मानसिक पूजा का विशेष महत्व होता है, यह पूर्णतया सत्य है, लेकिन सिर्फ मानसिक पूजा करना शास्त्रोंक्त नहीं कहा जा सकता है, मानसिक पूजा को अगर भौतिक पूजा के साथ किया जाए तो ही सर्वोत्तम माना जाता है, जैसे उदाहरण के लिए आप सिर्फ मानसिक पूजा करते हैं, भौतिक पूजा नहीं करते हैं, जबकि आप भौतिक पूजा की सामर्थ्य रहते हैं और समय भी है ,लेकिन फिर भी सिर्फ मानसिक पूजा करके इतिश्री कर लेते हैं, यह धर्म संगत नहीं कहा जा सकता है। धर्मशास्त्रों के जानकार मानते हैं कि ऐसा करने से दोष लगता है। कुल मिलाकर यह कहना उचित होगा कि आप भौतिक पूजा करें, साथ ही ईश्वर में ध्यान लगाकर मानसिक पूजा करेंगे तो ही धर्म संगत माना जा सकता है और आपको मानसिक पूजा का अतुल्य पुण्य प्राप्त होगा। मानसिक पूजा के बारे शास्त्रों में कहा गया है कि मानसिक पूजा बाह्य पूजा से कई गुना अधिक फलदायी होती है। मानसी-पूजा में भक्त अपने इष्टदेव को मुक्तामणियों से मण्डितकर स्वर्णसिंहासन पर विराजमान कराता है। स्वर्गलोक की मन्दाकिनी गंगा के जल से अपने आराध्य को स्नान कराता है, कामधेनु गौ के दुग्ध से पंचामृत का निर्माण करता है।
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वस्त्राभूषण भी दिव्य अलौकिक होते हैं। मानसी चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य भी भगवान को हजार गुना अधिक संतोष देते हैं। आराधक अपने आराध्य के लिए कुबेर की पुष्पवाटिका से स्वर्णकमल के पुष्पों व पारिजात पुष्पों का चयन करता है। इन सब चीजों को जुटाने के लिए उसे इन्द्रलोक से ब्रह्मलोक, साकेत से गोलोक आदि तक मानसिक दौड़ लगानी पड़ती है। आइये, जानते है कि भगवान् श्री राम के किस रूप का ध्यान व मानसिक पूजा अत्यंत फलदायी होती है-
मनोहर चित्रकूट पर्वत पर वटवृक्षके नीचे भगवान् श्रीराम, भगवती माता सीताऔर श्रीलक्ष्मणजी बड़ी सुन्दर रीति से विराजमान हैं। नीले और पीले कमलके समान कोमल और अत्यन्त तेजोमय उनके श्याम और गौर शरीर ऐसे लगते हैं, मानो चित्रकूट रूपी काम सरोवर में प्रेमरूप और शोभामय कमल खिले हों। ये नख से शिखतक परम सुन्दर, सर्वथा अनुपम और नित्य दर्शनीय हैं। भगवान् राम और लक्ष्मण की कमर में मनोहर मुनिवस्त्र और सुन्दर तरकस बँधे हैं। माता सीता लाल वसन से और नानाविध आभूषणों से सुशोभित हैं। दोनों भाइयोंके वक्षःस्थल और कंधे विशाल हैं। कंधोंपर यज्ञोपवीत और वल्कलवस्त्र धारण किये हुए हैं। गले में सुन्दर पुष्पोंकी मालाएँ हैं। अति सुन्दर भुजाएँ हैं। कर – कमलोंमें सुन्दर सुन्दर धनुष – बाण सुशोभित हैं। परम शान्त, परम प्रसन्न, मनोहर मुखमण्डल की शोभा ने करोड़ों कामदेवों को जीत लिया है। मनोहर मधुर मुसकान है। कानों में पुष्पकुण्डल शोभित हो रहे हैं। सुन्दर अरुण कपोल हैं। विशाल कमल – जैसे कमनीय और मधुर आनन्द की ज्योति धारा बहाने वाले अरुण नेत्र हैं । उन्नत ललाटपर ऊर्ध्वपुण्ड्र तिलक हैं और सिर पर जटाओंके मुकुट बड़े मनोहर लगते हैं। प्रभुकी यह वैराग्यपूर्ण मूर्ति अत्यन्त सुन्दर है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि मानसिक पूजा में क्षण भर के लिए ध्यान भंग होने पर साधना अवरुद्ध हो जाती है, तब पूर्ण फल की प्राप्ति नहीं होती है, इसलिए मानसिक पूजा काफी कठिन मानी जाती है।