तो गणेश जी को इसलिए अर्पित करनी चाहिए दुर्वा घास, शीघ्र होंगे प्रसन्न

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एक समय की बात है कि सृष्टि में अनलासुर नाम का असुर उत्पात मचा रहा था। उसके उत्पात से त्राहि-त्राहि मची हुई थी। उसके उत्पात से न सिर्फ मनुष्य त्रस्त थे, बल्कि देवता भी भयभीत रहते थे। वह सम्पूर्ण सृष्टि में आसुरी वृत्तियों का विस्तार करने लगा था। ऐसे में उसका वध करने के उद्देश्य से देवराज इंद्र उससे कई बार युद्ध किया, लेकिन हर बार देवराज इंद्र देव को पराजित होना पड़ा।

देवता भयभीत होकर भगवान शिव के पास आए और अपनी व्यथा सुनाई। देवताओं की पीड़ा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि देवताओं, तुम्हारे कष्टों का निवारण मात्र गणेश जी कर सकते हैं। उनका पेट बहुत विशाल है और वह अनलासुर को निगल जाएंगे। तब सभी देवताओं ने गणेश जी की स्तुति की। देवताओं की स्तुति से गणेश प्रसन्न हो गए और उन्होंने अनलासुर का पीछा किया। उन्होंने अनलासुर को पकड़कर निगल लिया। जिससे गणेश जी के पेट में बहुत तेज जलन होने लगी।

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गणेश जी के पेट की ज्वाला को शांत करने के लिए देवताओं ने तमाम उपाय किए, लेकिन गणेश जी के पेट की ज्वाला शांत नहीं हुई। अनलासुर का शाब्दिक अर्थ है, आग का असुर। जब कश्यप ऋषि को इसका ज्ञान हुआ तो वे उसी क्षण कैलाश आ गए और 21 दुर्वा एकत्रित करके गणेश जी को खिलाई। जिससे गणेश जी के पेट की जलन शांत हो गई। तभी से गणेश जी के पूजन में दुर्वा चढ़ाई जाती है। दुर्वा ग्रहण करके गणेश जी बहुत प्रसन्न होते है। इस कथा का वर्णन पुराणों में मिलता है, जो कि हमें स्पष्ट करता है, गणेश जी को दुर्वा अर्पित करने कारण।

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