिवलिंग बना कर उनकी पूजा की और युद्ध में विजय का वर मांगा।
भगवान श्री राम से भगवान भोलेशंकर बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें युद्ध मंे विजय का वरदान दे दिया। भूतभावन भगवान शंकर ने लोक कल्याण के लिए यहां लिंग के रूप में निवास करने की भगवान श्री राम की प्रार्थना भी स्वीकार भी कर ली। उसी समय से भगवान भोलशंकर यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में अवस्थित हैं। इस ज्योतिर्लिंग को लेकर दूसरी कथा भी प्रचलित है, वह भी श्री राम से ही सम्बन्धित है। जब श्री राम रावण का वध करके लौट रहे थ्ो, तब उन्होंने अपना पहला पड़ाव समुद्र के इस पास गन्धमादन पर्वत पर डाला था।
उस समय बहुत से ऋषि-मुनि उनके दर्शन के लिए आए। उन सभी का आदर सत्कार करते हुए भगवान श्री राम ने उनसे कहा कि पुलस्त्य के वंशज रावण का वध करने के कारण उन पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया है। आप लोग मुझे इससे निवृत्ति का उपाय बताए। यह सुनकर ऋषियों ने यहां शिवलिंग के स्थापना का सुझाव दिया था। यह भी कहा था कि इससे आप ब्रह्महत्या के पाप से छुटकारा पा जाएंगे। भगवान श्री राम ने उनकी बात सुनकर श्री हनुमान जी को कैलाश पर्वत जाकर वहां से शिवलिंग लाने का आदेश दिया। श्री हनुमान जी रामाज्ञा से तुरंत ही वहां पहुंचे लेकिन उन्हें भगवान शिवजी के दर्शन उस समय नहीं हो सके। अत: हनुमान जी वहां भगवान शिव के दर्शन के लिए तपस्य के लिए बैठ गए। कुछ समय बाद शिव जी ने उन्हें दर्शन दिए तो श्री हनुमान जी शिवलिंग लेकर लौटे लेकिन तब तक शुभ मुहूर्त बीत जाने की आशंका से यहां सीता माता के द्बारा लिंग की स्थापना कराया जा चुका था। हनुमान जी को यह देखकर बहुत दुख हुआ। उन्होंने अपनी व्यथा से श्री राम को अवगत कराया।
भगवान श्री राम ने पहले लिंग स्थापना की वजह बताते हुए हनुमान जी से कहा कि यदि तुम चाहो तो इस लिंग को यहां से उखाड़ दो। तब हनुमान जी प्रसन्न होकर लिंग को उखाड़ने लगे, लेकिन वहां स्थापित लिंग टस से मस नहीं हुआ तो हनुमान जी ने उसे अपनी पूछ से उखाड़ने का प्रयास किया, लेकिन फिर भी वह टस से मस नहीं हुआ। इसके उलट हनुमान जी धक्का खाकर एक कोस दूर मूच्र्छित होकर गिर गए। उनके शरीर से रक्त बहने लगा।
यह देखकर सभी व्याकुल हो गए। इस पर माता सीता पुत्र से प्यारे हनुमान के शरीर पर हाथ फेरते हुए विलाप करने लगीं। मूच्र्छा दूर होने पर हनुमान जी ने भगवान श्री राम को परम ब्रह्म के रूप में सामने देखा। तब भगवान श्री राम ने उन्हें भगवान शंकर जी की महिमा बताकर उनका प्रबोध किया और हनुमान के द्बारा लाए शिवलिंग की स्थापना भी वहीं पास में करवा दी।