कलयुग में पाप चरम पर है। धर्म का लोप हो रहा है और अधर्म का दायरा बढ़ रहा है। दैनिक जीवन से धर्म-कर्म का ह्वास हो रहा है। कलयुग में कैसे अपने जीवन को सफल बनाए ?और जीवन को उत्तम गति मिले, इसके लिए धर्म शास्त्रों में भी उल्लेख किया है। कृष्ण यजुर्वेदीय के कलिसंतरणोपनिषद् में कलयुग के ताप से मुक्ति का उपाय बताया गया है। इसकी कथा इस प्रकार है- द्बापर के अंत में नारद जी परमपिता ब्रह्मा जी के पास गए और कहा कि भगवान, मैं भूलोक में भ्रमण करते हुए किस तरह से कलि के ऋण से मुक्ति पा सकता हूं। तब ब्रह्मा जी ने कहा- वत्स, तुमने बहुत ही श्रेष्ठ बात मुझसे पूछी है। सभी श्रुतियों का जो परम गोपनीय रहस्य है, वह तुम ध्यान से सुनो। जिसके माध्यम से जीव कलयुग के भवसागर को पार लेगा।
कलियुग में भगवान आदि पुरुष नारायण के जाप से जीव कलि के दोषों का नाश कर डालता है। इस पर ब्रह्मा जी से नारद जी ने पूछा कि वह नारायण का कौन सा नाम है, जिसके प्रभाव से कलि के दोष समाप्त समाप्त हो जाते हैं। तब परमपिता ब्रह्मा जी ने कहा-
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृृष्ण हरे हरे।।
उन्होंने आगे कहा- यह सोलह नाम कलि के पापों का नाश करने वाले हैं। इससे श्रेष्ठ उपाय वेदों में कही और कोई दूसरा नहीं नजर आता हैं। इसके प्रभाव से षोडश कलाओं से आवृत जीव के आवरण नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद जैसे मेघ यानी बादल के विलीन होने पर सूर्य की किरण्ों प्रकाशित हो उठती है, उसी तरह से परमब्रह्म स्वरूप प्रकाशित हो उठता है। इसके बाद फिर नारद जी ने ब्रह्मा जी से प्रश्न किया कि प्रभु इसके जप की क्या विधि है। तो ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि इसके लिए कोई विधि विधान नहीं है। पवित्र हो या अपवित्र, इस मंत्र का निरंतर जप करने वाला सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य और सायुज्य चारों तरह की मुक्ति को प्राप्त करता है। जब साधक इस सोेलह नामों वाले मंत्र का तीन करोड़ जप कर लेता है तो वह ब्रह्म हत्या के दोष को पार कर लेता है। वह वीर हत्या के पाप से भी मुक्ति पा जाता है। स्वर्ण की चोरी के पाप से छूट जाता हैं। इसके अलावा पितर, देवता और मनुष्यों के दोष से मुक्त हो जाता है। सर्व धर्मों के परित्याग से तत्काल ही पवित्र होता है। शीघ्र ही मुक्त हो जाता है, शीघ्र ही मुक्त हो जाता है।