व्रत में शिव- पार्वती पूजन कर तीसरे पहर में भोजन किया जाता है, व्रत को काॢतक माह में या सावन माह में आरंभ करना शुभ होता है, इस दिन स्त्रियां जो कथा कहती हैं वह सोमवती अमावस्या से काफी मिलती- जुलती है। अमावस्या को यदि सोमवार पड़ जाए तो उस अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं। पूजन के बाद कथा सुनी जाती है। पीपल की पूजा करके स्त्रियां इसकी 108 परिक्रमा करती हैं, सौभाग्यवती स्त्रियां सारे श्रृंगार करके प्रत्येक परिक्रमा में एक-एक फल- मेवा चढ़ाती है, परिक्रमा के बाद धोबिन की मांग का भसदूर अपनी मांग में लगाती हैं, इस मौके पर धोबिन के आंचल में स्त्रियां कुछ मिठाईया व पैसे डालती है, एक परिवार में मां- बेटी और बहु तीन स्त्रियां थी, एक भिक्षुक प्रतिदिन वहां भी भिक्षा के लिए आता था, कभी उसे बहू भिक्षा देती तो कभी लड़की।
भिक्षुक बहू को दूधो नहाओ पूतों फलो का आशीर्वाद देता तथा लड़की को धर्म बढें़- गंगा स्नान कहता। लड़की की मां ने एक दिन याचक से पूछा – दोनों को दो तरह का आशीर्वाद क्यों देता है तो याचक बोला, तुम्हारी कन्या का सौभाग्य खंडित है, यदि वह कन्या सोमा नाम की एक धोबिन के घर जाकर जहां गधे बंधते हैं, उसी स्थान की प्रतिदिन सफाई कर दिया करें तो उसे पतिव्रता के आशीर्वाद से उसे सौभाग्य प्राप्त होगा और इसका सौभाग्य अटल हो सकता है। अब कन्या सुबह-सुबह धोबिन के घर जा सफाई कर आती, एक दिन धोबिन ने उसे देख लिया और सफाई करने का कारण पूछा तो कन्या ने सब बता दिया, धोबिन ने उसे आशीर्वाद दिया और कन्या की मां से कहा कि जब उसकी शादी हो तो मुझे बुला लेना।
विवाह का समय आया, धोबिन को बुलाया गया तो जाते समय धोबिन अपने परिवार के सदस्यों से बोली- मेरी उपस्थिति उपस्थिति में यदि मेरा पति मर गया तो मेरे आने तक उसका दाहसंस्कार मत करना, उधर धोबिन ने अपने मांग का भसदूर कन्या की मांग में लगाया तो इधर घर में धोबिन का पति मर गया। परिवार के लोगों ने सोचा कि धोबिन घर आकर रोना-धोना शुरू करेगी, यह भी संभव है कि वह सती होने की जिद पर करें, अत: उसके आने से पहले ही पति का दाह संस्कार कर देना चाहिए, धोबिन जब घर लौट भी लौट रही थी, मार्ग में ही उसे अपने पति का शव ले जाते संबंधी मिले, उसने कहा कि इन्हें कहां ले जा रहे हो, उसने पति का शव वहीं पीपल के वृक्ष के पास रखवा दिया और स्वयं पीपल की पूजा कर शिव- पार्वती का ध्यान करने लगी, पीपल की 108 परिक्रमा करके उसने अपनी अंगुली काट कर कुछ बूंदे रक्त की अपने पति के शव पर छिड़की, तो वह जीवित हो उठा उठा, तभी से धोबिन से सुहाग लेने की प्रथा का प्रचलन है।
– सनातनजन डेस्क