उत्तर प्रदेश के सहारनपुर नगर से यह पीठ पच्चीस किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर अवस्थित है। सिद्धपीठ की मान्यता यहां की है ही।
धार्मिक पृष्ठभूमि
एक पराक्रमी गुरु दुर्जन ने ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त किया था कि कोई देवता उसे हरा न पाए और चारों वेद भी मेरे पास रहें। इसके पश्चात् वह अनेक उपद्रव करने लगा और उसने इंद्र को परास्त कर कैद कर लिया। इंद्र के अधीन होने से लगभग 100 वर्षों तक वर्षा नहीं हुई, अतः किसी भी प्राणी को जल प्राप्त नहीं हो सका। देवतागण व्यथित होकर महादेवी के शरण में जाकर उस दुष्ट से मुक्ति दिलाने हेतु प्रार्थना करने लगे। देवगणों व प्रजा को दुखी देखकर महादेवी की आंखों से दया के आंसुओं की हजारों जलधाराएं प्रवाहित होने लगी, जिससे पृथ्वी के वृक्षों, नदी – तालाबों आदि को प्रचुर जल प्राप्त हो गया और प्रजा के कष्ट दूर हो गए। जब समस्त पृथ्वी पर वर्षा नहीं हुई थी तो उस समय शीताक्षी देवी ( शाकुंभरी का दूसरा नाम ) ने अपने शरीर पर उत्पन्न शाक ( साग – सब्जी ) उगाकर संसार का पालन किया। इसी कारण इन्हें शीताक्षी देवी कहा गया। देवताओं ने देवी से चारों वेदों को प्राप्त करने हेतु प्रार्थना की तो देवी ने उस दुर्जन का वध करके देवताओं को वे वेद उपलब्ध कराए। वध करने से इनका नाम दुर्गा पड़ा, अत : इन्हें शीताक्षी, शाकुंभरी व दुर्गा के नाम से जाना जाता है।
मंदिर विवरण
यह मंदिर एक बड़ी पहाड़ी पर अवस्थित है। पहाड़ी के नीचे एक बरसाती नदी बहती है, अत : वर्षा ऋतु में मंदिर तक पहुंचना कठिन होता है। इसी सूखी नदी के अंदर मंदिर के नीचे अनेक प्रसाद व खान – पान आदि की अस्थायी दुकानें लगी हैं। मंदिर प्रांगण में पहुंचने हेतु यात्रियों को लगभग 100 सीढ़ियां चढ़कर जाना होता है। मंदिर भव्य तथा अनेक शिखर युक्त है। मंदिर में प्रतिमा के दाईं ओर भीमा एवं भ्रामरी तथा बाईं ओर शीताक्षी देवी प्रतिष्ठित हैं। मंदिर के बड़े प्रांगण में अनेक देवी – देवताओं के छोटे – बड़े मंदिर अवस्थित हैं।
यात्रा मार्ग व ठहरने के स्थान
यात्री सर्वप्रथम रेल मार्ग या सड़क मार्ग द्वारा सहारनपुर पहुंचते हैं और वहां टैक्सी, टैंपों व आटो आदि द्वारा मंदिर तक पहुंचा जा सकता है उसी दिन दर्शन करके वापस भी आया जा सकता है। ठहरने हेतु कुछ धर्मशालाएं व अतिथिगृह हैं जो मंदिर के पास व सामने बने हैं, पर व्यवस्था अच्छी नहीं है। अतः यात्री सहारनपुर में ही ठहरें।