शुक्रवार व्रत कथाएं : सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं शुक्रवार के व्रत से

2
1913

शुक्रवार के व्रत का विशेष महत्व है, यह सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला है। व्रत विशेष रूप से धन व पुत्र की दीर्घायु के लिए किया जाता है। इस दिन लक्ष्मी जी का व्रत करते हुए फूल, सफेद वस्त्र व घी शक्कर का नैवेद्य चढ़ाया जाता है। किसी भी व्रत का पूर्ण विधान किसी ज्ञानी ब्राह्मण से जानकर करना श्रेयस्कर होता है। विधान जानकर किया गया व्रत पूर्ण रूप से फलित होता है।

महालक्ष्मी व्रत की दो कथाएं है। पहली कथा- एक गरीब ब्राह्मण था, जो भगवान विष्णु का परम भक्त था। एक दिन भगवान ने दर्शन दिए तो ब्राह्मण ने कहा- प्रभु, मा महालक्ष्मी उसके घर में निवास करेंं, इस पर भगवान ने कहा- सुबह मंदिर के बाद एक स्त्री उपले थापने आती हैं, वही महालक्ष्मी है, उनसे तुम निवेदन करना। ब्राह्मण ने वैसा ही किया तो लक्ष्मी जी समझ गईं कि यह नारायण भगवान की लीला है। उन्होंने ब्राह्मण से कहा- तुम महालक्ष्मी व्रत करो। 16 दिन व्रत करने व 16 दिन चंद्रमा को अध्र्य देने से तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा और घर धन-धान्य से परिपूर्ण होगा। ब्राह्मण ने व्रत किया और उसका मनोरथ पूरा हुआ, तब से ही यह व्रत श्रद्धा के साथ किया जा रहा है।

Advertisment

दूसरी कथा –

एक बार महालक्ष्मी जी का त्यौहार था, हस्तिनापुर में गांधारी ने सभी महिलाओं को निमंत्रण दिया, लेकिन कुंती को नहीं दिया। गांधारी के पुत्रों ने मौके पर मिट्टी से एक हाथी बनाया और सजा कर महल के बीच में रख दिया। इससे कुंती दुखी हो गई तो अर्जुन ने कारण पूछा। कारण जानकर अर्जुन माता के लिए इंद्र का ऐरावत हाथी ले आए। इस पर महिलाएं वहां एकत्रित होने लगी और पूजन किया गया।

संतोषी माता व्रत- इस दिन संतोषी माता के व्रत का भी विधान है- 

कथा- एक बुढि़या थी। उसका एक ही पुत्र था। विवाह के बाद सास बहू से सारे घर के काम करवाती थी, लेकिन ठीक खाने को न देती। लड़का देखता लेकिन मां से कुछ नहीं कह पाता। बेचारी बहू दिन भर घर के काम करती रहती थी। इसका सारा समय इसी में बीत जाता था। विचार कर लड़का मां से बोला- मां मैं परदेश जा रहा हूं। मां को बेटे की बात पसंद आई और जाने की आज्ञा दे दी। इसके बाद वह अपनी पत्नी के पास जाकर बोला- मैं परदेस जा रहा हूं अपनी कुछ निशानी दे दे। बहू बोली- मेरे पास तो निशानी देने योग्य कुछ भी नहीं है। यह कह कर वह पति के चरणों में गिरकर रोने लगी तो गोबर से सने हाथों से उसके जूतों पर छाप बन गई।

पुत्र के जाने के बाद सास के अत्याचार बढ़ते गए, एक दिन बहू एक मंदिर गई, वहां बहुत ही स्त्रियां पूजा कर रही थीं। उसके पूछने पर वह बोलीं कि हम संतोषी माता का व्रत करती हैं इससे सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है। महिलाओं ने उसे बताया कि शुक्रवार को नहा धोकर एक लोटे में शुद्ध पानी ले गुड़ चना का प्रसाद लेना और सच्चे मन से मां का पूजन करो। इस दिन खटाई भूल कर भी मत खाना और न ही किसी को देना। एक वक्त का भोजन करना अब वह प्रति शुक्रवार को नियम से व्रत करने लगी। माता की कृपा से कुछ दिनों बाद पति का पत्र आया और कुछ दिन पैसा भी आ गए। इसके बाद उसने प्रसन्न मन से फिर व्रत किया और मंदिर में जा अन्य स्त्रियों से बोली मां संतोषी की कृपा से हमें पति का पत्र और रुपया आया है। अन्य सभी स्त्रियां भी श्रद्धा से व्रत करने लगी।

बहू ने कहा- हे मां, जब मेरा पति घर आ जाएगा तो मैं तुम्हारे व्रत का उद्यापन करूंगी। अब एक रात संतोषी मां ने उसके पति को स्वप्न में दर्शन दिया और कहा- यदि तुम अपने घर क्यों नहीं जाते तो वह कहने लगा सेठ का सारा सामान अभी बिका नहीं। रुपए अभी अभी नहीं आये है। उसने सेठ को स्वप्न की सारी बात कहीं और घर जाने की इजाजत मांगी लेकिन सेठ ने इनकार कर दिया। मां की कृपा से कई व्यापारी आए सोने चांदी और अन्य सामान खरीद कर ले गए। कर्जदार भी रुपया लौट आ गए। अब तो साहूकार ने भी उसे घर जाने की इजाजत दे दी। घर आकर उसने अपनी मां और पत्नी को बहुत सारे रुपए दिए पत्नी ने कहा कि मुझे संतोषी मां के व्रत का उद्यापन करना है। उसने सभी को इसका न्योता दे दिया और उद्यापन की सारी तैयारी की। पड़ोस में एक स्त्री उसे सुखी देख जलने लगी। उसके उसने अपने बच्चों को सिखा दिया कि तुम भोजन के समय खटाई जरूर मांगना।

खाना खाते समय बच्चे खटाई के लिए मचल उठे तो बहू ने पैसे देकर उन्हें बहलाया। इन्हीं पैसे से बच्चों ने दुकान से इमली खरीदी और खा ली। इससे माता संतोषी कुपित हो गई। माता के कोप के चलते उसके पति को राजा के सिपाही पकड़ कर ले गए। इसी बीच किसी ने उसे बताया कि उद्यापन में बच्चों को जो रुपए दिए थे, उससे उन्होंनें खटाई खायी है। भूल का एहसास होते ही बहू ने पुन: व्रत का उद्यापन करने का निश्चय किया। वह मंदिर से निकली तो राह में पति आता दिखाई दिया। पति बोला- इतना सारा धन कमाया था उसका टैक्स राजा ने मांगा था, अगले शुक्रवार को उसने फिर पूर्ण विधि व व्रत का उद्यापन किया। इससे संतोषी मां प्रसन्न हो गई। नौ माह बाद उसे पुत्र की प्राप्ति हुई और वह आनंद से रहने लगी।

 

सनातनजन डेस्क

सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें। सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।

2 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here