saptapuree mein ayodhya: param paavan mukti sthal सप्तपुरियों में अयोध्या में राम, मथुरा में कृष्ण, वाराणसी में शिव, द्बारका में कृष्ण, उज्जयिनी में शिव, हरिद्बार में भगवान विष्णु, कांचीपुरम में माता पार्वती शामिल हैं। प्राचीन सांस्कृतिक सप्त पुरियों में अयोध्या का स्थान प्रथम है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के भी पूर्ववर्ती सूर्यवंशी राजाओं की यह राजधानी रही है। इक्ष्वाकु से श्रीरामचंद्र तक सभी चक्रवर्ती नरेशों ने अयोध्या के राजसिंहासन को विभूषित किया। राम की अवतार- भूमि होकर अयोध्या साकेत ‘ बन गई। रामचंद्रजी के साथ अयोध्या के पशु – पक्षी तक उनके दिव्यधाम चले गए जिससे प्रथम बार त्रेतायुग में ही अयोध्या नगरी उजड़ गई। श्रीराम के ज्येष्ठ पुत्र कुश ने इसे पुनः बसाया। अयोध्या में श्रीरामनवमी पर सबसे बड़ा मेला लगता है। दूसरा मेला 8-9 दिन तक श्रावण शुक्ल पक्ष में झूले का होता है। कार्तिक पूर्णिमा पर भी सरयू – स्नान करने यात्री आते हैं। मथुरा के समान अयोध्या भी आक्रमणकारियों का बार बार शिकार होती रही है। अयोध्या में प्राचीनता के नाम पर केवल भूमि तथा सरयू नदी शेष बची है। राम – लक्ष्मण की जन्मभूमि होने के अतिरिक्त अयोध्या ऋषभदेव अजित, अभिनंदन, सुमति अनंत और अचल की भी जन्मभूमि है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार अयोध्या पवित्र नदी सरयू के दक्षिण तट पर बसी हुई है।
ब्रह्माजी का ब्रह्मकुंड.. देवी सीता का सीताकुंड
सर्वप्रथम ब्रह्माजी ने अयोध्या की यात्रा की थी और अपने नाम से एक कुंड बनाया था, जो आज भी ब्रह्मकुंड नाम से प्रसिद्ध है। भगवती सीता द्वारा बनवाया गया एक सीताकुंड है, जिसे भगवान श्रीराम ने वर देकर समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला बनाया। उसमें स्नान करने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। ब्रह्मकुंड से पूर्वोत्तर में ऋणमोचन तीर्थ ( सरयू ) है। यहां लोमशजी ने विधिपूर्वक स्नान किया था। सरयू में जहां श्रीकृष्ण की पटरानी रुक्मिणी ने स्नान किया था, वहां रुक्मिणी कुंड है और उसके ईशानकोण में क्षीरोद कुंड है, जहां महाराज दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया था। उसके पश्चिमोत्तर में वसिष्ठ कुंड है। उर्वशी कुंड आदि अन्य कई तीर्थ स्कंदपुराण ‘ तथा ‘ रुद्रयामलोक्त अयोध्या – माहात्म्य ‘ में वर्णित हैं। कालक्रम में इनमें से कुछ लुप्त तथा परिवर्तित हो गए।
अयोध्या के प्रमुख स्थल
अयोध्या में सरयू के किनारे कई सुंदर तथा पक्के घाट बने हुए हैं, लेकिन अब सरयू को धारा घाटों से दूर चली गई है। यदि पश्चिम से पूर्व की ओर चला जाए, तो घाटों का क्रम इस प्रकार मिलेगा – ऋणमोचन घाट, सहस्रधारा, लक्ष्मण घाट, स्वर्गद्वार, गंगामहल, शिवाला घाट, जटाई घाट, अहिल्याबाई घाट, धोरहरी घाट, रूपकला घाट, नया घाट, जानकी घाट और राम घाट। हालाँकि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने अयोध्या को बेहद खूबसूरत बना दिया है। राम मंदिर भी बन रहा है।
- लक्ष्मण घाट : यहां के मंदिर में लक्ष्मणजी की पांच फुट ऊंची मूर्ति है। यह मूर्ति सामने कुंड में पाई गई थी। कहा जाता है कि यहीं से श्रीलक्ष्मणजी परमधाम पधारे थे।
- स्वर्गद्वार : इस घाट के पास श्रीनागेश्वरनाथ महादेव का मंदिर है। कहते हैं कि यह मूर्ति श्रीराम के ज्येष्ठ पुत्र कुश द्वारा स्थापित की गई है और इसी मंदिर को पाकर महाराज विक्रमादित्य ने अयोध्या का जीर्णोद्धार कराया। नागेश्वरनाथ के पास ही एक गली में श्रीरामचंद्रजी का मंदिर है। एक ही काले पत्थर में राम – पंचायतन की मूर्तियां हैं। बाबर ने जब जन्म – स्थान के मंदिर को तोड़ा, तब पुजारियों ने वहां से यह मूर्ति उठाकर यहां स्थापित कर दी। स्वर्गद्वार घाट पर ही यात्री पिंडदान करते हैं।
- अहिल्याबाई: घाट इस घाट से थोड़ी दूर पर त्रेतानाथजी का मंदिर है। कहते हैं कि भगवान श्रीराम ने यहां यज्ञ किया था। इसमें श्रीराम – जानकी की मूर्ति है।
- रामकोट अयोध्या में अब रामकोट ( श्रीराम का दुर्ग ) नाम का कोई स्थान नहीं रहा है। कभी यह दुर्ग था और बहुत विस्तृत था। कहा जाता है कि उसमें बीस द्वार थे, किंतु अब तो चार स्थान ही उसके अवशेष माने जाते हैं – हनुमानगढ़ी, सुग्रीव टीला, अंगद टीला और मत्तीगजेंद्र।
- जन्मस्थान : कनकभवन से आगे श्रीराम जन्मभूमि है। यहां के प्राचीन मंदिर को बाबर ने तुड़वाकर मस्जिद बनवा दी थी, किंतु अब यहां फिर श्रीराम की मूर्ति आसीन है। उस प्राचीन मंदिर के घेरे में जन्मभूमि का एक छोटा मंदिर और है। जन्मस्थान के पास कई मंदिर हैं – सीता रसोई, चौबीस अवतार, कोपभवन, रत्नसिंहासन, आनंदभवन, रंगमहल और साक्षीगोपाल आदि। अयोध्या में बहुत अधिक मंदिर हैं। यहां केवल प्राचीन स्थानों का उल्लेख किया गया है । नवीन मंदिर तथा संतों के स्थान तो अयोध्या में बहुत अधिक हैं।
- हनुमानगढ़ी : यह स्थान सरयू तट से लगभग सवा किलोमीटर दूरी पर नगर में है। यह एक ऊंचे टीले पर चार कोट का छोटा – सा दुर्ग है। 60 सीढ़ियां चढ़ने पर श्रीहनुमानजी का मंदिर मिलता है। इस मंदिर में हनुमानजी की बैठी हुई मूर्ति है। एक दूसरी हनुमानजी की छह इंच की मूर्ति वहां है, जो सदा पुष्पों से ढकी रहती है। मंदिर के चारों ओर मकान बने हुए हैं। इनमें साधु रहते हैं। हनुमानगढ़ी के दक्षिण में सुग्रीव टीला और अंगद टीला है। कुछ लोग सुग्रीव टीले का स्थान मणिपर्वत के दक्षिण – पश्चिम जहां बौद्धमठ था , बतलाते हैं।
- कनक भवन : यह अयोध्या का मुख्य मंदिर है, जो ओरछा- नरेश का बनवाया हुआ है। यह सबसे विशाल और भव्य है। इसे श्रीराम का अंतःपुर या सीताजी का महल कहते हैं। इसमें मुख्य मूर्तियां श्रीसीताराम की हैं। उनके आगे श्रीसीताराम की छोटी मूर्तियां हैं। सिंहासन पर जो बड़ी मूर्तियां हैं, छोटी मूर्तियां ही प्राचीन कही जाती हैं।
- दर्शनेश्वर : हनुमानगढ़ी से थोड़ी दूर पर अयोध्या – नरेश का महल है। इस महल की वाटिका में महादेव का सुंदर मंदिर है।
अयोध्या के आस – पास के स्थल
- सोनखर: कहा जाता है कि यहां महाराज रघु का कोषागार था। कुबेर ने यहां स्वर्ण – वर्षा की थी।
- सूर्यकुंड : रामघाट से यह लगभग आठ किलोमीटर दूर है। पक्की सड़क का मार्ग है। बड़ा सरोवर है, जिसके चारों ओर घाट बने हैं। पश्चिम किनारे पर सूर्यनारायण का मंदिर है।
- नंदीग्राम : फैजाबाद से लगभग पंद्रह किलोमीटर और अयोध्या से लगभग पच्चीस किलोमीटर दक्षिण में यह स्थान है, जहां श्रीराम के वनवास के समय भरतजी ने चौदह वर्ष तपस्या करते हुए व्यतीत किए थे । यहां भरतकुंड सरोवर और भरतजी का मंदिर है।
- गुप्तारघाट ( गोप्रतार तीर्थ ) : अयोध्या से लगभग पंद्रह किलोमीटर पश्चिम में सरयू किनारे पर यह स्थान है। फैजाबाद छावनी होकर सड़क जाती है। यहां सरयू – स्नान का बहुत माहात्म्य माना जाता है। घाट के पास गुप्तहरि का मंदिर है। गुप्तारघाट से लगभग ढाई किलोमीटर पर निर्मलकुंड है। उसके पास निर्मलनाथ महादेव का मंदिर है।
- दशरथ तीर्थ : रामघाट से बारह किलोमीटर दूर पूर्व में सरयू तट पर यह स्थान है। यहां महाराज दशरथ का अंतिम संस्कार हुआ था।
- जनौरा ( जनकौरा ) । महाराज जनक जब अयोध्या पधारते थे, तब यही उनका शिविर रहता था। अयोध्या से लगभग 17 किलोमीटर दूर फैजाबाद – सुलतानपुर सड़क पर यह स्थान है। गिरजाकुंड नामक सरोवर है, जिसके पास एक शिव मंदिर है।
यात्रा मार्ग
लखनऊ से अयोध्या 135 किलोमीटर और वाराणसी से 324 किलोमीटर है। यह नगर सरयू के दक्षिण तट पर बसा है।