सप्तश्रृंगी या वणी देवी मंदिर है आस्था का केंद्र

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आदिशक्ति भवानी के प्रसिद्ध मंदिर के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। यह है प्राचीन मंदिर सप्तश्रृंगी देवी या फिर वणी देवी का मंदिर। यह प्रसिद्ध मंदिर नासिक के निकट स्थित है। महिषासुर मर्दिनी सप्तश्रृंगी देवी की बहुत ही मान्यता है। नासिक से करीब सत्तर किलोमीटर दूर यह धाम श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। एक मान्यता के अनुसार शक्ति की साढ़े तीन पीठ में से इस स्थान को अर्थपीठ कहा गया है। पुराणों के अनुसार यह दंडकारण्य का हिस्सा माना गया है। जहां प्रभु श्री राम ने असुरों का वध किया था। नासिक से उत्तर में बसे इस स्थान पर दक्षिण से वणी गांव से और उत्तर में नांदुरी से पहुंचा जा सकता है। यहां विभिन्न साधनों से पहुंचा जा सकता है। घाट के आसपास प्राकृतिक सौंदर्य मन मोहक है।

पर्वत के ऊपर व आसपास 1०8 कुंड हैं। जिनमें से षष्टतीर्थ महत्वपूर्ण है। गंगा-यमुना कुंड में जमुना का पानी श्याम, लेकिन स्वदिष्ट और पाचक है। देवी मंदिर के पास तबुल कुंड में ताम्र रंग का पानी है। पीठ के पीछे परशुराम बाला का देव स्थन है। यहां के साकार स्वरूप का शास्त्रोक्त, वेदोक्त के मंत्रों से स्थापन्न किया गया है। सामने मार्कण्येय पर्वत पर से दीपज्योति की हारमाला देवी के मंदिर से गर्भगृह में प्रवेश करती थी। देवी का बाघ भी प्रति रात्रि वहां रहता था, इसलिए यहां रात्रि निवास की यहां अनुमति नहीं दी जाती है।

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देवी के मंदिर तक पहुंचने के लिए 465 सीढ़ी चढ़नी पड़ती है, जो कि ढ़ाई सौ वर्ष पूर्व उमाबाई दाभाड़े ने बनवाई थी। नगाड़ खाने का बांधकाम गोयनका ने कराया था। शिवालय तीर्थ का काम अहिल्याबाई होलकर ने कराया था। ढाई सौ सीढ़ियों के बाद पेशवा ने श्री राम मंदिर बनवाया था।
देवी के स्वरूप की भव्यता-
माता भगवती की मूर्ति करीब दस फिट ऊचाई पर है। 18 हाथों में सजे अस्त्र-शस्त्र दुर्गाशप्तशती के अनुसार हे।

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