श्री कृष्ण धाम: पंढरपुर में स्वयं प्रकटे कन्हैया

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पंढरपुर में स्वयं प्रकटे कन्हैया

shree krshn dhaam: pandharapur mein svayan prakate kanhaiyaमहाराष्ट्र में भीमा नदी अथवा चंद्रभागा नदी के किनारे पर बसा पंढरपुर एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। दो हजार वर्ष से भी अधिक पुराने इस धार्मिक स्थान की वस्ती बड़ी घनी है। इसकी गलियां भी काशी की गलियों की भांति बहुत संकरी हैं। सन् 1274 ई . में संत पुंडरीक के समय इसका जीर्णोद्धार हुआ। संभव है कि पुंडरीक की कथा तभी  से प्रचलित हुई। कथा के अनुसार, विट्ठल के मंदिर में विट्ठल की मूर्ति खड़ी अवस्था में है, जिसके दोनों हाथ कमर पर हैं। खड़ी मूर्ति और पुंडरीक नामक भक्त के परस्पर संबंध में एक कथा प्रचलित है। पुंडरीक अपने माता – पिता का परमभक्त था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण उसे वरदान देने के लिए स्वयं उसके पास पहुंचे। पुंडरीक उस समय अपने माता पिता के पैर दबा रहा था। वह कृष्ण के आने पर भी नहीं उठा, माता – पिता की सेवा करता रहा।

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उसने पास में पड़ी एक ईंट श्रीकृष्ण की ओर सरका दी तथा उन्हें अपने माता – पिता के सो जाने तक उस ईंट पर खड़े होने के लिए कहा। श्रीकृष्ण दोनों हाथ कमर पर रख कर ईंट पर खड़े हो गए और सेवा में लीन पुंडरीक को देखते रहे। माता – पिता के सो जाने पर पुंडरीक खड़ा हुआ और कृष्ण से पूछा कि यहां पधारने का कष्ट किसलिए किया? श्रीकृष्ण ने उन्हें उनकी माता – पिता की भक्ति पर प्रसन्न होने के बारे में बताया तथा पुंडरीक को वरदान देने की अपनी इच्छा व्यक्त की। पुंडरीक ने वरदान न प्राप्त करने की इच्छा की। कृष्ण द्वारा इसके लिए जिद करने पर पुंडरीक ने उन्हें उस ईंट पर उसी प्रकार बने रहने का, अपने वरदान के रूप में आग्रह किया, ताकि लोग उनके दर्शन सुगमता से कर सकें। कहते हैं कि तभी से यह मूर्ति खड़ी है। श्रद्धालुओं का यह विश्वास है कि मूर्ति युगों से यहां खड़ी है।

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पंढरपुर के मंदिर

  • विठ्ठल मंदिर : कृष्ण को लोग प्यार से ‘ बिठू ‘, ‘ विट्ठल ‘ या ‘ बिठोवा ‘ कहते हैं। वे पांडुरंग भी हैं। इन्हीं नामों में से एक विट्ठल, जोकि विष्णु के रूप हैं, का मंदिर है – विट्ठल मंदिर। मंदिर में कमर पर दोनों हाथ रखे भगवान पंढरीनाथ खड़े हैं।
  • संत नामदेव समाधि : मंदिर प्रवेशद्वार के पास ही पहली सीढ़ी पर नीचे संत नामदेव की समाधि है। नामदेव विठोवा के अनन्य भक्त थे। कहा जाता है कि उन्होंने स्वेच्छा से सीढ़ी के नीचे समाधि ली, ताकि मंदिर में जाने वाले प्रत्येक भक्त की चरणरज उनके सिर पर पड़ती रहे। ऐसे महान् संत का सम्मान करने के लिए लोगों ने इस सीढ़ी पर पीतल की चादर चढ़ा दी। यात्री श्रद्धा के साथ इस सीढ़ी का स्पर्श करते हैं और लांघ कर दूसरी सीढ़ी पर पैर रख लेते हैं।
  • श्री रखुमाई मंदिर : महाराष्ट्र में विट्ठल के अन्य मंदिरों, जिनमें विट्ठल की मूर्ति के बाईं ओर रुक्मिणी की भी मूर्ति है, के विपरीत पंढरपुर के मंदिर में अकेले विट्ठल की मूर्ति है। रुक्मिणी को यहां रखुमाई ‘ कहते हैं। रखुमाई का मंदिर विट्ठल मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर है।
  • अन्य मंदिर : इसके अलावा वहां पर बलरामजी, सत्यभामा, जांबवंती तथा श्रीराधाजी के मंदिर भी हैं। मंदिर में प्रवेश करते समय द्वार के सामने ही चौखामेला की समाधि है तथा द्वार के दूसरी तरफ आखा भक्त की मूर्ति है। यहीं पास ही गरुड़ और समर्थ गुरु रामदास द्वारा स्थापित भयंकर मुद्रा में रुद्रावतार हनुमान की मूर्ति है। पंढरपुर में पांडुरंग मंदिर के अतिरिक्त भी अनेक मंदिर हैं। इनमें पंचमुखी, मुक्तेश्वर, अंबाबाई, कालभैरव, वेंकटेश्वर, मल्लिकार्जुन आदि उल्लेखनीय हैं। पंढरपुर से थोड़ी दूर नदी में विष्णुपद मंदिर है। गोपालपुर में गोपालकृष्ण का किले के आकार का बनाया गया मंदिर भी दर्शनीय है।

यात्रा मार्ग

पूना हवाई से पंढरपुर 204 किलोमीटर है।

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