सामवेद के एक मंत्र में ईश्वर के गुणों, स्वरूप व कार्यों का उल्लेख कर बताया गया है कि वह सृष्टि की उत्पत्ति तथा इसकी प्रलय का कर्ता है, धन का दाता है तथा बल प्राप्ति का प्रेरक भी है। वह ईश्वर सब उत्पन्न पदार्थों और आकाश में भी व्यापक है, सर्व-अंतर्यामी तथा सब पदार्थों को जानने वाला भी है। मैं ऐसे अग्रनेता परमेश्वर की ही भक्ति, पूजा, गुणकीर्तन व उपासना करता हूं।
ईश्वर स्वयं प्रकाशित व अन्यों का भी प्रकाशक है। वह परमात्मा सूर्य, चंद्र आदि देवों में निहित अपनी शक्ति से उत्कृष्ट सृष्टि यज्ञ को चला रहे हैं। वही ईश्वर अग्नि में आहुत किए जाते हुए उज्ज्वल दीप्ति वाले घृत की प्रदीप्ति में भी विद्यमान व व्यापक है, अनुप्रविष्ट है। उस ईश्वर की दीप्ति व चमक से ही सब जगत चमक रहा है।
अग्नि में घृत की आहुति देने से जो प्रभा होती है, वह धन, बल, ज्ञान आदि के प्रदाता, सृष्टि के व्यवस्थापक जगदीश्वर की ही प्रभा की ओर निर्देश वा संकेत करती है।
– प्रस्तुतकर्ता मनमोहन आर्य।