श्रीत्रयम्बकेश्वर महादेव की अराधना से मिलता है सहजता से सभी पुण्य कर्मों का फल

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श्रीत्रयम्बकेश्वर महादेव मनुष्य को सभी पुण्य कर्मो का फल प्रदान करते हैं, इनके दर्शन-पूजन से मनुष्य को समस्त पुण्य कर्मों का फल सहजता से प्राप्त हो जाता है, महादेव के इस पावन स्वरूप की महिमा का बखान जितना किया जाए, वह कम ही होगा। भगवान भोलेनाथ शंकर का यह स्वरूप ज्योतिर्लिंग के रूप में महाराष्ट्र के नासिक में अवस्थित है। शिव पुराण में इस ज्योतिर्लिंग के स्वरूप का विस्तार से वर्णन किया गया है।

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इस ज्योतिर्लिंग की अवस्थापना को लेकर जो कथा कही गयी है, वह इस प्रकार है, कथा के अनुसार एक समय की बात है महर्षि गौतम से तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की प‘ियां किसी बात को लेकर उनकी पत्नी अहल्या से नाराज हो गईं। उन्होंने अपने-अपने पतियों को गौतम ऋषि का अपकार करने के लिए प्रेरित किया। इसके लिए ब्राह्मणों ने प्रथम पुज्य गण्ोश जी की अराधना की, उनकी अराधना से प्रसन्न होकर भगवान गण्ोश ने उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिए और वर मांगने को कहा। उन ब्राह्मणों ने ऋषि गौतम का अपकार करने के निमित्त कहा- भगवन, यदि आप हम प्रसन्न है तो किसी भी तरह से गौतम ऋषि को आश्रम से बाहर निकाल दें। इस पर गण्ोश ने उन्हें ऐसा वर न मांगने के लिए कहा और बहुतेरा समझाया, लेकिन ब्राह्मण अपनी बात का अडिग रहे तो गण्ोश जी को उनकी बात माननी पड़ी और उन्हें वर दे दिया। अपने भक्तों का मान रखने के लिए वे दुर्बल गाय का रूप धर ऋषि गौतम के ख्ोत में चरने लगे।

यह देखकर ऋषि हाथ में तृण लेकर उसे हांकने के लिए निकले। उस तृण का स्पर्श होते ही गाय वहीं मर गई। इस बात का पता लगते ही हाहाकार मच गया और ब्राह्मण वहां एकत्र होकर ऋषि की निंदा करने लगे। ब्राह्मणों ने उन्हें गो हत्यारा करार दिया। गौतम ऋषि इस घटना से बहुत दुखी और आश्चर्य चकित हुए। ब्राह्मणों ने उनसे कहा कि उनको आश्रम छोड़कर अब अन्यत्र चले जाना चाहिए। गो हत्यारे के उनके निकट रहने से उन्हें भी पाप लगेगा। गौतम ऋषि इस घटना से बहुत आहत हुए और आश्रम से एक कोस दूर जाकर रहने लगे, लेकिन वहां पर भी उन ब्राह्मणों ऋषि का रहना दूभर कर दिया। ब्राह्मणों का कहना था कि गो हत्या के कारण अब ऋषि को वेद-पाठ और यज्ञादि का अधिकार नहीं रह गया है।

इस पर ऋषि ने उनसे प्रार्थना की कि आप ही प्राश्चित का उपाय बताएं। तब ब्राह्मणों ने ऋषि से कहा कि तुम अपने पाप को सर्वत्र सबको बताते हुए पूरी पृथ्वी की तीन बार परिक्रमा करें। फिर लौट कर वहां महीने तक व्रत करें। इसके बाद ब्रह्म गिरी की 1०1 परिक्रमा से उनकी शुद्धि होगी अथवा यहां गंगा जी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिव जी की अराधना करें। इसके बाद पुन: गंगा जी में स्नान करके इस ब्रह्मगिरी की 11 परिक्रमा करें। फिर सौ घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंग को स्नान कराने उनका उद्धार होगा। ब्राह्मणों के कहे अनुसार ऋषि गौतम वे सारे कृत्य पूर्ण करके पत्नी अहल्या के साथ भगवान शंकर की अराधना में लीन रहे। इस पर भोलनाथ उन पर प्रसन्न हो गए और प्रत्यक्ष दर्शन देकर वर मांगने को कहा।

इस पर महर्षि गौतम ने भगवान शंकर से कहा- भगवन, मैं यही चाहता हूं कि आप मुझे गो हत्या के पाप से मुक्त कर दें। भगवान ने उनसे कहा कि गौतम, तुम सदा व सर्वथा निष्पाप हो, गोहत्या तुम्हें छलपूर्वक लगायी गई थी। छलपूर्वक ऐसा करने वाले ब्राह्मणों में मैं दंड देना चाहता हूं। तब गौतम ऋषि ने कहा कि भगवान उन्हीं के निमित्त तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है। उनके कृत्य को मेरा परमहित समझ कर उन पर क्रोध न करें। तब बहुत से ऋषियों, मुनियों, देवगणों ने वहां एकत्र होकर गौतम की बात का अनुमोदन करते हुए भगवान शंकर से वहां पर सदा के लिए निवास करने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने उनकी बात मान ली और वहां त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप अवस्थित हो गए, तब गौतम ऋषि द्बारा लायी गई गंगा जी भी वहां गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं।

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