मिथिला शक्तिपीठ की इस पावन शक्तिपीठ का निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है। मिथिला में कई ऐसे मंदिर हैं, जिन्हें लोग शक्तिपीठ बताते हैं। इनमें से एक जनकपुर नेपाल से 51 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में उच्चैठ नाम के स्थान पर वनदुर्गा का मंदिर है। दूसरा सहरसा स्टेशन के पास उग्रतारा का मंदिर है। तीसरा समस्तीपुर से करीब साठ किलोमीटर दूर सलौना रेलवे स्टेशनसे करीब दस किलोमीटर दूर जय मंगला देवी का मंदिर है। यह तीनों मंदिर ही शक्तिपीठ माने जाते हैं। यहां भगवती सती माताका वाम स्कन्ध गिरा था। यहां की शक्ति उमा या महादेवी और भैरव महोदर हैं, लेकिन उग्रतारा मंदिर के विषय में मान्यता है कि यहां देवी भगवती का नेत्र गिरा था। यहां एक यंत्र पर तारा, जटा और नील सरस्वती की मूर्तियां स्थित हैं।
ताराचंडी शक्तिपीठ ( सासाराम )
taaraachandee shaktipith ( saasaaraam ): parashuraam ne sahasrabaahu ko paraajit kar maan taara kee upaasana keeताराचंडी सिद्धपीठ ( सासाराम ) मंदिर आज सहस्रराम या सासाराम में अवस्थित है, जो पहले करूप प्रदेश के नाम से जाना जाता था तथा आज यह बिहार प्रदेश में है। करूप प्रदेश का क्षेत्र कर्मनाशा नदी से लेकर सोनभद्र नदी के मध्य का विशाल भूखंड है, जो मनोरम पर्वत शृंखलाओं, नदियों, तराइयों तथा अरण्य से युक्त है।
धार्मिक कथा
यहां सती के दाएं नेत्र का निपात माना जाता है। सोनभद्र नदी के किनारे महर्षि विश्वामित्र द्वारा तारा के नाम से जाग्रत किया गया तथा परशुराम ने सहस्रबाहु को पराजित कर मां तारा की उपासना की, जो बालिका रूप में प्रगटीं तथा यहां पर चंड का वध कर चंडी कहलाईं। इन्हें मुंडेश्वरी भी कहा जाता है।
ताराचंडी सिद्धपीठ का मंदिर का उल्लेख
यह सुंदर मंदिर जो ताराचंडी शक्तिपीठ के नाम से भी विख्यात है। इसी के पास एक छोटा कुंड है, जो मां ताराचंडी के चरणों को पखारता है। इस कुंड को परशुराम कुंड कहा जाता है। नगर में सहस्रबाहु की समाधि भी एक स्थान पर अवस्थित है। कहा जाता है कि गौतम बुद्ध ने सारनाथ जाते हुए यहां 21 दिनों तक मां ताराचंडी की उपासना की थी।
यात्रा मार्ग
सासाराम पूर्वी रेलवे का एक मुख्य स्टेशन है, जहां सड़क मार्ग द्वारा सरलता से पहुंचा जा सकता है। ठहरने हेतु हर प्रकार की व्यवस्था यहां उपलब्ध है।