taara devee siddhapeeth: praacheen naam kaamakoti, devee yahaan jaagrt roop mein viraajamaanतारा देवी सिद्धपीठ की बहुत मान्यता है, माना जाता है कि देवी यहाँ जाग्रत रूप में विराजमान हैं। कहीं – कहीं इन्हें शक्ति पीठ के रूप में मान्यता है । यह वोलपुर के शांति निकेतन से आगे रामपुर हाट के पास स्थित है। नील तंत्र में तारा को नील सरस्वती भी कहा जाता गया है। इस स्थान को वीर भूमि भी कहा जाता है। इसका प्राचीन नाम कामकोटि भी था। यह स्थल तंत्र – मंत्र साधना हेतु संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि देवी यहां जागृत रूप में विराजमान हैं, पर यह 52 पीठों में सम्मिलित नहीं है। यहां सती का तीसरे नेत्र महाश्मशान के भीतर एक श्वेत सेंभल वृक्ष के नीचे गिरा था। वहीं पर देवी तारापीठ विद्यमान हैं और भैरव चंद्रचूड़ माने गए हैं।
तारा देवी सिद्धपीठ मंदिर का ब्यौरा
मंदिर के ऊपर एक चौकोर सुंदर शिखर है। इसके नीचे तारा देवी की चमत्कारी प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के पास ही टीन द्वारा ढका एक छोटा मंडप है, जहां भक्त पूजा – अर्चना हेतु एकत्र होते हैं। मंदिर के चारों ओर एक वन या जंगल जैसा वातावरण है, जहां योगी तंत्र – मंत्र साधना में लीन देखे जा सकते हैं। मां की प्रतिमा पूर्ण रूप से दिखलाई नहीं पड़ती है। ये मालाओं से पूर्णतया ढकी रहती है और केवल मुख ही देखा जा सकता है। मंदिर में प्रात : चार बजे आरती होती है, जहां पुजारी के साथ भक्तगण भी मां के चरण धो सकते हैं। आरती में आज भी शव की ताजी भस्म का प्रयोग होता है और इतने वर्षों से प्रतिदिन भस्म – आरती होती रही है और ऐसा कभी नहीं हुआ कि ताजे शव की भस्म प्राप्त न हो सके। मां के दर्शन रात्रि में नौ से साढ़े नौ तक ही होते हैं। गर्भगृह में एक बार में मात्र नौ ही भक्त अंदर जाते हैं। मां पर केवल कमल पुष्प ही चढ़ाए जाते हैं।
यात्रा मार्ग
हावड़ा वायु मार्ग से पहुंचकर यहां टैक्सी आदि द्वारा पहुंचा जा सकता है। हावड़ा से रामपुर हाट स्टेशन लगभग 90 किलोमीटर है और वहां से इसकी दूरी मात्र 10 किलोमीटर है जो टैक्सी, आटो आदि से पूर्ण की जा सकती है।