भव्य राम मंदिर का श्रेय लेने वालों, शहीद के आश्रितों का भी हाल ले लो!

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sanatan
मनोज श्रीवास्तव/अयोध्या। अयोध्या स्थिति श्रीरामजन्मभूमि स्थान पर विराजमान भगवान रामलला का भव्य मंदिर 22 जनवरी 2024 को पुनः प्रतिष्ठित हो जायेगा। मंदिर निर्माण करने वाले राम मंदिर के लिये शहीद हुये कार सेवकों के परिजनों के लिये अभी तक कोई ऐसा कदम नहीं उठाये हैं जिससे बलिदान की परंपरा को नई ऊंचाई मिले। सबसे बड़ा बलिदान 30 अक्टूबर और 2 नवंबर 1990 का है। जिसे देखने वाले आज भी बताने में हिल जाते हैं। दोका सामना ने आज उन स्थानों की दशा देखी जहां 2 नवंबर को कारसेवकों का बलिदान हुआ था।1990 का वह रक्तरंजित अयोध्या को जिसने भी देखा है वह दृश्य शायद ही कोई भूल सकता है। जो नहीं देखे उनका उस खौफनाक मंजर की कहानी से दिल बैठ जाता है। विहिप प्रवक्ता की मानें तो दिगम्बर अखाड़ा में शोक श्रद्धांजलि का कार्यक्रम हुआ, मीडिया वाले आये थे लेकिन उसका कोई प्रेस रिलीज नहीं था।
शहीद कारसेवक राजेन्द्र धारिकर के भाई से बात हुई तो उन्होंने बताया कि मुझे आज किसी कार्यक्रम की जानकारी नहीं है। उन्होंने बताया कि परिवार का हाल खस्ता है, जब से प्लास्टिक ने अपनी पैठ बधाई तब से बांस का धंधा बंद हो गया।वैसे भी हम लोगों को कोई पूंछने वाला नहीं है। एक अन्य शहीद वासुदेव के परिजन जिस दुकान से जीवन यापन करते थे वह सड़क के विस्तार में टूट गया। राजेंद्र धरिकार के भाई ने बताया कि हमारे और रमेश शुक्ला परिजन 30 ओकटुबर को शोक श्रद्धांजलि करते हैं। जबकि 2 नवंबर को कोठारी वन्धुओं की शहादत हुई थी।
दिगंबर अखाड़े के निकट जिस लाल कोठी के सामने कोठारी वन्धुओं की शहादत हुई थी वहां कोई स्मारक आदि भी नहीं बन पाया है। अयोध्या आंदोलन में इनकी भी शहादत हुई है। राम अचल गुप्ता, विनोद कुमार गुप्ता, महेन्द्रनाथ बहौरी, महाबीर, राम औतार सिंघल, सर्वेश कुमार ये लोग भी इसी आंदोलन में शहीद हुए थे लेकिन कोई इनका नाम लेवा नहीं दिखता। नयी पीढ़ी में अयोध्या के ही बहुत सारे लोग इनको नहीं जानते। दोका सामना ने कोठारी वन्धुओं की बहन पूर्णिमा कोठारी से संपर्क किया तो पता चला वह कोलकाता में हैं। दिसंबर-जनवरी में अयोध्या आयेंगी।
सभी चित्रों के छायाकार व अयोध्या प्रेसक्लब के अध्यक्ष महेंद्र तिवारी ने इस बात से बहुत नाराजगी व्यक्त किया कि अभी तक कोई शहीदों और उनके परिजनों की सुधि लेने वाला नहीं है। उन्होंने कहा कि मंदिर के लिये शहीद हुये लोगों को यथोचित सम्मान मिल जाता तो अपने धर्म के लिये मर-मिटने का जजब्बा रखने वालों को नई ऊर्जा मिलती।हिन्दू समाज अपने बलिदानियों के सम्मान में बहुत सुस्त है।इन्हें जगाना पड़ेगा।
वाराणसी में श्रीरामजन्मभूमि मुक्ति के लिए प्राणों की आहुति देने वाले बलिदानियों की मुक्ति के लिए काशी विश्वनाथ का किया महारुद्राभिषेक किया गया। 492 वर्ष तक अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि स्थान पर भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर बनाने के लिए जिन संतों, गृहस्थों व कारसेवकों ने अपने प्राणों की आहुति दी उनकी मुक्ति के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर में देशभर से आए संतों द्वारा 2 नवंबर की शाम महारुद्राभिषेक किया गया। यह आयोजन अखिल भारतीय संत समिति, अखाड़ा परिषद, श्रीकाशी विद्वत परिषद के सहयोग से गंगा महासभा द्वारा आयोजित है। संस्कृति संसद में भाग लेने पहुंचे 400 महामण्डलेश्वर समेत 1200 समेत संतों ने राममंदिर निर्माण के लिये शहीद हुतात्माओं की शांति के लिये रुद्राभिषेक किया।
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