”कठपुतली”
‘कठपुतली’ की कहानी ,कठपुतली की जुबानी ,
हां !मैं एक कठपुतली हूं ,
गांवों में, कस्बों में, शहरों में,
हर जगह तुम्हारे इशारों पर नाचती हुई,
कभी राजाओं की वीर गाथाएं,
कभी रानियों का जौहर,
सब दिखाती हुई मुझको अपनी उंगलियों में डोरे से बांध यूं नचा रहे,
नचाकर उंगलियों पर मुझे,
तुम कलाकार कहला रहे ,
कथाकार बन पात्रों से तुम,
लोगों का दिल बहला रहे ,
मंत्रमुग्ध हुए लोग तालियां बजा रहे,
तुम्हारी उंगलियां बना रही कहानी कोई,
या तुम कहानी बना कठपुतलियां नचा रहे,
आज के दौर में,
यह कठपुतली का खेल है कैसा ?
अदृश्य डोरे में पिरोया है भ्रष्टाचार,
जातिवाद और धर्मवाद का जामा,
इन डोरों में फंस कर ,
तुम संवेदना शून्य हो, स्वयं ही नाच रहे और स्वयं ही ताली बजा रहे,
भ्रम में हो तुम कि तुम कलाकार हो,
कलाकार तो कोई और है ,
तुम स्वयं एक कठपुतली हो ,
तुम स्वयं एक पात्र हो,
जिसे किसी अदृश्ट डोरे से बांध ,
कठपुतली बनाकर तुम्हें नचा रहा ।
डॉ• ऋतु नागर
स्वरचित