चित्रकूट। मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट के प्रवेश द्वार के नाम से विख्यात झाँसी -मिर्जापुर राष्ट्रीय राजमार्ग में जिले के बगरेही गांव के समीप स्थित लव-कुश की जन्मभूमि एवं रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि की कर्मस्थली बाल्मीकि आश्रम केंद्र और प्रदेश सरकारों की उपेक्षा का शिकार है। भगवान श्रीराम के पुत्र लव और कुश की जन्मभूमि एवं रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि की तपोस्थली होने के कारण धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समूचे विश्व में महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल होने के बावजूद वाल्मीकि आश्रम लालापुर केंद्र और प्रदेश सरकार की उपेक्षा का शिकार है। घने जंगल के ऊपर पहाडी में स्थित इस आश्रम में आज भी त्रेतायुग के तमाम साक्ष्य मौजूद होने के बाद भी जिम्मेदार अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों द्वारा इसके पर्यटन विकास की ठोस पहल नही की गई। जिसके कारण चित्रकूट का यह प्रवेश द्वार पर्यटकोें की पहुंच से कोसो दूर नजर आ रहा है।
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रामायण की रचना कर भगवान श्रीराम के आदर्श और चरित्र की गौरवगाथा को जन -जन तक पहुँचाने वाले आदि कवि महर्षि बाल्मीकि ने इसी आश्रम में रहकर रामायण की रचना की थी।इसके अलावा इस आश्रम की सबसे बडी विशेषता यह है कि अयोध्या लौटने के बाद जब भगवान श्रीराम ने माता सीता को अपने राज्य से निकाला था,तब माता सीता ने इसी आश्रम में शरण लिया था।इसी आश्रम में माता सीता ने भगवान श्रीराम के पुत्र लव और कुश को जन्म दिया था।इसी आश्रम ने महर्षि वाल्मीकि की देख-रेख में राजकुमार लव और कुश की शिक्षा-दीक्षा हुई थी।
आश्रम के महंत भरत दास जी महाराज ने बताया कि आदिकवि एवं रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि जी का लालापुर आश्रम भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट का प्रवेश द्वार है। देश के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक होने के बावजूद लम्बे अरसे से केंद्र और प्रदेश सरकार के साथ-साथ स्थानीय जनप्रतिनिधियों एवं प्रशासन की उपेक्षा का शिकार होने के कारण आज तक इस प्रमुख तीर्थ स्थल का अपेक्षित पर्यटन विकास नही हो सका। उन्होंने कहा कि रामायण की रचना कर समूचे विश्व में भगवान श्रीराम की के आदर्शो एवं चरित्र को जनजन तक पहुंचाने वाले महर्षि वाल्मीकि जी का आश्रम पर्यटन विकास की बाट जोह रहा है। उन्होंने कहा कि चित्रकूट के इस सुप्रसिद्ध आश्रम को विकसित करने का अब धर्म नगरी के प्रमुख साधू-संतों ने संकल्प लिया है।
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उन्होने बताया कि लालापुर पहाड पर स्थित इस प्रमुख आश्रम में आज भी त्रेतायुग के तमाम अवशेष मौजूद है। आश्रम में महर्षि बाल्मीकि जी की गुफा एवं माता सीता की रसोई और उनके चरण चिन्ह आज भी स्पष्ट रूप से देखे जा सकते है।इसके अलावा आश्रम में सनातन धर्म के अखाडों के निशान भी पहाडी की शिलाओं में प्राकृतिक रूप से बने हुए है।जिन्हें कभी भी मिटाया नही जा सकता।उन्होने बताया कि उनकी पहल से मानिकपुर के निवर्तमान विधायक और मौजूदा बाँदा -चित्रकूट सांसद आरके सिंह पटेल ने आश्रम में पेयजल एवं प्रकाश की व्यवस्था की है।जिससे पर्यटकों और आश्रम में रहने वाले ऋषि-मुनियों को खासी महूलियत मिली है।
उन्होने बताया कि हर पूर्णिमा को सैकड़ों साधू-संतों एवं ग्रामीणों ने हाथों में धर्म ध्वजा लेकर कामदगिरि की तर्ज पर आश्रम के पर्वत की परिक्रमा करते है। साथ ही आमजन मानस को इस पवित्र स्थान की महत्ता बताते है। उन्होने बताया कि बाल्मीक आश्रम के विकास का खाका तैयार कर दीन दयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन,निर्मोही अखाडा के महंत ओंकार दास महाराज,निर्वाणी अखाडा के महंत रामदुलारे दास ,संतोषी अखाड़े के महंत रामजी दास महाराज ,कामदगिरि प्रमुख द्वार के संत मदन गोपाल दास ,रामायणी कुटी के महंत रामहृदय दास ,नांदिन हनुमान मंदिर के संत महेंद्र दास जी महाराज एवं राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित सेवानिवृत्त शिक्षक चंद्र दत्त पांडेय आदि ने वाल्मीकि आश्रम के विकास का खाका तैयार कर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेजा गया है। इसके अलावा स्थानीय सांसद आरके सिंह पटेल और विधायक चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय से भी सीएम को प्रस्ताव भेजवाकर महर्षि वाल्मीकि आश्रम के पर्यटन विकास की मांग की जायेगी। सांसद श्री पटेल का कहना है कि उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड के अलग होने के बाद प्रदेश सरकार का पूरा ध्यान बुंदेलखंड के तीर्थ स्थलों को विकसित करने पर है।
उन्होंने कहा कि धर्म नगरी चित्रकूट भगवान श्री राम की तपोभूमि होने के कारण विश्व के करोङो हिन्दुओं की आस्था का केंद्र है। चित्रकूट के प्रवेश द्वार के रूप में विख्यात लव -कुश की जन्मभूमि वाल्मीकि आश्रम के सुंदरीकरण की मांग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से की गई है।
वही महर्षि वाल्मीकि आश्रम सेवा समिति लालापुर के अध्यक्ष चंद्रदत्त पांडे का कहना है कि बुंदेलखंड विकास निधि से चित्रकूट में काफी धन खर्च किया गया। इसके बावजूद पर्यटन के विकास के लिए प्रभावी ढंग से कुछ नहीं हुआ। यहां तक कि जिन इलाकों को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किये जाने से भारी राजस्व की प्राप्ति होती, उस तरफ कभी भी ध्यान नही दिया गया है। श्री पांडेय बताते हैं कि वाल्मीकि आश्रम संपूर्ण संस्कृत वांग्मय के प्रमाणों के अलावा अंग्रेजी दस्तावेजों में भी वर्णित हैं। उन्होंने कहा कि यह आश्रम दुर्गा (आशांबरा) मंदिर से पर्वत की चोटी की ओर लगी सीढ़ियों से पहुंचा जाता है, जहां अगर एक ओर महर्षि वाल्मीकि की प्रतिमा लगानी आवश्यक है। यहीं पर लवकुश आश्रम है जो देखरेख के अभाव में जर्जर हो रहा है।