स्कन्दपुराण के आन्त्यखंड के रेवाखंड में गौ की महिमा का गान किया गया है। उसमें गौ माता की महिमा को बहुत ही सहज तरीके से बताया गया है। आइये जानते है, स्कन्दपुराण के गौ माता की महिमा-
गाव: प्रदक्षिणी कार्या वन्दनीया हि नित्यश:। मंगलायतनं दिव्या: सृष्टास्त्वेता: स्वयम्भुवा।।
अप्यागाराणि विप्राणां देवतायतनानि च। यद्गोमयेन शुद्धयन्ति किं ब्रूमो ह्यधिकं तत:।।
गो मूत्रं गोमयं क्षीरं दधि सर्पिस्तथ्ौव च। गवां पंच पवित्राणि पुनन्ति सकलं जगत्।।
गावो मे चाग्रतो नित्यं गाव: पृष्ठत एव च। गावो मे हृदये चैव गवां मध्ये वसाम्यहम्।।
भावार्थ- महर्षि आपस्तम्ब राजा नमग से कहते हैं कि हे राजन, गौओं की परिक्रमा करनी चाहिए। वे सदा ही सके लिए वंदनीय हैं। गौएं मंगल का स्थान है। दिव्य रूप हैं। स्वयं जगतपिता ब्रह्माजी ने इन्हें दिव्य गुणों से विभूषित किया है। जिनके गोबर ब्राह्मणों के घर और देवताओं के मंदिर शुद्ध होते हैं। उन गौओं से बढ़कर अन्य किसको बतायें।
गौओं के मूत्र, गोबर, दूध दही और घी ये पांचों वस्तुएं पवित्र हैं। ये पावन वस्तुएं जगत को पवित्र करती हैं। गायें मेरे आगे रहें, गायें मेरे पीछे रहें, गायें मेरे हृदय में रहें और मैं गाओं के मध्यम में निवास करूॅँ।
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