तीन साल बाद ऐसे करें पितरों की सपिंडी पूजा: गया में पिंडदान
teen saal baad aise karen pitaron kee sapindee pooja, gaya mein pindadaanपितृ को प्रसन्न करना हर जीव का परमधर्म है, लेकिन आजकल के दौर में अधिकांश लोग इससे सम्बन्धित परम्पराओं को भूलते जा रहे है, आप तौर लोग पितरों के कल्याण के लिए तेहरवीं व वार्षिक पिंडदान सम्बन्धित क्रियाकलापों से तो परिचित ही होंगे, उसके बाद पितरों के कल्याण के लिए क्या करना चाहिए? इससे अधिकांश लोग अनभिज्ञ हैं, आज हम इसी के बारे आपको विशेष तौर पर बताते जा रहे है। हालांकि इसमें थोड़े बहुत मतान्तर हो सकते हैं। मतांतर होना अगल बात है, लेकिन लक्ष्य तो है पितरों का कल्याण। यह भाव ही महत्वपूर्ण है। आइये, जानते है, भविष्य पुराण व गरुण पुराण में उल्लेखित शास्त्र ज्ञान के बारे में। जब हमारे किसी करीबी की मृत्यु हो जाती है, तो वार्षिक पूजा कराते हैं, तर्पण व पिंडदान आदि विधान है, लेकिन तीन साल बाद जो गया में पिंडदान कराया जाता है, उसके बारे में आज चर्चा करेंगे। तीन साल बीतने के उपरांत सपिंडी क्रिया कराने का विधान हैं। आइये, जानते हैं, इसका संक्षेप में विधान-
तीन साल होती है सपिंडी श्राद्ध- इस क्रिया में तीन पिंड बनाए जाते हैं, चौथा पिंड लम्बा होता है। इसे पिंड को चांदी की तार से काटकर तीन भागों में विभग्त कर दिया जाता है। इन तीनों को तीनों पिंडों में मिला देते हैं। ये तब पितृ देव हो जाते हैं। उनकी पंक्ति में शामिल हो जाते हैं। इसके बाद गया में पिंड दान कराया जा सकता हैं। इन पिंडों को शहरी की किसी नदी या फिर अयोध्या में विसर्जित किया जाता है।
इस क्रिया को करने के कम से कम दो घंटे बाद घर में 16 पिंडों का दान विधिविधान से करते है। यानी पहले सपिंडी फिर 16 पिंडों का दान करें। इस क्रिया को करने के बाद इन पिंडों को एक सफेद कपड़े में बांध कर रख ले।
आईये जाने आगे का विधान-
यह आपका हुए घर में किया पहला पिंडदान। बंटोर कर पिंडों मिलाकर साथ किसी स्वच्छ सफेद कपड़े में रख लेना चाहिए। इसके बाद घर से प्रस्थान कर देना चाहिए।
इसी के साथ शुरू होती है गया पिंडदान यात्रा का सफर-
– इसके साथ अयोध्या के भरत कुंड में फिर पिंड दान करने का विधान है। यहां पूजित अन्य पिंडों को यही विसर्जित कर दिया जाता है।
– यह गया पिंडदान यात्रा का दूसरा पिंडदान हुआ।
– तीसरा पिंडदान वाराणसी के पिचाशमोचन में होता हैं। यहां पिंडदान करने के उपरांत यही उन्हें भी विसर्जित कर दिया जाता है।
– इसके बाद गया के लिए पिंडदान के लिए रवाना होते हैं। जब रवाना होते हैं तो घर से बंटोरे गए सफेद कपड़े पिंडों को भी साथ ही रख्ो रहते हैं।
– गया पहुंच कर फिर चौथा पिंडदान किया जाता हे।
– यहां पांचवां पिंडदान वैतारिणी नदी के घाट पर किया जाता है।
– छठा पिंडदान यही गया में सीता घाट पर कराया जाता है। ये वैतरिणी नदी के पार है।
– सातवां पिंडदान यहां विष्णुपद मंदिर में कराया जाना चाहिये।
– आठवां पिंडदान यहां बोधि वट वृक्ष के नीचे कराया जाना चाहिए।
– नौवा पिंडदान प्रेत शिला पर कराया जाता हैं।
– दसवां पिंडदान गया के मुख्य स्थल पर कराने का विधान है।
नोट- यहां पर पिंडदान करने के साथ ही घर से ले जाये गए पिंड समूह हो विष्णु पद अर्पित करेंगे, वहां पर इसकी अलग से जगह बनी हुए है।
ध्यान देने वाली बात यह भी है, पिंडदान की क्रिया पूर्ण करने के पश्चात आप सीध्ो घर नहीं लौटेंगे। अध्योध्या या नीमसार में ध्यान, तर्पण, हवन, पूजन आदि करके ब्राह्मणों को भोज करायेंगे। तब आप घर में प्रवेश करेंगे।
तर्पण पिंड में प्रयोग होने वाली वस्तु- शहद, जौ का आटा, काला तिल, जौ, सूती व ऊनी धागा आदि प्रमुख है।
आभार –
लेखक विष्णुकांत शास्त्री
विख्यात वैदिक ज्योतिषाचार्य और उपचार विधान विशेषज्ञ
38 अमानीगंज, अमीनाबाद लखनऊ
मोबाइल नम्बर- 99192०6484 व 9839186484
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