उस व्यक्ति को ही मुक्ति मिलती है…..

0
842

मुक्ति हरि की कृपा से संभव है, जो सृष्टि-हरि में भेद नहीं करता है। वह मुक्ति को प्राप्त करता है। प्रकृति और हरि में भेद नहीं करता है, वह मुक्ति को प्राप्त करता है। भूतभावन शिव और विष्णु में भेद नहीं करता है। वह मुक्ति को प्राप्त करता है। समस्त सृष्टि को एक ही परमसत्ता के स्वरूप में देखता है, वह मुक्ति को प्राप्त करता है। वैसे शुक्र रहस्य में उस व्यक्ति की मुक्ति का रहस्य बताया गया है, जो संसार में हरि और हरि में संसार को देखता है। उसकी दृष्टि में भेद नहीं होता है। भेद जहां भी होगा, वहां मुक्ति सम्भव नहीं है।

हरिरेव जगज्जगदेव हरिर्हरितो जगतो नहि भिन्नतनु:।
इति यस्य मति: परमार्थगति: स नरो भवसागरमुत्तरति।।
भावार्थ- हरि ही जगत हैं, जगत ही हरि हैं। हरि और जगत में किंचिन्मात्र भी भेद नहीं है। जिसकी ऐसी मति है, उसी की परमार्थ में गति है। वह पुरुष संसार सागर को तर जाता है।

Advertisment
सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें। सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here