राजा को गुण, कर्म व स्वभाव में श्रेष्ठ होना चाहिए जो स्वयं ऐश्वर्यवान होकर देश को भी ऐश्वर्यशाली बनाए।
ऐसे राजा को चाहिए कि वह अपने सभी राज्यमंत्रियों, सेनापतियों और राज्य कर्मचारियों की सहायता से अपने देश में सद्ज्ञान व विद्याओं की उन्नति सहित देश की समस्त भूमि पर सभी प्रकार के हितकर अन्न व ओषधियों को उत्पन्न करे। देश में गायों की बहुतायत हो जिससे देशवासियों को प्रचुर मात्रा में अल्प मूल्य में शुद्ध दुग्ध आदि सभी पदार्थ मिल सकें।
वेद गाय को अवध्य वा अहंतव्य मानते हैं और गोवध के लिए हत्यारे को प्राणदंड का विधान करते हैं। इसका कारण गोदुग्घ का अमृत के समान लाभकारी होना है।
राजा को चाहिए कि वह अपनी समस्त प्रजा के प्रति पूर्ण निष्पक्ष हो और सबका समान रूप से कल्याण करें। किसी भी निर्बल व सबल के साथ अन्याय, शोषण, अत्याचार, उत्पीड़न, पक्षपात, भेदभाव आदि नहीं होना चाहिए। सब प्रजा सुखी व ज्ञान सहित धन से संपन्न होनी चाहिए।
वेद सृष्टिकर्ता परमेश्वर की अमर वाणी है।
-मनमोहन आर्य