सोमनाथ द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शनमात्र से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है और अभीष्ट फल प्राप्त करके मरने पर स्वर्ग में जाता है।सोमनाथ मन्दिर भूमण्डल में दक्षिण एशिया स्थित भारतवर्ष के पश्चिमी छोर पर गुजरात नामक प्रदेश स्थित, अत्यन्त प्राचीन व ऐतिहासिक शिव मन्दिर का नाम है। यह भारतीय इतिहास तथा हिन्दुओं के चुनिन्दा और महत्वपूर्ण मन्दिरों में से एक है। भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना व जाना जाता है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बन्दरगाह में स्थित इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में स्पष्ट है। पूर्वकाल में यह क्ष्ोत्र प्रभास के नाम से विख्यात था।
प्रभासपाटन, जहां सोमनाथ मंदिर स्थित है, यह भारत के प्राचीन तीर्थ स्थानों में से एक है। इस पवित्र तीर्थस्थल का उल्लेख ‘ ऋग्वेद ‘, ‘ स्कंदपुराण ‘ और ‘ महाभारत ‘ में भी आया है। वेद कालीन रुद्र को प्रभास में भैरव कहा जाने लगा। स्कंदपुराण के सप्तम खंड को प्रभासखंड नाम दिया गया है। पहले 365 अध्यायों में प्रभासखंड का वर्णन विस्तारपूर्वक किया गया है। ‘ महाभारत ‘ के आदिपर्व तथा वनपर्व में प्रभास तीर्थ का उल्लेख प्राप्त होता है।
आदिपर्व में अर्जुन की प्रभास यात्रा का उल्लेख मिलता है। वनपर्व में अगस्त्य ऋषि भीष्म को विभिन तीर्थों का माहात्म्य सुनाते हैं। उसी के अंतर्गत इस तीर्थ का भी वर्णन करते हैं। यह मंदिर तथा तीर्थस्थान अनेक शताब्दियों से भारत की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बना हुवा है।
सोमनाथ मंदिर कथा
सोमनाथ मंदिर जगतोत्पत्ति जितना ही प्राचीन है। पुराणों के अनुसार, दक्ष प्रजापति को 27 कन्याएं थी और सभी का विवाह चंद्र के साथ हुआ था। रोहिणी सभी बहनों में सुंदर थी और चंद्र की उसके प्रति विशेष आसक्ति थी। यह जानकर शेष सभी बहनों को बड़ी ईष्या हुई और उन्होंने इसकी शिकायत अपने पिता दक्ष से उनके पिता ने चंद्र को समझाया, कितु चद्र उनका तीर्थस्थत एकन सुनी। इस पर कुद्ध होकर दक्ष प्रजापति ने चंद्र को राजयक्ष्मा से पीड़ित होने का शाप दे दिया। फलस्वर चंद्र की शक्ति दिन – प्रतिदिन क्षीण होती गई। यह देख सब देवताओं ने मिलकर चंद्र को दिए गए शाप वापस लेने के लिए ब्रह्मा से अनुरोध किया। ब्रह्मा ने कहा कि मैं दक्ष का दिया हुआ शाप तो वापस नहीं ले सकता, लेकिन शाप – मुक्ति का उपाय बता सकता हूं। उन्होंने चंद्र से कहा कि वह प्रभासक्षेत्र में जाये और शिवलिंग की प्रतिष्ठा कर तपस्या करें। प्रभास में चंद्रमा ने शिव के कालभैरव रूप की बड़ी लगन के साथ तपस्या की और जब शिव प्रसन्न हुए तो चंद्रमा ने वर मांगा कि वे अपने भक्त चंद्रमा के नाम में विख्यात हों, इसलिए वे सोमनाथ कहलाए और बाद में भी सभी चंद्रमाओं के कुलदेवता के रूप में प्रसिद्ध हुए ( प्रभासखंड 8-3-13 मंदिर में भरपूर संपदा थी, जैसे उसके 56 रत्नजड़ित खंभे आदि, इन्हीं में जड़ित हीरे-जवाहरातों से मंदिर सदैव प्रकाशमान रहता था, जब कि गर्भ में सूर्य किरणें प्रवेश नहीं कर पाती थीं। इस संपदा को लूटने हेतु अनेक मुसलिम राजाओं ने समय – समय पर मंदिर को नष्ट – भ्रष्ट किया, अतः प्राचीन मंदिर पूर्णतया ध्वस्त हो गया था। अंत में शासकीय स्थापत्य विभाग की सहायता से खुदाई का काम प्रारंभ हुआ और पुराने अवशेषों को पूरी तरह से हटाकर प्राचीन सोमनाथ के स्थान पर, उसी अनुरूप एक नए सोमनाथ मंदिर के निर्माण का निर्णय हुआ। 11 मई, सन् 1951 ई.को सोमनाथ के ज्योतिर्लिंग की फिर एक बार वहां स्थापना की गई।
परंपरा के अनुसार, विश्व के समस्त देशों की मिट्टी, सारी पवित्र नदियों का जल तथा सारे समुद्रों का क्षारयुक्त पानी उस मुहूर्त के लिए सोमनाथ लाया गया। तब एक करोड़ रुपए से अधिक की लागत से सोमनाथ मंदिर बनकर फिर इतिहास के पृष्ठों पर आ गया, जो भारत के प्राचीन सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक समझा जाता है।
सोमनाथ मंदिर प्रांगण के दर्शनीय स्थल
समुद्र के किनारे यह भव्य मंदिर है और मंदिर से लगा हुआ समुद्री रेत भरा किनारा है।
- मुख्य मंदिर : सोमनाथ मंदिर- इस भव्य मंदिर के तीन मुख्य भाग हैं। बाहर की ओर दो नीची छत वाले मंडप हैं, जिनकी छत पर विशेष शिल्पकला है। इसके नीचे हजारों यात्री भ्रमण कर सकते हैं। दोनों मंडप के पश्चात् एक सात मंजिल वाला मंदिर है, जहां सोमनाथ शिव का विशाल लिंग स्थापित है। यह शिवलिंग लगभग सात फीट ऊंचा काले पत्थर से निर्मित है। शिवलिंग के पृष्ठ भाग में अनेक देवी – देवताओं की मूर्तियां विराजमान है। शिवलिंग के सामने बाहर के प्रांगण में नदी की एक बड़ी प्रतिमा है। मंदिर का बाहरी रूप अतिसंदर व मन मोह लेने वाला है। यात्री घंटों इसका व समुद का अवलोकन कर धन्य हो जाते है।
- अहिल्याबाई : महादेव मंदिरः मुख्य मंदिर के पास ही यह मंदिर अवस्थित है, जिसे महारानी अहिल्याबाई ने बनवाया था। इसमें स्थापित शिवलिंग अहिल्येश्वर महादेव कहलाता है। इसके चारों ओर पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती आदि की मूर्तियां स्थापित हैं। शिवलिंग के समक्ष नंदी की एक प्रतिमा विराजमान है। मंदिर के द्वार पर अघोरलिंग की मूर्ति अवस्थित है।
- गणेश मंदिर : इसी परिसर में एक छोटा मंदिर अवस्थित है, जिसमें गणेश मूर्ति विराजमान है।
- महाकाली मंदिर : अहिल्याबाई मंदिर के पास ही एक महाकाली का प्राचीन मंदिर है जहां देवी पूजा संपन्न होती है।
आस – पास के अन्य दर्शनीय स्थल
इस स्थल के पास कुछ – कुछ दूरी पर अनेक दर्शनीय स्थल हैं । ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे। तब ही शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिह्न को हिरण की आँख जानकर अनजाने में तीर मारा था। तब ही कृष्ण ने देह त्यागकर यहीं से वैकुण्ठ गमन किया। इस स्थान पर बड़ा ही सुन्दर कृष्ण मन्दिर बना हुआ है।
- प्राची त्रिवेणी : मुख्य मंदिर से दो किलोमीटर पर एक संगम स्थल है, जहां कपिला नदी सरस्वती नदी में मिलती है। उसके बाद सरस्वती हिरण्या नदी में मिलती है और हिरण्या नदी समुद्र में मिल जाती है। इस प्रकार यह सुंदर संगम स्थल बन जाता है और इसके किनारे अनेक मंदिर, मठ आदि स्थापित हैं।
- सूर्य भगवान मंदिर : इस संगम से कुछ दूर स्थित एक प्राचीन मंदिर है।
- हिंगलाज भवानी मंदिर : इसके आगे हिंगलाज भवानी का प्राचीन मंदिर है।
- सिद्धनाथ मंदिर : पास में ही एक छोटी गुफा है जिसमें सिद्धनाथ महादेव का मंदिर है।
- बलदेव मंदिर : पीपल के पेड़ के नीचे एक बलदेव जी का मंदिर है और ऐसी धारणा है कि बलदेव जी शेष रूप धारण करके पाताल में चले गए थे।
- वल्लभाचार्य बैठक : इस स्थान पर सतद्वारा एक मोह प्रवचन किया जाता था।
अवलोकन अन्य मदिर : त्रिवेणी सगम स्थल परराजवणा माता , महाकालेश्वर, श्रीराम, श्रीकृष्ण और भीमेश्वर के मंदिर भी पृथक् – पृथक् स्थित हैं।
- बाण तीर्थ – भालक तीर्थ : ऐसी कथा है कि इस स्थान पर जरा नामक व्याध ने श्रीकृष्ण जी को तीर मारा था जिससे जिससे घायल होकर थे इस स्थान पर अंतर्ध्यान गए थे या यही पर उन्होंने शरीर त्याग दिया था अतः इसे देहोत्सर्ग तीर्थ भी कहा जाता है ।वेरावल स्टेशन से आते समय समुद्र के किनारे कुछ मंदिर स्थापित है।
- शशि भूषण महादेव : यह प्राचीन मंदिर समुद्र के किनारे स्थित है।
- कपिलेश्वर महादेव : समुद्र के किनारे रेत पर यह स्थान स्थापित है। इसे चंद्रभागा तीर्थ कहते हैं।
- भालेश्वर शिव : बाण तीर्थ से पांच किलोमीटर पहले एक पीपल वृक्ष के नीचे भालेश्वर शिव का प्राचीन मंदिर है।
- भाल कुंड व पदम कुंड : दोनों सरोवर शिव मंदिर के पास ही स्थित हैं। कथा है- श्रीकृष्ण जी ने चरण से वाण निकालकर भालकुंड में फेंका था।
- दुर्गकूट मंदिर : भाल कुंड के पास ही एक गणेशजी का मंदिर स्थापित है।
- कर्दमेश्वर महादेव : यहां पास में एक और कुंड कर्दम कुंड है, जहां कर्दमेश्वर महादेव का मंदिर है।
नगर के दर्शनीय स्थल
इस छोटे से नगर में कुछ प्राचीन व नवीन मंदिर भी स्थापित हैं प्राचीन है। मंदिर है।
- गणेश मंदिर : नगर के मध्य स्थित प्राचीन है।
- भद्रकाली मंदिर : नगर के मध्य स्थित प्राचीन मंदिर है।
- विष्णु मंदिर : नगर में एक प्राचीन विष्णु मंदिर है।
- गौरी कुंड सरोवर : नगर में एक छोटा कुंड है, जिस पर प्राचीन शिव मंदिर स्थापित है।
- गीता मंदिर : भक्तगणों द्वारा नवीन कलात्मक मंदिर निर्मित है, जिसमें लक्ष्मीनारायण व परशुराम के मंदिर स्थापित हैं।
यात्रा- ठहरने के स्थान
वायु मार्ग हेतु केशोद हवाई अड्डा सबसे समीप है, जहां से सोमनाथ मात्र पांच किलोमीटर पर स्थित है। ये हवाई सेवा मुंबई से उपलब्ध है। रेल मार्ग में वेरावल स्टेशन पर उतरकर सोमनाथ जाया जाता है, जहां से इसकी दूरी मात्र सात किलोमीटर है। यहां सभी वाहन उपलब्ध हैं। वेरावल – मुंबई जैसलमेर , अहमदाबाद , जूनागढ़ होकर आया जा सकता है। दिल्ली से भी सीधी रेल सेवा उपलब्ध है। गुजरात के प्रत्येक मुख्य नगर से यह तीर्थ सड़क से सीधा जुड़ा है और बसों , टैक्सी आदि द्वारा यहां सरलता से पहुंचा जा सकता है। समुद्र मार्ग से एक स्टीमर बोट मुंबई से वेरावल आती- जाती रहती है। यात्रीगण मंदिर पहुंचकर दर्शन करें, फिर एक तांगे या टैंपो को किराए पर लेकर सभी स्थानों का दर्शन कर सकते हैं। तांगे वाला प्रत्येक स्थान का वर्णन भी करेगा और दर्शन करा कर वापस ठहरने के स्थान पर पहुंचा देगा। सोमनाथ मंदिर के पास बड़ी – बड़ी अनेक अतिथि शालाएं हैं , जो सुविधाजनक व सस्ती हैं , क्योंकि यह मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित है । होटल एवं लाज भी मंदिर के पास हैं।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की अराधना से मिलती है माता पार्वती की भी असीम कृपा
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की अराधना से मिलती है माता पार्वती की भी असीम कृपा