श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम राम भगवान के कर कमलों से हुई थी। इसे भगवान शिव का ग्यारहवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है, जोकि सेतुबंध पर अवस्थित हैं। जब भगवान श्री राम माता सीता के हरण के बाद लंका पर चढ़ाई करने वानर सेना के साथ जा रहे थे , तब समुद्र तट पर पहुंचकर उन्होंने बालू का शिवलिंग बनाकर पूजन किया था। यह भी माना जाता है कि समुद्र तट पर भगवान राम जल पी रहे थे। तभी आकाशवाणी हुई कि मेरी पूजा किए बिना जल पीते हो? यह आकाशवाणी सुनकर भगवान श्री राम ने वहीं बालू का शिवलिंग बनाकर शिव पूजन किया। उनसे रावण को पराजित करने का आर्शीवाद मांगा। भगवान श्री राम के पूजन से भगवान भोलनाथ अत्यन्त प्रसन्न हुए और मनोवांछित आर्शीवाद प्रदान किया। भगवान भोलेशंकर भगवान श्री राम की प्रार्थना पर लोककल्याण के लिए वही पर वास करने के लिए तैयार हो गए।
इस पावन शिवलिंग को लेकर एक अन्य कथा भी कही जाती है कि जब रावण का वध करके भगवान श्री राम सीता माता को लेकर दलबल सहित वापस आने लगे, तब समुद्र के इस पर गन्धमादन पर्वत पर पहला पड़ाव डाल दिया। उनका आगमन जानकर मुनि समाज भी वहां आ गया। यथोचित सत्कार के बाद श्री राम ने उनसे पुलस्त्य कुल का विनाश करने के कारण ब्रह्महत्या के पातक से मुक्त होने का उपाय पूछा। ऋषियों ने कहा कि प्रभु, शिवलिंग की स्थापना से भी सभी पाप तत्क्षण नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद भगवान श्री राम ने हनुमान जी को कैलाश से शिवलिंग लाने का आदेश दिया। वे क्षणमात्र में कैलाश जा पहुंचे, लेकिन उन्हें वहां भगवान शिवजी के दर्शन नहीं हुए, इसलिए वह शिव जी के दर्शन के लिए तप करने लगे और उनके दर्शन प्राप्त करके उन्होंने शिवलिंग लेकर गन्धमादन पर्वत की ओर प्रस्थान किया। इधर जब तक हनुमान जी आए, तब तक ज्येष्ठ शुक्ला दशमी बुधवार को अत्यन्त शुभ मुहूर्त में शिवलिंग की स्थापना हो चुकी थी।
मुनियों ने हनुमान जी के आने में विलम्ब होता देखकर और मुहूर्त निकलता देखकर श्री जानकी माता द्बारा निर्मित बालु के शिवलिंग की स्थापना करा दी। इससे पवनपुत्र हनुमान जी बहुत दुखी हुए। भगवान राम ने जब हनुमान जी को दुखी देखा तो उन्होंने हनुमान जी द्बारा लाए गए शिवलिंग को भी वहीं हनुमदीश्वर नाम से स्थापित कर दिया। श्री रामेश्वर और हनुमदीश्वर का दिव्य माहात्म्य विस्तार से शिवपुराण, स्कन्दपुराण आदि में आया है। श्री रामेश्वरम जी का मंदिर अत्यन्त भव्य और विशाल है। इस मंदिर में श्री शिवजी की प्रधान लिंग मूर्ति के अतिरिक्त और भी अनेक शिवमूर्तियां और अन्य मूर्तियां हैं। नंदी की एक बहुत बड़ी मूर्ति है। मंदिर के अंदर अनेक कुएं हैं, जो तीर्थ कहलाते हैं। गंगोत्तरी के गंगाजल को श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाने का बहुत ही माहात्म बताया गया है। श्री रामेश्वरम से करीब बीस मील दूरी पर धनुष्कोटि नामक तीर्थ है, जो कि श्राद्ध आदि के लिए प्रशस्त तीर्थ है और भी अनेकानेक तीर्थ यहां पर हैं।
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