शंख को सनातन अर्थात हिंदू परम्परा में बहुत महत्व दिया जाता है। शंख बजाने से स्थान विशेष की नकारात्मकता दूर होती है। माना जाता है कि जिस स्थान पर नियम से शंख बजाया जाता है। पूजन-अर्चन किया जाता है, वहां पर लक्ष्मी का वास होता है। धन-धान्य की कमी नहीं रहती है। माना यह भी जाता है कि शिव पूजन में शंख का प्रयोग नहीं किया जाता है। इन्हें न शंख से जल अर्पित किया जाता है, न ही पूजा में बजाया जाता है। इसे लेकर शिव पुराण में पौराणिक कथा भी है, दंभ के पुत्र शंखचूर का उल्लेख है। वह अपने बल के मद में तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा था।
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धर्म पर चलने वालों को सताने लगा। इससे नाराज होकर भगवान शिव ने शंखचूर का वध कर दिया। शंखचूर विष्णु और देवी लक्ष्मी का भक्त था। भगवान विष्णु ने इसकी हड्डियों से शंख का निर्माण किया, इसलिए विष्णु व अन्य देवी देवताओं को शंख से जल अर्पित किया जाता है, लेकिन शिव जी ने शंखचूर का वध किया था, इसलिए शंख भगवान शिव की पूजा में वर्जित माना गया। ऐसी मान्यता भी है कि जिस घर में शंख होता है, वहां लक्ष्मी का वास होता है. धार्मिक ग्रंथों में शंख को लक्ष्मी का भाई बताया गया है, क्योंकि लक्ष्मी की तरह शंख भी सागर से ही उत्पन्न हुआ है. शंख की गिनती समुद्र मंथन से निकले चौदह रत्नों में होती है।
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ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि शंख में जल रखने और इसे छिड़कने से वातावरण शुद्ध होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख की आवाज से वातावरण में मौजूद कई तरह के जीवाणुओं-कीटाणुओं का नाश हो जाता है। कई अनुसंधान से इस तरह के नतीजे मिले हैं। शंख की आवाज लोगों को पूजा-अर्चना के लिए प्रेरित करती है। ऐसी मान्यता है कि शंख की पूजा से कामनाएं पूरी होती हैं। इससे दुष्ट आत्माएं पास नहीं फटकती हैं। आयुर्वेद के मुताबिक, शंखोदक के भस्म के उपयोग से पेट की बीमारियां, पथरी, पीलिया आदि कई तरह की बीमारियां दूर होती हैं। हालांकि इसका उपयोग एक्सपर्ट वैद्य की सलाह से ही किया जाना चाहिए।
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शंख बजाने से फेफड़े का व्यायाम होता है। पुराणों के जिक्र मिलता है कि अगर श्वास का रोगी नियमित तौर पर शंख बजाए, तो वह बीमारी से मुक्त हो सकता है। शंख में रखे पानी का सेवन करने से हड्डियां मजबूत होती हैं। यह दांतों के लिए भी लाभदायक है. शंख में कैल्शियम, फास्फोरस व गंधक के गुण होने की वजह से यह फायदेमंद है। वास्तुशास्त्र के मुताबिक भी शंख में ऐसे कई गुण होते हैं, जिससे घर में पॉजिटिव एनर्जी आती है। शंख की आवाज से ‘सोई हुई भूमि’ जाग्रत होकर शुभ फल देती है। एक मान्यता यह भी है कि शंख महिलाओं को नहीं बजाना चाहिए। धर्मानुसार आचरण करने वालों को ही शंख का प्रयोग करना चाहिए।
इन परिस्थितियों में शंख का प्रयोग वर्जित
जब शंख बजता न हो। बजता तो हो लेकिन उसकी ध्वनि में भिन्नता हो। किसी कारण से चोट या दुर्घटना से शंख फूट गया हो। शंख में दरार आ गयी हो, वह चटक गया हो। सुडौल न हो और कुरूपता हो। आभाहीन ( निष्प्रभ , बुझा हुआ शंख ) हो। शंख का कोई भी स्थान टूटा न हो। यदि किनारे कहीं से कुछ चटक गये हों तो उसे रेती से रेतकर यथासंभव पूर्ववत बना लें। खराब शंख को अपने घर आदि में नहीं रखना चाहिये और उसे किसी नदी या बहते हुये जलाशय में प्रवाहित कर देना चाहिये। उसको रुके हुये जलाशय में नहीं डालना चाहिये।
अगर आपके समीप कोई बहता हुआ जलाशय न हो तो खराब शंख को किसी जलाशय के समीप कच्ची मिट्टी में गड्ढा खोदकर उसमें दवा देना चाहिये। विद्बानों का मानना है कि घर में दो शंख नहीं रखने चाहिये या तो एक ही शंख हो या फिर 3 , 5 , 7 . 9 आदि हों । कहने का मतलब यह है कि – शंख को सम संख्या में नहीं रखना चाहिये, बल्कि विषम संख्या में रखना चाहिये। आजकल तो लोग अपनी मेज पर पेपर – वेट के रूप में या शो – पीस के रूप में शंख का प्रयोग करते है और उस पर तरह – तरह की पेण्टिंग और चित्रकारी कराते हैं, लेकिन यह शंख का सही प्रयोग नहीं है और इससे किसी प्रकार का लाभ नहीं मिलता है । शंख का । वास्तविक प्रयोग है – पूजाघर में उसकी स्थापना करना और आरती – पूजा के समय उसे बजाया जाना, किसा शुभ अवसर पर और सुखद समाचार मिलने पर भी शंख बजाना अच्छा रहता है ।