यहां भक्ति-मुक्ति मिलती है महामृत्युंजय की कृपा से
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा का बखान तमाम धर्म शास्त्रों में मिलता है। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग गुजरात के काठियावाड़ में समुद्र के किनारे स्थित है। पूर्वकाल में यह क्ष्ोत्र प्रभास के नाम से विख्यात था। यहीं पर भगवान विष्णु के अवतार भगवान कृष्ण ने जरा नाम के व्याध के बाण को निमित्त बनाकर अपनी लीलाओं का संवरण किया था। इस पावन क्ष्ोत्र की महिमा का बखान स्कन्दपुराण, श्री मदभागवत और महाभारत में विस्तार से मिलता है। चूंकि चंद्र देव का एक नाम सोम है, उन्होंने भगवान शंकर को स्वामी मान कर पूजा था, इसलिए इस स्थान को सोमनाथ के नाम से जाना जाता है। यहां दर्शन व पूजन से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। माता पार्वती की कृपा भी प्राप्त होती है और भक्त को मोक्ष मार्ग सहज ही सुलभ हो जाता है। धरती पर वह जब तक रहता है, तब तक भगवान की कृपा से सुख भोगता है और मृत्यु के पश्चात वह सदगति को प्राप्त करता है।
पुराणों में इस पावन ज्योतिर्लिंग को लेकर कथा भी है। कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की 27 कन्याएं थीं, उन सभी कन्याओं का विवाह दक्ष प्रजापति ने चंद्र देवता से किया था लेकिन चंद्रमा का सम्पूर्ण प्रेम मात्र रोहिणी नाम की कन्या के प्रति रहता था। इससे दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं बुरी तरह से आहत थीं, और दुखी रहती थीं। सभी कन्याओं ने अपनी व्यथा पिता प्रजापति को सुनाई तो वे बहुत दुखी हुए। उन्होंने चंद्रदेव को बहुत समझाया लेकिन चंद्र देव पर इसका कोई असर नहीं हुआ। इस पर दक्ष प्रजापति बेहद दुखी हुए और उन्होंने चंद्रमा को क्षयी होने का शाप दे दिया। इस शाप के प्रभाव से चंद्र देव क्षय से ग्रस्त हो गए। इससे पृथ्वी पर हाहाकार मच गया, क्योंकि पृथ्वी पर सुधा, शीतलता और वर्षण का उनका सारा कार्य रुक ही गया और पृथ्वी पर जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित होने लगा। जन त्राहि-त्राहि करने लगे। इससे चंद्र देव भी दुखी व चिंतित हुए। चंद्र देव ने अपनी व्यथा सभी देवों को सुनायी तो इंद्र व अन्य देवता और वशिष्ठ आदि ऋषि सृष्टि का सृजन करने वाले ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और व्यथा सुनायी। इस पर ब्रह्मा जी चंद्र देव से बोल कि आप अन्य देवताओं के साथ प्रभास क्ष्ोत्र में जाएं और वहां पर मृत्युंजय भगवान की पूजा अराधना करें। उनकी ही कृपा से ही चंद्र देव को अपने संकटों से मुक्ति मिल सकती है। शाप का प्रभाव नष्ट हो जाएगा और वे रोग मुक्त हो जाएंगे। परमपिता ब्रह्मा की आज्ञा के अनुसार चंद्र देव ने भगवान मृत्युंजय का पूजन-अर्चन किया।
उन्होंने कठोर तप करते हुए दस करोड़ मृत्युंजन मंत्र का जप किया। इस पर भगवान मृत्युंजय प्रसन्न हो गए और चंद्र देव को अमरत्व का वरदान प्रदान किया। भगवान शंकर ने चंद्र देव से कहा कि तुम कदापि दुखी मत हो, मेरे वर से प्रजापति दक्ष के शाप का मोचन तो हो जाएगा और प्रजापति के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी। कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण हो जाएगी लेकिन शुक्ल पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला बढ़ेगी। इस तरह से तुम्हें प्रत्येक पूर्णिमा को पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होगा। चंद्र देव को मिले इस वर से सृष्टि के प्राणि प्रसन्न हो गए। सुधाकर चंद्र देव पुन: दसों दिशाओं में सुधा वर्षण का कार्य पहले की भांति करने लगे। शाप मुक्त होने के पश्चात चंद्र देव ने अन्यान्न देवताओं के साथ भगवान भोलनाथ से प्रार्थना की कि प्राणियों के उद्धार के इस स्थान पर वे माता पार्वती के साथ सदैव के लिए निवास करें। इसके पश्चात भगवान भोलेनाथ ने चंद्र देव का आग्रह स्वीकार किया और वे स्वयं ज्योतिर्लिंग के रूप में माता पार्वती जी के साथ यहां प्रकट हो गए।