ज्योतिर्लिंग घुश्मेश्वर महाराष्ट्र के दौलताबाद से करीब बीस किलोमीटर दूर वेरुलगांव के पास अवस्थित है। घुश्मेश्वर मध्य रेलवे की मनमाड – पूर्णा लाइन से दौलताबाद स्टेशन से जाया जाता है। मनमाड से दौलताबाद 66 मील दूर है। वहां से 12 मील पर वेरुल गांव है, जहां से बस व अन्य वाहन से वहां जाया जाता है।
घुश्मेश्वर को पुसणेश्वर और भूष्णेश्वर भी कहते है| भारत की सुप्रसिद्ध एलोरा गुफाओं के समीप ही यह एक ज्योतिलिंग है। मंदिर एक घेरे के भीतर है। वहाँ पास ही सरोवर है। श्री पुश्मेश्वर – शिव और देवगिरि दुर्ग के बीच सहसलिंग पातालेश्वर, सूर्येश्वर हैं। यह बहुत प्राचीन स्थान है। हलाकि मतान्तर के अनुसार , कुछ लोग एलोरा के कैलास मंदिर को ही घुश्मेश्वर का वास्तविक स्थान मानते हैं। एलोरा इतना सुंदर स्थान है कि बौद्ध, जैन तथा अन्य धर्मावलंबी तक इसके प्रति आकर्षित हो गए और उन्होंने इस सुरम्य पहाड़ी पर अपने – अपने स्थान बनाए हैं। पुराणों में इन घुश्मेश्वर भगवान की बड़ी महिमा है ‘ घुश्मेश्वर महादेव के दर्शन से सारे पाप दूर हो जाते हैं। जिस प्रकार शुक्लपक्ष में चंद्रमा की वृद्धि होती है, उसी प्रकार सुखों की दिनों – दिन अभिवृद्धि होती है।
घुश्मेश्वर की धार्मिक पृष्ठभूमि
भगवान शिवजी के इस महिमामय भव्य मंदिर की स्थापना से संबंधित कथा इस प्रकार है| दक्षिण देश में देवगिरि पर्वत के निकट सुधर्मा नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पतिपरायणा पत्नी का नाम सुदेहा था। वे बड़े सुखी थे, किंतु उनके कोई संतान न थी। इससे सुधर्मा चिंतित रहने लगा। यह देख सुदेहा ने अपने पति से दूसरा विवाह करने का आग्रह किया। उसने अपनी बहिन घुश्मा के साथ विवाह करने पर जोर दिया। उसने कहा कि घुश्मा के साथ मेरा अत्यंत स्नेह संबंध है। उसके साथ किसी प्रकार के मनोमालिन्य की शंका भी नहीं हो सकती। हम दोनों साथ – साथ प्रेम से रहेंगी। अंत में निश्चित होकर घुश्मा के साथ विवाह करके सुधर्मा उसे घर ले आया। दोनों बहनें प्रेमपूर्वक रहने लगीं। पुश्मा अतीव सुलक्षणा गृहिणी थी। वह अपने पति का सब प्रकार से सेवा करती और अपनी बड़ी बहिन को माता के समान मानती। साथ ही वह शिवजी की अनन्य उपासिका थी। वह प्रतिदिन नियम पूर्वक 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनका विधिवत् पूजन करती । कुछ समय बाद शिवजी की कृपा से उसने पुत्र को जन्म दिया। सुधमा के साथ – साथ सुदेहा के आनंद की भी सीमा न रही, किंतु आगे चलकर न जाने क्यों सुदेहा के मन में ईर्ष्या उत्पन्न हुई और उसने ईर्ष्यावस घुश्मा के पुत्र की हत्या कर डाली और शव को उसी सरोवर में डाल दिया, जिसमें घुश्मा जाकर पार्थिव शिवलिंगों को छोड़ती थी। प्रात : काल जब घुश्मा पूजन करके पार्थिव लिंग सरोवर में विसर्जित कर घर लौटने लगी, तब जीवित होकर उसका पुत्र उसके पास आ गया। भगवान शंकर ने प्रकट होकर उसे दर्शन दिए। वरदान मांगने को प्रेरित किए जाने पर घुश्मा ने भगवान शिव से वहां नित्य स्थित रहने की प्रार्थना की, जिससे संसार का कल्याण हो। भगवान शंकर ‘ एवमस्तु ‘ कहकर ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां वास करने लगे और घुश्मेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए। उस तालाब का नाम भी तब से शिवालय हो गया।
अन्य दर्शनीय स्थल
दौलताबाद का किला: घुश्मेश्वर से दक्षिण पांच मील पर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है।
जनार्दन महाराज की समाधि : यह समाधि श्री एकनाथजी के गुरु की है।
अजंता – एलोरा : घुश्मेश्वर से केवल एक किलोमीटर की दूरी पर एलोरा की गुफाएं हैं। एलोरा की 34 गुफाओं में जाने का मार्ग आसान और सुविधाजनक है। गुफाएं अलग – अलग संप्रदाय के लिए बंटी हुई हैं, जैसे एक से तेरह नंबर तक की गुफाएं बौद्धों की हैं, चौदह से उन्तीस तक हिंदुओं की और तीस से चौंतीस संख्या तक की गुफाएं जैनों के लिए हैं। यहां पर कुछ प्रसिद्ध मंदिर भी हैं। विश्वकर्मा व बौद्धमंदिर 1500 पुराना है। प्रसिद्ध कैलास मंदिर लगभग 1200 वर्ष पुराना पूर्व का है। कैलास मंदिर में प्राचीन इंजीनियरों ने जल की एक पतली धारा को ऐसे घुमाया है कि उसका जल बूंद – बूंदकर शिवलिंग पर निरंतर टपकता रहता है, जो पिछली 12 सदियों से वैसे ही टपक रहा है। अजंता की 29 गुफाएं 79 किलोमीटर दूर हैं। यहां पर जैन, बौद्ध और हिंदूधर्म के अवशेष देखे जा सकते। एलोरा की गुफाएं, जैसे मूर्तिप्रधान हैं, वैसे ही अजंता की गुफाएं चित्रप्रधान हैं।
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