तिलक लगाने का महत्व, प्रकार व वर्जनाएं

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तिलक लगाने की वैदिक परम्परा का पालन सनातन धर्मी अनंतकाल से करते आ रहे हैं। पूजन-अर्चन में तिलक का विशेष महत्व माना जाता है। मान्यता है कि बिना तिलक के पूजन-अर्चन सफल नहीं होता है। यह परम्परा सृष्टि के आरम्भ से चली आ रही है। वैज्ञानिक तर्क यह है कि दोनों आंखों के बीच में आज्ञा चक्र होता है। इसी चक्र स्थान पर तिलक लगाया जाता है। इस चक्र पर तिलक लगाने से हमारी एकाग्रता बढ़ती है। तिलक लगाते समय उंगली या अंगूठे का जो दबाव बनता है, उससे माथे तक जाने वाली नसों का रक्त संचार व्यवस्थित होता है। रक्त कोशिकाएं सक्रिय हो जाती हैं। विशेषकर कुमकुम, चंदन, मिट्टी, हल्दी, भस्म आदि का तिलक लाने का विधान है, जिनसे तिलक धारण करने की परम्परा सनातनकाल से चली आ रही है।

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माथे पर तिलक लगाना मानसिक शांति प्रदान करता है। चंदन का तिलक लगाने से मानसिक उत्तेजना शांत रहती है। मन पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पुरुष को चंदन व स्त्री को कुमकुम भाल में लगाना मंगल कारक होता है। श्वेत चंदन, लाल चंदन, कुमकुम, विल्वपत्र, भस्म, आदि का तिलक करना शुभ है।

तिलक का वास्तविक अर्थ है , पूजा के बाद माथे पर लगाया जाने वाला चिन्ह। शास्त्रानुसार यदि द्विज (ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य) तिलक नहीं लगाते हैं तो वे चाण्डाल हैं। तिलक हमेंशा दोनों भौहों के बीच “आज्ञाचक्र” पर भ्रुकुटी पर किया जाता है। इसे चेतना केंद्र भी कहते हैं।

पर्वताग्रे नदीतीरे रामक्षेत्रे विशेषतः।
सिन्धुतिरे च वल्मिके तुलसीमूलमाश्रीताः॥
मृदएतास्तु संपाद्या वर्जयेदन्यमृत्तिका।
द्वारवत्युद्भवाद्गोपी चंदनादुर्धपुण्ड्रकम्॥
भावार्थ- चंदन हमेशा पर्वत के नोक का, नदी तट की मिट्टी का, पुण्य तीर्थ का, सिंधु नदी के तट का, चिंटी की बाँबी व तुलसी के मूल की मिट्टी का या चंदन वही उत्तम चंदन है। तिलक हमेंशा चंदन या कुमकुम का ही करना चाहिए। कुमकुम हल्दी से बना हो तो उत्तम होता हैं।

स्नाने दाने जपे होमो देवता पितृकर्म च।
तत्सर्वं निष्फलं यान्ति ललाटे तिलकं विना॥
भावार्थ- तिलक के बिना तीर्थ स्नान, जप कर्म, दानकर्म, यज्ञ होमादि, पितर हेतु श्राद्ध कर्म तथा देवो का पुजनार्चन कर्म ये सभी कर्म तिलक न करने से निष्फल होतग हैं।

मान्यता है कि तिलक स्थान पर धन्नजय प्राण का रहता है। उसको जागृत करने तिलक लगाना ही चाहीए। जो हमें आध्यात्मिक मार्ग की ओर बढाता है।

तिलक चार तरह के होते हैं-
1- कुमकुम
2- केशर
3- चंदन
4- भस्म
– कुमकुम हल्दी चुना मिलकर बना होता है जो हमारे आज्ञा चक्र की शुद्धि करते हुए उसे केल्शियम देते हुए ज्ञान चक्र को प्रज्व्व्लित करता है।
– केशर जिसका मस्तिष्क शीतल होता है, उसको केसर का तिलक प्रज्ज्वलित करता है।
– चंदन” दिमाग को शीतलता प्रदान करते हुए मानसिक शान्ति भी देता है।
– “भस्मी” वैराग्य की अग्रसर करते हुए मस्तष्क के रोम कूपों के विषाणुओं को भी नष्ट करता है।

तिलक का महत्व

– जो भी व्यक्ति बिना तिलक लगाए भोर या संध्या का हवन करता है उसे इसका फल नहीं प्राप्त होता।
– ज्योतिष के अनुसार यदि तिलक धारण किया जाता है तो सभी पाप नष्ट हो जाते है सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं।


– चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है, व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं। यदि वार अनुसार तिलक धारण किया जाए तो उक्त वार से संबंधित ग्रहों को शुभ फल देने वाला बनाया जा सकता है।

देवी-देवताओं के माथे पर न लगाएं सिंदूर

ध्यान देने वाली बात यह भी है कि कभी देवी-देवताओं के माथ्ो पर सिंदूर नहीं लगाना चाहिए। यह गर्म प्रकृति का होता है।

उत्तर की ओर मुख करके लगाये तिलक
महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि जिस व्यक्ति को तिलक लगाया जाता है, उसका मुख उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।
12 स्थानों पर तिलक लगाने का है विधान
शास्त्रों में कहा गया है कि 12 जगहों पर तिलक लगाये जाने का विधान है।हृदय, दोनों बाजू, नाभि, पीठ, दोनों बगल, सिर, मस्तक, गले आदि मिलाकर शरीर के कुल 12 स्थानों पर तिलक लगाने का विधान है।

चंदन का तिलक रखता हैं दिमाग शांत
चंदन का तिलक अपने माथे पर लगाने से दिमाग में सेराटोनिन और बीटा एंडोर्फिन का स्राव संतुलित तरीके से होता है, जिससे मनुष्य उदासी दूर होती है और मन में उत्साह रहता है। यही उत्साह कर्म में सकारात्मकता लाता है।

कितने हैं तिलक के मत 
तिलक मात्र एक तरह से नहीं लगाया जाता। हिंदू धर्म में जितने पंथ है, संप्रदाय हैं, उन सबके अपने अलग-अलग तिलक होते हैं। सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं।
शैव- शैव परंपरा में ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाया जाता है।

1- शाक्त- शाक्त सिदूर का तिलक लगाते हैं। सिदूर उग्रता का प्रतीक है। यह साधक की शक्ति व तेज बढ़ाने में सहायक माना जाता है।

2- वैष्णव– वैष्णव परंपरा में चौंसठ प्रकार के तिलक बताए गए हैं। इनमें प्रमुख हैं- लालश्री तिलक-इसमें आसपास चंदन की व बीच में कुमकुम या हल्दी की खड़ी रेखा बनी होती है।

3- श्यामश्री तिलक- इसे कृष्ण उपासक वैष्णव लगाते हैं। इसमें आसपास गोपीचंदन की तथा बीच में काले रंग की मोटी खड़ी रेखा होती है।

4- विष्णुस्वामी तिलक- यह तिलक माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है। यह तिलक संकरा होते हुए भोहों के बीच तक आता है।

5- रामानंद तिलक- विष्णुस्वामी तिलक के बीच में कुंकुम से खड़ी रेखा देने से रामानंदी तिलक बनता है।

6- अन्य तिलक- गाणपत्य, तांत्रिक, कापालिक आदि के भिन्न तिलक होते हैं। कई साधु व संन्यासी भस्म का तिलक लगाते हैं।

चरणों से सिंदूर लगाने के लाभ
जब भी हम मंदिर जाते हैं तो श्रीराम भक्त हनुमान व देवी आदि के चरणों से सिदूर लेकर माथे पर लगाते हैं। ऐसा करना बहुत सुफलदायी है, क्योंकि सिदूर उष्ण होता है।

कस्तूरी रंग व ये तिलक लगाना है शुभ फलदायी
शास्त्रों के अनुसार महिलाओं को अपने माथे पर कस्तूरी रंग की बिदी या सिदूर लगाना चाहिए। ऐसा कहा गया है कि श्वेत चंदन, लाल चंदन, कुमकुम, विल्बपत्र, भस्म, आदि का तिलक करना शुभ है। जो भी व्यक्ति बिना तिलक लगाए प्रात: या संध्या का हवन करता है उसे इसका फल नहीं प्राप्त होता।

उर्ध्व पुण्डर और भस्म से त्रिपुंड नहीं लगाना चाहिए
तिलक लगाने का एक और मुख्य नियम यह है कि एक ही व्यक्ति या साधक को उर्ध्व पुण्डर और भस्म से त्रिपुंड नहीं लगाना चाहिए। चंदन से एक ही साधक को उध्र्व पुण्डर तथा भस्म से त्रिपुंड नहीं लगाना चाहिए।

ललाट बिदु क्या है?
माथे के ठीक बीच के हिस्से को ललाट बिदु कहते हैं, यह भौहों का भी मध्य भाग है। तिलक हमेशा इसी स्थान पर धारण किया जाना चाहिए।

भिन्न अंगुली से लगाने का क्या फल?

प्रत्येक उंगली से तिलक लगाने का अपना-अपना महत्व है जैसे मोक्ष की इच्छा रखने वाले को अंगूठे से तिलक लगाना चाहिए, शत्रु नाश करना चाहते हैं तो तर्जनी से, धनवान बनने की इच्छा है तो मध्यमा से और सुख-शान्ति चाहते हैं तो अनामिका से तिलक लगाएं। देवताओं को मध्यमा अंगुली से तिलक लगाया जाता है। उत्तर भारत में तिलक आरती के साथ आदर, सत्कार और स्वागत कर तिलक लगाया जाता है।
तिलक लगाने के लिए भिन्न-भिन्न अंगुलियां का प्रयोग अलग-अलग फल प्रदान करता है।

अनामिका अंगुली से मिलती है शांति
अगर तिलक अनामिका अंगुली से लगाया जाता है तो इससे शांति मिलती है।

मध्यमा अंगुली से बढ़ती है आयु
मध्यमा अंगुली से तिलक करने पर आयु में बढ़ोत्तरी होती है, इसके अलावा अंगूठे से तिलक करना पुष्टिदायक माना गया है।

तांत्रिक क्रियाओं में तर्जनी अंगुली का प्रयोग
विष्णु संहिता में इस बात का उल्लेख है कि किस प्रकार के कार्य में किस अंगुली से तिलक लगाना उचित होता है। किसी भी तरह के शुभ और वैदिक कार्य में अनामिका अंगुली, पितृ कार्य में मध्यमा, ऋषि कार्य में कनिष्ठिका तथा तांत्रिक क्रियाओं में प्रथम यानि तर्जनी अंगुली का प्रयोग किया जाना चाहिए।

तिलक हमेशा बैठकर ही लगाएं
कुछ सामान्य नियम हम आपको बताने जा रहे हैं, जिसका वर्णन पद्म पुराण में वर्णन किया गया है। जिसमें कहा गया है कि तिलक हमेशा बैठकर ही लगाना चाहिए। ललाट के दाहिने भाग में ब्रह्मा, वाम भाग में शिव जी, मध्य भाग में श्री कृष्ण का वास होता है। इसलिए मध्य भाग का अंश खाली रखना चाहिए, ताकि ललाट में विष्णु का वास बना रह सके।
एक नियम यह भी है आराध्य पर चढ़ाने से बचे हुए चंदन से तिलक लगाना चाहिए। पुराण में शिव जी पार्वती को नियम बताते हुए कहते हैं कि वैष्णवों के अंग्रेजी के वी आकार बनाये जाने वाले तिलक के बीच में जो स्थान है, उसमें लक्ष्मी व नारायण का वास होता है।

ब्राह्मण को तिलक लगाने के बाद करें तर्पण व पूजन

ब्राह्मण को तिलक लगाने के बाद ही तर्पण व पूजन आदि करना चाहिए।

यह भी हैं नियम
देवी-देवताओं को अनामिका द्बारा, स्वयं को मध्यमा उंगुली द्बारा, पितृगणों को तर्जनी उंगुली द्बारा व ब्राह्मणों को अंगूठे द्बारा तिलक लगाना चाहिए।

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