त्रिस्थली प्रयागराज: यहाँ पिंडदान से देवी-देवता पितरों को देते हैं मोक्ष

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प्रयागराज पिंड दान

tristhalee-prayaagraj-yahaan-pindadaan-se-devee-devata-bhee-pitaron-ko-dete-hain-mokshप्रयागराज में 12 माधव होने के कारण पिंडदान का अधिक महत्व है। प्रयाग के प्रधान देवता माधव हैं। पिंडदान की परंपरा सिर्फ प्रयाग, काशी और गया में ही है। पितरों के श्राद्ध कर्म की शुरुआत प्रयाग के मुंडन संस्कार से शुरू होती है। संगम पर पिंडदान करने से भगवान विष्णु के साथ ही तीर्थराज प्रयाग में वास करने वाले तैंतीस करोड़ देवी-देवता भी पितरों को मोक्ष प्रदान करते हैं।

त्रिस्थली ( गया – प्रयाग-काशी )

सनातन धर्मशास्त्रों में उल्लेखित तीन सर्वश्रेष्ठ तीर्थस्थलों को त्रिस्थली कहते हैं। परलोक में मुक्ति और मोक्षप्राप्ति के लिए ‘ त्रिस्थली ‘ में पिंडदान का विधान है। ऐसे तीन तीर्थस्थल हैं – प्रयागराज, काशीधाम और गया। गया को इन तीनों तीर्थस्थलों में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। गया प्रमुख पितृमुक्ति तीर्थ है। पुराणों में मुक्ति के लिए चार उपाय हैं- 1 ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति, 2 गया में श्राद्ध, 3. गोहत्या का निवारण, और 4. कुरुक्षेत्र में निवास करना। इन्हीं चार उपायों में गया में श्राद्ध ही मुक्ति हेतु सबसे महत्त्वपूर्ण है, इसलिए यहीं पर पितरों का श्राद्ध किया जाता है और उन्हें तृप्त किया जाता है।

मान्यता है कि जो लोग अपना शरीर छोड़ जाते हैं, वे किसी भी लोक में या किसी भी रूप में हों, श्राद्ध पखवाड़े में पृथ्वी पर आते हैं और श्राद्ध व तर्पण से तृप्त होते हैं। शास्त्रों में पितरों का स्थान सबसे ऊॅचा बताया गया है। पितरों की श्रेणी में मृत माता, पिता, दादा, दादी, नाना, नानी सहित सभी पूर्वज शामिल है। व्यापक दृष्टि से मृत गुरू और आचार्य भी पितरों की श्रेणी में आते है।

 

प्रयागराज समस्त तीर्थों के अधिपति हैं। सप्तपुरिया इनकी रानियां कही जाती हैं। इसकी गणना भारत के प्राचीनतम तीर्थों में होती है और त्रिस्थली में भी यह एक तीर्थ है। यहां गंगा जमुना तथा सरस्वती नदियों का संगम होता है, अतः स्थान का महत्व और बढ़ जाता है। यहां 12 वर्ष में कुंभ मेला लगता है और छठे वर्ष में अर्ध कुंभ मेला लगता है। संगम में स्नान करने से प्राणी के सभी पापों से मुक्त होकर स्वर्ग का अधिकारी हो जाता है। यहां के किले में एक अक्षय वट या कल्पवृक्ष है, जिसके दर्शन से ब्रहम हत्या का पाप दूर हो जाता है। माघ मास में जो व्यक्ति प्रयाग संगम में स्नान करता है उसके पुण्य फल का शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता है।

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त्रिस्थली प्रयागराज की धार्मिक कथा

समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत की कुछ बूंदे यहां भी गिरी थी। प्राचीन काल में यहां अनेक यज्ञ हुए थे, सभी तीर्थों से इसका नाम प्रयाग पड़ा तथा यज्ञ स्थलों में प्रमुख होने के कारण इसे प्रयागराज भी कहा जाता है।

पीठ के दर्शनीय स्थल के कुछ मुख्य का वर्णन

  •  संगम स्नान: संगम स्थल वास्तव में एक पवित्र स्थल है जो शासन द्वारा निर्मित हैं और इसमें स्नान करने हेतु बाकायदा निश्चित फीस ली जाती है। इस स्थल पर दो नावो के मध्य जेल के अंदर एक छोटा प्लेटफार्म बनाया गया है जो लकड़ी का है और कृतिम कुंड बन जाता है। यहां वास्तविक संगम देखा जा सकता है। यमुना का जल पारदर्शी नीला हरा होता है। जबकि गंगा का जल प्रायः मटमैला होता है। इस में डुबकी लगाकर अल्प समय में ही बाहर आना पड़ता है। क्योंकि निश्चित संख्या में ही यात्री एक बार में इस स्थल पर डुबकी लगा सकते हैं, अतः समय कर दिया जाता है। नदियों की स्थिति देखते हुए इसका स्थान परिवर्तित होता रहता है। चुकी है स्थान शासकीय अधिग्रहण में है अतः पंडे यहां प्रवेश नहीं कर पाते हैं और यात्री परेशानी से बच जाते हैं।
  • प्राचीन किला: संगम से लगा हुआ ही एक प्राचीन किला है, जिसमें भारतीय सेना आदि का कार्यालय हैं और कुछ अधिकारी निवास भी करते हैं। इस किले में ही अक्षय वट या कल्पवृक्ष स्थित है, जिसका दर्शन यात्री निश्चित समय में ही कर सकते हैं।
  • हनुमान मंदिर: किले के पास ही एक विशिष्ट हनुमान मंदिर है, जहां मूर्ति लेटी हुई है और बाढ़ आने पर भी कभी-कभी हनुमान जी की मूर्ति जलमग्न हो भी जाती है।
  • कल्पवास: यात्री माघ माह में प्रयाग के संगम स्थल पर झोपड़ियों में रहकर नियमित स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं। इसे ही कल्पवास कहा जाता है।
  • श्री शंकर मंडप: संगम क्षेत्र में बांध के निकट, दक्षिण शैली में बना यह एक आकर्षक मंदिर है। इसके प्रथम खंड में मीनाक्षी का मंदिर है। गर्भ ग्रह में आदि शंकराचार्य के जीवन की घटनाएं उत्कीर्ण की गई हैं। दूसरे खंड में तिरुपति के वेंकटेश्वर बालाजी के दर्शन होते हैं। मंडप का तीसरा खंड अपने ढंग का अद्वितीय है। यहां 12 टन भार का ऐसा शिवलिंग स्थापित है जिसके 1008 मुख हैं।
  • ललिता देवी(ललिता देवी शक्तिपीठ): नगर में देवी की की दो मूर्तियां हैं। एक अक्षय वट के पास और दूसरी मीरापुर नामक स्थान पर है। किले में स्थित ललिता देवी के पास भैरव भव भी स्थित है। यह स्थान 52 शक्तिपीठों में एक और यहां पर सती की हस्तानगुली गिरी थी।

आसपास के अन्य स्थल

  • लाक्षागृह: इस का वर्तमान नाम लच्छागिर  है और यहीं पर दुर्योधन ने पांडवो को धोखे से जला देने हेतु लाक्षागृह बनवाया था यह स्थान नगर से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित है।
  • सीतामढ़ी: यह स्थल नगर से लगभग 40 किलोमीटर दूर एक ग्राम में स्थित है। यहां एक सुंदर आश्रम है, जो बाग बगीचों से भरपूर है। ऐसी कथा है कि यहां माता सीता ने पृथ्वी में प्रवेश कर आत्मोत्सर्ग किया था। माता सीता के आत्मदाह की सुंदर रचना यहां है। पास ही एक कृतिम पहाड़ी के अंदर हनुमान जी की एक सुंदर मूर्ति है और पहाड़ी के ऊपर एक विशाल हनुमान की प्रतिमा भी है। यहां बाल्मीकि जी का आश्रम माना जाता है और लव कुश का जन्म स्थान भी यही माना गया है।
  • दुर्वासा आश्रम: संगम से आठ 9 किलोमीटर दूर दूर है। यहां दुर्वासा ऋषि का मंदिर भी है। प्रति श्रावण मास में यहां मेला लगता है।
  • ऐन्द्री देवी: दुर्वासा आश्रम से थोड़ी ही दूर करीब डेढ़ या दो किलोमीटर पर यह स्थान है। महर्षि भारद्वाज ने दुर्वासा ऋषि के तक की रक्षा हेतु इंद्री देवी का आवाहन किया था।
  • राजापुर: इलाहाबाद से 35 40 किलोमीटर दूर है। यहां रेल या बस द्वारा जाया जाता है। यहां गोस्वामी तुलसीदास के हाथ की लिखी रामचरितमानस आज भी सुरक्षित है। इस स्थान को तुलसीदास जी की जन्म स्थली भी माना जाता है।
  • श्रृंगवेरपुर: प्रयाग से रायबरेली मार्ग पर रामचौरा रोड स्टेशन से 5 किलोमीटर दूर है। दशरथ की पुत्री शांता और सृंग ऋषि के मंदिर हैं। यहां राम ने वनवास काल में निषाद राज गुह के आग्रह पर एक रात्रि विश्राम किया था। यहां से थोड़ी दूर रामचौरा में राम जी के चरण चिन्ह हैं।

यात्रा मार्ग

उत्तर रेलवे एक बड़ा जंक्शन प्रयागराज है।

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