वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है। नृसिंह भगवान भगवान विष्णु के चौथे अवतार माने जाते हैं। दक्षिण भारत में वैष्णव सम्प्रदाय के लोग इन्हें विपत्ति में रक्षा करने वाले देवता के रूप में पूजते हैं। नृसिंह जयंती के दिन दैनिक प्रात: क्रियाकलापों से निवृत्त होकर भगवान नृसिंह व माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। पूजा में फल, फूल, पंचमेवा, केसर, रोली, नारियल, अक्षत, पीताम्बर, गंगाजल, काला तिल व हवन सामग्री का प्रयोग करें। व्रत रखें। भगवान नृसिंह को प्रसन्न करने के लिए नृसिंह गायत्री मंत्र का जप करें। व्रत करने वाले को सामर्थ्य के अनुसार तिल व स्वर्ण आदि का दान करना चाहिए। भगवान श्री विष्णु का नृसिंह अवतार अति उग्र था। उनका अवतरण भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए हुआ था।
भक्त प्रहलाद दावनराज हिरण्यकशिपु के पुत्र थे। यह असुरराज भूमंडल पर धर्म का नाश कर रहा था। धर्म का पालन करने वालों को सताता था और स्वयं को ईश्वर बताकर स्वयं भू ईश्वर घोषित कर जन-जन से स्वयं का पूजन करवाता था। यहां तक की उसके प्रहलाद ने भी उसे ईश्वर मानने से इंकार किया तो उसने उसे भी मारने के तमाम कुचक्र रचे थे, तब भगवान नृसिंह का अवतरण हुआ था। वे खम्बा फाड़कर अवतरित हुए थे। वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को भगवान विष्णु इस दिन अर्ध सिंह एवं अर्ध मनुष्य रूप में प्रकट हुए थे। उन्होंने इस तिथि को नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकशिपु का वध किया था। हिरण्यकशिपु के वध के पश्चात भगवान नृसिंह ने भक्त प्रह्लाद को वरदान दिया कि इस दिन जो भी व्रत करेगा, वह समस्त सुखों का भागी होगा एवं पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा। नृसिंह भगवान की पूजा शाम को की जाती है। इस व्रत में व्रती को सामर्थ्य अनुसार दान अवश्य देना चाहिए।
नरसिंह के बारे में कई तरह की प्रार्थनाएँ की जाती हैं जिनमे कुछ प्रमुख ये हैं-
नरसिंह मंत्र ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ॥
भावार्थ- हे क्रुद्ध एवं शूर-वीर महाविष्णु, तुम्हारी ज्वाला एवं ताप चतुर्दिक फैली हुई है। हे नरसिंहदेव, तुम्हारा चेहरा सर्वव्यापी है, तुम मृत्यु के भी यम हो और मैं तुम्हारे समक्षा आत्मसमर्पण करता हूँ।
श्री नृसिंह स्तवः- गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय
प्रहलाद हृदयाहलादं भक्ता विधाविदारण। शरदिन्दु रुचि बन्दे पारिन्द् बदनं हरि ॥१॥
नमस्ते नृसिंहाय प्रहलादाहलाद-दायिने। हिरन्यकशिपोर्बक्षः शिलाटंक नखालये ॥२॥
इतो नृसिंहो परतोनृसिंहो, यतो-यतो यामिततो नृसिंह। बर्हिनृसिंहो ह्र्दये नृसिंहो, नृसिंह मादि शरणं प्रपधे ॥३॥
तव करकमलवरे नखम् अद् भुत श्रृग्ङं। दलित हिरण्यकशिपुतनुभृग्ङंम्। केशव धृत नरहरिरुप, जय जगदीश हरे ॥४॥
वागीशायस्य बदने लर्क्ष्मीयस्य च बक्षसि। यस्यास्ते ह्र्देय संविततं नृसिंहमहं भजे ॥५॥
श्री नृसिंह जय नृसिंह जय जय नृसिंह। प्रहलादेश जय पदमामुख पदम भृग्ह्र्म ॥६॥
ठंडी चीजें व मोरपंख अर्पित करें
भगवान नृसिंह को ठंडी चीजें अर्पित की जाती हैं। भगवान को मोरपंख अर्पित करने से कालसर्प दोष से मुक्ति प्राप्त होती है। भगवान को दही का प्रसाद अर्पित करें। भगवान नृसिंह को चंदन का लेप चढ़ाने से असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं।
नृसिंह के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करें
नृसिंह चतुर्दशी के दिन भगवान नृसिंह के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए। नृसिंह भगवान और मां लक्ष्मी को पीले वस्त्र अर्पित करें। इस व्रत के नियम एकादशी व्रत के समान ही हैं। इस व्रत में सभी प्रकार के अनाज का प्रयोग निषिद्ध है। इस व्रत में रात्रि में भगवान का जागरण करें। भगवान नृसिंह की कथा सुनें।
विधि विधान से पूजा करने से होता है दुखों का अंत
नृसिंह चतुर्दशी पर विधि विधान से पूजा अर्चना करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है। सभी दुखों का अंत होता है।
नृसिंह जयंती के दिन भगवान नरसिंह की उपासना करने से संकटों से मुक्ति मिलती है मुक्ति
नृसिंह जयंती के दिन भगवान नरसिंह की उपासना करने से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विष्णु भगवान की कृपा से सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। विष्णु भगवान की अराधना कठिन से कठिन परिस्थिति से निकालने, शत्रुओं का नाश और कार्यों में शुभ फल प्रदान करने वाली है। नृसिंह जयंति के पावन दिन इन मंत्रों का जाप करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
भगवान नृसिंह के सिद्ध मंत्र
एकाक्षर नृसिंह मंत्र : ”क्ष्रौं”
त्र्यक्षरी नृसिंह मंत्र : ”ॐ क्ष्रौं ॐ”
षडक्षर नृसिंह मंत्र : ”आं ह्रीं क्ष्रौं क्रौं हुं फट्”
एकाक्षर नृसिंह मंत्र : ”क्ष्रौं”
त्र्यक्षरी नृसिंह मंत्र : ”ॐ क्ष्रौं ॐ”
षडक्षर नृसिंह मंत्र : ”आं ह्रीं क्ष्रौं क्रौं हुं फट्”
अष्टाक्षर नृसिंह : ”जय-जय श्रीनृसिंह”
आठ अक्षरी लक्ष्मी नृसिंह मन्त्र: ”ॐ श्री लक्ष्मी-नृसिंहाय”
दस अक्षरी नृसिंह मन्त्र: ”ॐ क्ष्रौं महा-नृसिंहाय नम:”
तेरह अक्षरी नृसिंह मन्त्र: ”ॐ क्ष्रौं नमो भगवते नरसिंहाय’
नृसिंह गायत्री — 1 : ”ॐ उग्र नृसिंहाय विद्महे, वज्र-नखाय धीमहि। तन्नो नृसिंह: प्रचोदयात्।
नृसिंह गायत्री — 2 : ”ॐ वज्र-नखाय विद्महे, तीक्ष्ण-द्रंष्टाय धीमहि। तन्नो नारसिंह: प्रचोदयात्।।”
नृसिंह स्तुति के इस पाठ से प्रसन्न होते हैं भगवान
उदयरवि सहस्रद्योतितं रूक्षवीक्षं प्रळय जलधिनादं कल्पकृद्वह्नि वक्त्रम् |
सुरपतिरिपु वक्षश्छेद रक्तोक्षिताङ्गं प्रणतभयहरं तं नारसिंहं नमामि ||
प्रळयरवि कराळाकार रुक्चक्रवालं विरळय दुरुरोची रोचिताशांतराल |
प्रतिभयतम कोपात्त्युत्कटोच्चाट्टहासिन् दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||1||
सरस रभसपादा पातभाराभिराव प्रचकितचल सप्तद्वन्द्व लोकस्तुतस्त्त्वम् |
रिपुरुधिर निषेकेणैव शोणाङ्घ्रिशालिन् दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||2||
तव घनघनघोषो घोरमाघ्राय जङ्घा परिघ मलघु मूरु व्याजतेजो गिरिञ्च |
घनविघटतमागाद्दैत्य जङ्घालसङ्घो दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||3||
कटकि कटकराजद्धाट्ट काग्र्यस्थलाभा प्रकट पट तटित्ते सत्कटिस्थातिपट्वी |
कटुक कटुक दुष्टाटोप दृष्टिप्रमुष्टौ दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||4||
प्रखर नखर वज्रोत्खात रोक्षारिवक्षः शिखरि शिखर रक्त्यराक्तसंदोह देह |
सुवलिभ शुभ कुक्षे भद्र गंभीरनाभे दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||5||
स्फुरयति तव साक्षात्सैव नक्षत्रमाला क्षपित दितिज वक्षो व्याप्तनक्षत्रमागर्म् |
अरिदरधर जान्वासक्त हस्तद्वयाहो दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||6||
कटुविकट सटौघोद्घट्टनाद्भ्रष्टभूयो घनपटल विशालाकाश लब्धावकाशम् |
करपरिघ विमदर् प्रोद्यमं ध्यायतस्ते दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||7||
हठलुठ दल घिष्टोत्कण्ठदष्टोष्ठ विद्युत् सटशठ कठिनोरः पीठभित्सुष्ठुनिष्ठाम् |
पठतिनुतव कण्ठाधिष्ठ घोरांत्रमाला दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||8||
हृत बहुमिहि राभासह्यसंहाररंहो हुतवह बहुहेति ह्रेपिकानंत हेति |
अहित विहित मोहं संवहन् सैंहमास्यम् दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||9||
गुरुगुरुगिरिराजत्कंदरांतगर्तेव दिनमणि मणिशृङ्गे वंतवह्निप्रदीप्ते |
दधदति कटुदंष्प्रे भीषणोज्जिह्व वक्त्रे दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||10||
अधरित विबुधाब्धि ध्यानधैयर्ं विदीध्य द्विविध विबुधधी श्रद्धापितेंद्रारिनाशम् |
विदधदति कटाहोद्घट्टनेद्धाट्टहासं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||11||
त्रिभुवन तृणमात्र त्राण तृष्णंतु नेत्र त्रयमति लघिताचिर्विर्ष्ट पाविष्टपादम् |
नवतर रवि ताम्रं धारयन् रूक्षवीक्षं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||12||
भ्रमद भिभव भूभृद्भूरिभूभारसद्भिद् भिदनभिनव विदभ्रू विभ्र मादभ्र शुभ्र |
ऋभुभव भय भेत्तभार्सि भो भो विभाभिदर्ह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||13
श्रवण खचित चञ्चत्कुण्ड लोच्चण्डगण्ड भ्रुकुटि कटुललाट श्रेष्ठनासारुणोष्ठ |
वरद सुरद राजत्केसरोत्सारि तारे दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||14||
प्रविकच कचराजद्रत्न कोटीरशालिन् गलगत गलदुस्रोदार रत्नाङ्गदाढ्य |
कनक कटक काञ्ची शिञ्जिनी मुद्रिकावन् दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||15||
अरिदरमसि खेटौ बाणचापे गदां सन्मुसलमपि दधानः पाशवयार्ंकुशौ च |
करयुगल धृतान्त्रस्रग्विभिन्नारिवक्षो दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||16||
चट चट चट दूरं मोहय भ्रामयारिन् कडि कडि कडि कायं ज्वारय स्फोटयस्व |
जहि जहि जहि वेगं शात्रवं सानुबंधं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||17||
विधिभव विबुधेश भ्रामकाग्नि स्फुलिङ्ग प्रसवि विकट दंष्प्रोज्जिह्ववक्त्र त्रिनेत्र |
कल कल कलकामं पाहिमां तेसुभक्तं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||18||
कुरु कुरु करुणां तां साङ्कुरां दैत्यपूते दिश दिश विशदांमे शाश्वतीं देवदृष्टिम् |
जय जय जय मुर्तेऽनार्त जेतव्य पक्षं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||19||
स्तुतिरिहमहितघ्नी सेवितानारसिंही तनुरिवपरिशांता मालिनी साऽभितोऽलम् |
तदखिल गुरुमाग्र्य श्रीधरूपालसद्भिः सुनिय मनय कृत्यैः सद्गुणैर्नित्ययुक्ताः ||20||
लिकुच तिलकसूनुः सद्धितार्थानुसारी नरहरि नुतिमेतां शत्रुसंहार हेतुम् |
अकृत सकल पापध्वंसिनीं यः पठेत्तां व्रजति नृहरिलोकं कामलोभाद्यसक्तः ||21||
।। इति श्री नरसिंह स्तुतिः संपूर्णम् ।।
श्री नृसिंह चालीसा का पाठ भी करें, होगा कल्याण
मास वैशाख कृतिका युत, हरण मही को भार।
शुक्ल चतुर्दशी सोम दिन, लियो नरसिंह अवतार।।
धन्य तुम्हारो सिंह तनु, धन्य तुम्हारो नाम।
तुमरे सुमरन से प्रभु, पूरन हो सब काम।।
नरसिंह देव में सुमरों तोहि
धन बल विद्या दान दे मोहि।।
जय-जय नरसिंह कृपाला
करो सदा भक्तन प्रतिपाला।।
विष्णु के अवतार दयाला
महाकाल कालन को काला।।
नाम अनेक तुम्हारो बखानो
अल्प बुद्धि में ना कछु जानो।।
हिरणाकुश नृप अति अभिमानी
तेहि के भार मही अकुलानी।।
हिरणाकुश कयाधू के जाये
नाम भक्त प्रहलाद कहाये।।
भक्त बना बिष्णु को दासा
पिता कियो मारन परसाया।।
अस्त्र-शस्त्र मारे भुज दण्डा
अग्निदाह कियो प्रचंडा।।
भक्त हेतु तुम लियो अवतारा
दुष्ट-दलन हरण महिभारा।।
तुम भक्तन के भक्त तुम्हारे
प्रह्लाद के प्राण पियारे।।
प्रगट भये फाड़कर तुम खम्भा
देख दुष्ट-दल भये अचंभा।।
खड्ग जिह्व तनु सुंदर साजा
ऊर्ध्व केश महादृष्ट विराजा।।
तप्त स्वर्ण सम बदन तुम्हारा
को वरने तुम्हरो विस्तारा।।
रूप चतुर्भुज बदन विशाला
नख जिह्वा है अति विकराला।।
स्वर्ण मुकुट बदन अति भारी
कानन कुंडल की छवि न्यारी।।
भक्त प्रहलाद को तुमने उबारा
हिरणा कुश खल क्षण मह मारा।।
ब्रह्मा, बिष्णु तुम्हें नित ध्यावे
इंद्र-महेश सदा मन लावे।।
वेद-पुराण तुम्हरो यश गावे
शेष शारदा पारन पावे।।
जो नर धरो तुम्हरो ध्याना
ताको होय सदा कल्याना।।
त्राहि-त्राहि प्रभु दु:ख निवारो
भव बंधन प्रभु आप ही टारो।।
नित्य जपे जो नाम तिहारा
दु:ख-व्याधि हो निस्तारा।।
संतानहीन जो जाप कराये
मन इच्छित सो नर सुत पावे।।
बंध्या नारी सुसंतान को पावे
नर दरिद्र धनी होई जावे।।
जो नरसिंह का जाप करावे
ताहि विपत्ति सपने नहीं आवे।।
जो कामना करे मन माही
सब निश्चय सो सिद्ध हुई जाही।।
जीवन मैं जो कछु संकट होई
निश्चय नरसिंह सुमरे सोई।।
रोग ग्रसित जो ध्यावे कोई
ताकि काया कंचन होई।।
डाकिनी-शाकिनी प्रेत-बेताला
ग्रह-व्याधि अरु यम विकराला।।
प्रेत-पिशाच सबे भय खाए
यम के दूत निकट नहीं आवे।।
सुमर नाम व्याधि सब भागे
रोग-शोक कबहूं नहीं लागे।।
जाको नजर दोष हो भाई
सो नरसिंह चालीसा गाई।।
हटे नजर होवे कल्याना
बचन सत्य साखी भगवाना।।
जो नर ध्यान तुम्हारो लावे
सो नर मन वांछित फल पावे।।
बनवाए जो मंदिर ज्ञानी
हो जावे वह नर जग मानी।।
नित-प्रति पाठ करे इक बारा
सो नर रहे तुम्हारा प्यारा।।
नरसिंह चालीसा जो जन गावे
दु:ख-दरिद्र ताके निकट न आवे।।
चालीसा जो नर पढ़े-पढ़ावे
सो नर जग में सब कुछ पावे।।
यह श्री नरसिंह चालीसा
पढ़े रंक होवे अवनीसा।।
जो ध्यावे सो नर सुख पावे
तोही विमुख बहु दु:ख उठावे।।
‘शिवस्वरूप है शरण तुम्हारी
हरो नाथ सब विपत्ति हमारी।।
चारों युग गायें तेरी महिमा अपरंपार।
निज भक्तनु के प्राण हित लियो जगत अवतार।।
नरसिंह चालीसा जो पढ़े प्रेम मगन शत बार।
उस घर आनंद रहे वैभव बढ़े अपार।।