श्री जगदीश रथ यात्रा का विशेष महत्व है। पुण्य नक्षत्र में सुभद्रा समेत भगवान जगन्नाथ व बलराम के रथ निकालने का विधान है। वैसे तो यह यह पर्व देशभर में मनाया जाता है, लेकिन जगन्नाथ पुरी में यह पर्व मनाने का विशेष महत्व है। इस पर्व का विशेष सम्बन्ध भी जगन्नाथपुरी से ही है।

जगन्नाथपुरी भारत के चार धामों में से एक है। यह मंदिर भारतीय शिल्पकला की अनूठी मिसाल है। ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण विश्वकर्मा जी ने किया था। इस तीर्थ की विशेषता यह है कि यहां जातीय बंधनों का बिल्कुल भी पालन नहीं किया जाता है।
इस मंदिर की देव प्रतिमाओं को वर्ष में एक बार मंदिर के बाहर लाया जाता है और नगर की रथयात्रा कराई जाती है। रथ खींचने का अधिकार चांडाल तक को भी होता है। जगन्नाथ पुरी में जगतगुरु शंकराचार्य द्बारा स्थापित गोवर्धन पीठ भी है। इसके अतिरिक्त वैष्णव, शैव, शाक्य आदि सभी सम्प्रदायों के मठ यहां मौजूद हैं। रथ यात्रा के दिन देश के कोने-कोने से लोग एकत्र होकर यहां पहुंचते हैं। जगन्नाथ जी का रथ 45 फीट ऊंचा, 35 फीट लम्बा और इतना ही चौड़ा होता है। इसमें सात फीट व्यास के 16 पहिये होते हैं। बलभद्र जी का रथ 44 फीट ऊंचा होता है, जिसमें 12 पहिये होते हैं। सुभद्रा जी का रथ 43 फीट ऊंचा होता है। इसमें भी 12 पहिये होते हैं। ये रथ हर वर्ष बनाए जाते हैं। मंदिर के सिंह द्बार पर बैठेकर भगवान जनकपुरी की ओर रथ यात्रा करते हैं।
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इन रथों को खींचने वाले मनुष्यों की संख्या करीब 42 हजार होती है। जनकपुरी पहुंचकर तीन दिन तक भगवान वहीं ठहरते हैं। वहां उनकी भेंट लक्ष्मी जी से होती है। इसके पश्चात लौटकर भगवान फिर जगन्नाथ पुरी में आसन पर सुशोभित होते है। यह रथ यात्रा हर वर्ष पारम्परिक रूप से निकाली जाती है।
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