कर्म और भाग्य में से कौन बलवान है? इसे लेकर तमाम चर्चाएं होती देखी जा सकती है। कुछ लोग भाग्य को प्रभावी मानते हैं, लेकिन कुछ लोग कर्म को प्रधान मानते है। इसे लेकर अलग-अलग मत है तो स्वभाविक हैं कि इसे लेकर मतान्तर संभव है, लेकिन योगवासिष्ठ में इसे लेकर बहुत ही स्पष्ट मत दिया गया है, जो कि हमे यथार्थ से अवगत कराता है।
मंत्र है- द्बौ हुडाविव युध्येते पुरुषार्थी समासमौ। प्राक्तनश्चैहिकश्चैव शाम्यत्यत्राल्पवीर्यवान।।
भावार्थ- पूर्व जन्म के पुरुषार्थ अर्थात प्रारब्ध अर्थात भाग्य और इस जन्म का पुरुषार्थ यानी कर्म, कभी सम शक्ति होकर और कभी असम शक्ति होकर दो मेढ़ों की तरह, परस्पर युद्ध करते है। उनमें से जो अल्प शक्तिवान होता है, वह हार खा जाता है।
निष्कर्ष- भाग्य व कर्म दोनों की महत्वपूर्ण है, जो अधिक प्रभावी रहता है, वही विजयी होता है, जैसे किसी व्यक्ति का प्रारब्ध बहुत खराब है लेकिन वर्तमान जन्म के कर्म श्रेयस्कर है तो निश्चित तौर पर उसका कर्म जीत जाएगा।